गुरचरण दास (लेखक व स्तम्भकार)
केंद्रीय विद्यालयसंगठन ने अपने 240 स्कूलों से 12वीं की परीक्षा में बच्चों के असंतोषजनक प्रदर्शन पर स्पष्टीकरण मांगा है। प्रधानमंत्री कुछ समय से हमारे स्कूलों के नतीजों से चिंतित हैं और अपने एक भाषण में उन्होंने यहां तक कहा है कि हर कक्षा में यह प्रदर्शित होना चाहिए कि वहां बच्चे से क्या सीखने की अपेक्षा है,
ताकि पालकों को मालूम हो कि बच्चे को मदद की कहां जरूरत है। यह शायद स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाने का निर्णायक कारण रहा हो। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे खासतौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा पूछे गए प्रश्नों के प्रति अनुत्तरदायी रही हैं और इसकी कीमत उन्होंने चुकाई है। भारतीय इतिहास में यह ऐतिहासिक क्षण हो सकता है। स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए चिंता भारतीय राजनेताओं में असामान्य बात है। चाहे शिक्षा राज्यों का विषय हो, लेकिन प्रदर्शन के आधार पर मंत्री के बदले जाने से कई राज्यों के उनींदे और लापरवाह मंत्रीगण अचानक सक्रिय हो गए हैं।
जिसे मंत्रिमंडल का आम फेरबदल समझा जा रहा था वह चौकाने वाला साहसी कदम साबित हुआ। बड़े बदलाव के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय में लड़ाकू ईरानी की जगह प्रकाश जावड़ेकर ने ली। भारत खराब गुणवत्ता वाले शिक्षा मंत्रियों के मामले में बदकिस्मत रहा है। ईरानी का चयन गलत था और हर किसी से झगड़ा मोल लेकर उन्होंने स्थिति सुधारने में कोई मदद नहीं की। उन्हें कपड़ा मंत्रालय भेजा गया है, जो कोई पदावनति नहीं है, जैसा हर कोई सोच रहा है। यह मंत्रालय रोजगार निर्मित करने का अकेला सबसे बड़ा अवसर है और यदि ईरानी तीन सप्ताह पहले घोषित महत्वाकांक्षी योजना लागू करती हैं तो वे लाखों नौकरियां पैदा कर अपनी प्रतिष्ठा को पुन: चमका सकती हैं, जो वे शिक्षा मंत्रालय में हर गलत चीज पर ध्यान केंद्रित कर गंवा बैठी हैं।
राज्यमंत्री रामशंकर कठेरिया को भी मानव संसाधन मंत्रालय से उचित ही हटाया गया है। वे खुलेआम शिक्षा के भगवाकरण की बातें करते थे और कई बार मुस्लिमों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दे चुके थे। फेरबदल में बड़ा नुकसान तो वित्त मंत्रालय से नागरीक उड्डयन मंत्रालय में जयंत सिन्हा का तबादला है। वे मंत्रालय में असाधरण पेशेवर अंदाज लाए और निवेशकों के लिए भरोसा पैदा किया था। राजन रिजर्व बैंक से विदा ले ही रहे हैं, इसके साथ भारत ने दो भरोसेमंद आवाजें खो दी हैं। सौभाग्य से मोदी के पास उच्च प्रदर्शन करने वाले वाले तीन मंत्री अब भी हैं- सड़क, राजमार्ग बंदरगाहों के प्रभारी नितिन गडकरी, कोयला, उर्जा और खनन के प्रभारी पीयूष गोयल तथा रेलवे के सुरेश प्रभु। उन्होंने अपने मंत्रालय में दुर्लभ ऊर्जा पैदा की है। नौकरियां पैदा करने, 'अच्छे दिन' लाने में वे भारत की सबसे बड़ी उम्मीदें हैं।
कुछ साल पहले अमेरिका में एेसा ही नाटकीय क्षण आया था, जब राष्ट्रपति ओबामा ने ख्यात टीवी उद्बोधन में कहा था कि अच्छे और बुरे शिक्षकों में फर्क है। इस वक्तव्य के साथ उन्होंने शिक्षक संघों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था, जो अच्छे और बुरे शिक्षकों के बीच फर्क करने को तैयार नहीं थे। इस तरह वे कुछ कमजोर क्षेत्रों में अमेरिकी छात्रों के खराब स्तर के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार थे। राष्ट्रपति ने जो बात स्पष्ट रूप से सामने नहीं रखी, लेकिन वह सभी को साफ हो गई थी कि हमें अच्छे शिक्षकों को पुरस्कृत करने और खराब शिक्षकों को दंडित करने के तरीके खोजने होंगे।
