Thursday, September 8, 2016

कश्मीर दौरे से लौट प्रतिनिधि मण्डल: अफस्पा पर नहीं होगी नरमी

कश्मीर में अलगाववादियों की ओर से केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात से भी इन्कार किए जाने के बावजूद विपक्षी दल चाहते हैं कि उनसे बातचीत हो। वामदल तो पाकिस्तान को भी वार्ता में शामिल करने के पक्ष में है। हालांकि यह एक स्वर में उभरा कि किसी भी कीमत पर देश की एकता और अखंडता से कोई समझौता नहीं
किया जा सकता। सरकार की ओर से भी यह संकेत दे दिया गया कि वह संविधान के दायरे में और देश की मंशा को ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ेगी। सुरक्षा अहम है और इस नाते अफस्पा को लेकर फिलहाल नरमी नहीं होगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बैठक की शुरुआत में ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकाजरुन खड़गे ने हुर्रियत नेताओं को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती का मुद्दा उठाया। उनका कहना था कि जब सरकार ने सबकुछ तय कर लिया है, तो फिर बैठक की क्या जरूरत है। लेकिन बैठक की अध्यक्षता कर रहे गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तत्काल इसका खंडन करते हुए कहा कि अभी तक कुछ भी तय नहीं हुआ है। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की बैठक और उसके सुझावों के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। मल्लिकाजरुन खड़गे समेत कई विपक्षी नेता इस संबंध में छपी अखबार की खबरों की कतरने भी दिखा रहे थे। बैठक की शुरुआत करते हुए राजनाथ सिंह ने प्रतिनिधिमंडल के दौरे पर विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया। कानून-व्यवस्था, राजनीतिक, आर्थिक और अन्य शीर्षक से प्रेजेंटेशन चार भागों में बटा था। इसमें प्रतिनिधिमंडल को घाटी से विभिन्न वर्गो के प्रतिनिधियों की ओर मिले सुझावों को शामिल किया गया। बैठक में सभी दलों ने राजनाथ सिंह के प्रेजेंटेशन की सराहना की। इसके बाद बैठक में घाटी से अफस्पा (आर्मड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट) हटाने का मुद्दा उठा। बताते हैं कि इस पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि 2010 में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर दौरे के बाद भी यह मुद्दा उठा था। लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसके लिए उचित समय नहीं है। संकेत साफ था कि मोदी सरकार फिलहाल अफस्पा में ढील देने के पक्ष में नहीं है।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रस्ताव पारित कर साफ किया कि राष्ट्रीय संप्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा, लेकिन समस्या के स्थायी समाधान के लिए सभी लोगों से बातचीत भी जरूरी है। प्रस्ताव में अलगाववादी हुर्रियत नेताओं का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन बाद में मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए मल्लिकाजरुन खड़गे ने साफ कर दिया कि सभी लोगों में हुर्रियत नेता भी शामिल हैं। उन्होंने समाधान के लिए अल्पकालीन और दूरगामी कदम की जरूरत समझाते हुए कहा कि घाटी में जिन पार्टियों का राजनीतिक असर है, उनसे सलाह लिए बिना कोई कदम उठाना ठीक नहीं होगा, इसलिए घाटी की तीन मुख्य पार्टियों पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस से पहले बातचीत कर आधार बिंदु तैयार किया जाए और पता लगाया जाए कि अलगाववादी क्या चाहते हैं और फिर उसके बाद अलगाववादियों से अलग से बातचीत हो। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह इसपर चुप्पी साध गए। कांग्रेस से एक कदम आगे बढ़ते हुए वामपंथी दलों ने समस्या के स्थायी समाधान के लिए पाकिस्तान से भी बातचीत की जरूरत बताई। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी का कहना था कि सरकार को समस्या के स्थायी समाधान के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह ठोस कदम उठाने चाहिए। येचुरी में साफ किया कि बैठक में हालात से निपटने में महबूबा मुफ्ती सरकार की विफलता पर कोई चर्चा नहीं हुई। लेकिन एमआइएम के असदुद्दीन ओवैसी ने महबूबा सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कश्मीर के एक धर्मगुरु के नाम पर डाक टिकट जारी करने का भी सुझाव दिया।

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साभारजागरण समाचार 
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