Friday, December 23, 2016

जीवन दर्शन: नायक सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं हैं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
एक दोस्त की सलाह पर मैंने यू-ट्यूब की एक साइट संस्कृत कॉर्नर देखी। जैसे ही मैंने वीडियो पर क्लिक किया टी-शर्ट में 9 और 11 साल के दो बच्चे नज़र आए। अमेरिका के पेंसिलवेनिया के इन बच्चों ने संस्कृत में बात करनी शुरू की। जिसका अर्थ था नमो नम:, मतलब नमस्कार। हमारे गुरु ने हमें सिखाया है कि कैसे भारतीय
तरीके से भोजन किया जाता है। स्क्रीन पर नीचे अंग्रेजी में सब-टाइटल रहे थे। उन्हें देखना दिलचस्प था। विशेष रूप से अशोक को, जिसके दांत टूटे हुए थे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फिर उन्होंने बताया कि भोजन करते वक्त मौन क्यों रहना चाहिए, बात क्यों नहीं करनी चाहिए, टीवी और किताब क्यों नहीं देखना-पढ़ना चाहिए। बैठकर भोजन क्यों करना चाहिए और भोजन के बाद एक विशेष आसन में क्यों बैठना चाहिए, जिससे पाचन बेहतर हो। यह सारी बातें 2.8 मिनट में पूरी हो गईं। वीडियो 2010 में अपलोड किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि ये वीडियो जब अपलोड किया गया था, तब दोनों अशोक और सिद्धार्थ पेंसिलवेनिया के एक अच्छे स्कूल में पढ़ते थे और उनकी मां विजया अमेरिका के बाहर की एक फार्मास्यूटिकल कंसल्टिंग फर्म अपने पति विश्वनाथन के साथ चलाती थीं। विजया वार्टन बिज़नेस स्कूल की पूर्व छात्रा हैं। 
14 साल पहले विजया ने स्वामी दयानंद सरस्वती के वेदांत प्रवचनों से प्रभावित होकर भगवद् गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र को पढ़ना शुरू किया। उन्हें भाषा पसंद आने लगी। उन्होंने अपने बेटों के साथ अमेरिका में संस्कृत भारती में संस्कृत सीखी। सभी ने एकसाथ परीक्षा दी। उनके घर में जब मेहमान आते तो इसी आधिकारिक सिक्रेट भाषा का उपयोग होता। इस भाषा को सीखने के बाद विजया ने देखा कि बच्चों को पॉप कल्चर के साथ तालमेल बिठाने में मुश्किल हो रही है। ये कल्चर उनके नए संस्कृत से लगाव के कल्चर से मेल नहीं खाती है। इसलिए उन्होंने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया और होम स्कूलिंग शुरू की। कुछ विषय उन्होंने खुद पढ़ाने शुरू किए। कुछ के लिए ट्यूशन की मदद ली। बच्चे नियमित ऑनलाइन परीक्षा में भी शामिल हुए। 
2010 में इन्होंने अपने वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड करने का फैसला किया। साथ ही भारत लौटने और संस्कृत को गंभीरता से चेन्नई के रामकृष्ण आश्रम में सीखना शुरू किया। चेन्नई पेरेंट्स का होम टाउन है। उन्होंने पहले स्थानीय स्कूल में प्रवेश लिया, लेकिन बाद में छोड़ दिया, क्योंकि यह उनकी विचार प्रक्रिया से मेल नहीं खाता था। लेकिन दोनों बच्चे स्कूल मिस नहीं करते और फिलहाल स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ऑनलाइन हाई स्कूल पाठ्यक्रम से पढ़ाई कर रहे हैं। वे इसकी परीक्षा भी दे रहे हैं। अमेरिकी छात्रों को इसकी इजाजत है। आज 14 और 16 साल के हो चुके अशोक और सिद्धार्थ कर्नाटक संगीत सीख रहे हैं और साथ ही प्रोफेशनल्स से वायलिन भी सीख रहे हैं। फिर नियमित वेद क्लास तो है ही लेकिन, सबसे अच्छी बात यह है कि आज ये रामकृष्ण मठ में संस्कृत पढ़ा रहे हैं। इसमें 10 साल की उम्र से लेकर सीनियर सीटिजन तक पढ़ने आते हैं। वे 10 दिन की संस्कृत वर्कशॉप भी करते हैं, यह थोड़ा डराने वाला भी है, क्योंकि यहां कोई और भाषा नहीं बोली जा सकती। अगर समझ में नहीं आए तो साइन लैग्वेज का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक शौक से शुरू हुआ सफर आज दोनों भाइयों के लिए एक जुनून बन गया है। वे लगातार भाषा की अपनी समझ में सुधार करना चाहते हैं। इन लड़कों का अपलोड किया गया हर वीडियो हमारे सामने एक बात रखता है कि क्यों हमारे पुरखे कहते थे कि खास काम उस खास तरीके से करो कि जो हमें हमारी संस्कृति की ओर ले जाए। 
फंडा यह है कि हीरो सिर्फ फिल्मों तक सीमित नहीं है। बाहर भी कई शो बिज हैं और कुछ परिवारों में विश्वनाथन जैसे कई लोग होते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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