अपने पद के कुछ हफ्तों में जावड़ेकर ने पता लगा लिया है कि भारतीय स्कूल संकट में हैं। भारतीय स्कूली बच्चे एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय टेस्ट में सिर्फ किर्गिजस्तान से ऊपर नीचे से दूसरे क्रम पर क्यों आए? 15 साल के किशोर 2011 में हुए पढ़ने, विज्ञान और जोड़-घटाव के प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टुडेंट्स असेसमेंट (पिसा) नामक टेस्ट में 74 में से 73 वें स्थान पर रहे। यूपीए सरकार ने भारत में पिसा पर प्रतिबंध लगाकर इसका जवाब दिया, जो बहुत ही धक्कादायक था। किंतु एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एसर) के जरिये इस निराशाजनक स्थिति की हर साल पुष्टि होती है। यह बताती है कि 5वी कक्षा के आधे से कम बच्चे दूसरी कक्षा की किताब पढ़ पाते हैं या साधारण जोड़-घटाव कर पाते हैं। सिर्फ चार फीसदी शिक्षक टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (ीईटी) पास कर पाएं। उप्र और बिहार के हर चार में से तीन शिक्षक पांचवीं कक्षा के प्रतिशत के सवाल नहीं कर पाते।
त्रासदी यह है कि प्राथमिक शिक्षा पर हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी शिक्षा की गुणवत्ता सुधर नहीं रही है। यह भारत के शिक्षा प्रतिष्ठान पर बहुत बड़ा दाग है। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) की बड़ी सराहना हुई, लेकिन उसका कोई असर नहीं पड़ा है। कारण स्पष्ट है। आरटीई कानून को सिर्फ इनपुट की चिंता है, नतीजे की नहीं। यह आधारभूत ढांचे से ग्रसित है- कक्षा का आकार, टॉयलेट, खेल के मैदान का आकार, आदि। यह शासन को सुविधा नहीं देता कि वह बच्चे की शिक्षा शिक्षक के पढ़ाने की गुणवत्ता का आकलन कर सके। यदि पढ़ाई का आकलन नहीं होगा तो शिक्षक जवाबदेह कैसे होंगे? दुनिया के श्रेष्ठतम शिक्षा संस्थानों ने माना है कि शिक्षा में शिक्षक ही सबकुछ है। उन्होंने राष्ट्रीय आकलन और शिक्षकों के प्रशिक्षण के सघन कार्यक्रम स्थापित किए हैं। हमने माना कि अच्छे शिक्षक पैदा होते हैं, जबकि सच तो यह है कि वे तैयार किए जाते हैं। पर्याप्त प्रशिक्षण के साथ कोई भी शिक्षक बन सकता है। किंतु प्रशिक्षण सतत, सघन और शिक्षक के पूरे कॅरिअर में चलते रहना चाहिए।
जावड़ेकर में ईरानी की खामियां नहीं हैं। वे अच्छे श्रोता हैं और पीएमओ, नीति आयोग टीएसआर सुब्रह्मण्यम समिति के साथ मिलकर काम करेंगे। इन तीनों के पास कुछ अच्छे आइडिया हैं। लेकिन सरकार के शेष तीन वर्षों में उन्हें कुछ करके दिखाना है तो उन्हें बच्चों के सीखने का आकलन और उसे सुधारने पर पूरा ध्यान केंद्रित करना होगा। एक अच्छा नेता बहुत थोड़े महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करता है। वह उन पर रोज ध्यान देता है, निकट से प्रगति पर निगाह रखता है और उन्हें हासिल करने का रोमांच अनुभव करता है। श्रीमान जावड़ेकर, इससे अच्छा लक्ष्य क्या होगा कि 2019 तक तीसरी कक्षा तक हर भारतीय बच्चा पढ़ना-लिखना सीख जाए? यह दिवास्वप्न लगता है, लेकिन गैर-सरकारी संगठन 'प्रथम' ने दो राज्यों में दिखाया है कि यह दो साल में किया जा सकता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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