कल्पेश याग्निक (संपादक, दैनिक भास्कर)
'शरीर की बनावट से ही यदि श्रेष्ठता होती तो विश्व में प्रति वर्ष सबसे लम्बे या सबसे छोटे कद के व्यक्तियों के चित्र नहीं छपते। उनकी श्रेष्ठता की गाथाएं छपतीं।' -अज्ञात
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हजारों जुनूनीचीख रहे थे। आधे से अधिक खड़े थे। तालियों के बीच कई तरह से उत्साह बढ़ाने की बुलंद आवाजें। और वहां -स्वीमिंग पूल में जिस तरह से युद्ध छिड़ा था- मानो पानी बिलबिलाकर, कराहता हुआ बाहर दौड़ पड़ेगा! और धुकधुकी समाप्त। माइकल फेल्प्स ने दीवार छू कर; कुछ संशय, कुछ भ्रम और कुछ आश्चर्य के साथ गिर्द देखा। और, हौले से हाथ ऊंचा उठाया। फिर पांचों ऊंगलियां खोल दीं! बस, तीन दिन पहले 29 जून 2016 की रात की ही तो बात है यह। ओलिम्पिक ट्रायल। ब्लड, स्वेट एंड टीयर्स। विश्व के खेल प्रेमी चकित हैं। संसार का 'मोस्ट डेकोरेटेड ओलिम्पियन' अब लगातार पांचवां ओलिम्पिक खेलेगा। माइकल फेल्प्स। फ्लाइंग फिश। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। किन्तु इसमें इतना विस्मय क्यों होना चाहिए? फेल्प्स ग़ज़ब की सेहत बनाए हुए हैं। दुनिया में उनके जितने ओलिम्पिक मेडल (18 गोल्ड के साथ कुल 22) किसी ने कभी हासिल नहीं किए। 31वां जन्मदिन अगले ही दिन 30 जून को मनाया। ट्रायल जीतना ही था। जी, नहीं। इतना आसान नहीं है। ही ऐसा है। फेल्प्स की लोमहर्षक गाथा है। इतनी गहरी कि थाह मिल सके। इतनी तीव्र कि पलक झपकते आंसू या मुस्कान दिखलाई ही पड़े। इतनी गर्विली कि सीना चौड़ा हो जाए। इतनी दर्दनाक कि गला भर आए। इतनी प्रेरक कि हिम्मत और साहस भर जाए। इतनी शिक्षाप्रद कि लक्ष्य और उद्देश्य का पाठ स्वत: पढ़ा जाए। निम्न सीखें तो स्पष्ट मिलेंगी ही : 1. कोई भी बीमारी एक बड़ा अवसर है 2. बचपन के डर, विचित्र रूप में निकलते हैं 3. परिवार का साथ सर्वोच्च है, परिवार का टूटना निकृष्ट 4. सर्वश्रेष्ठ होना जितना सुखदायी है, उससे कहीं अधिक कष्टप्रद 5. गंभीर से गंभीर भूल का उपाय है, मानने वाला चाहिए 6. एक 'समझाने - हमें समझने वाला' साथी या गुरु हो तो सब आसान हो जाएगा 7. सबसे बड़ा काम है : काम करना/करते ही रहना 8. लोगों से ही संसार है -उनके बीच जाएं- और स्वयं को सिद्ध करें, लौटें 1.कोई भी बीमारी एक बड़ा अवसर है : माइकलफेल्प्स के पिता एथलीट थे। मां स्कूल टीचर। अमेरिका के बाल्टीमोर में जन्मे फेल्प्स को पांच साल की नन्हीं उम्र में ही डरावनी सी बीमारी बता दी गई। अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिव डिस्ऑर्डर। और इस बीमारी में शरीर से इतनी ऊर्जा निकलती जाती है कि बच्चा आपे से बाहर हो जाता है। दो बड़ी बहनें थीं। दोनों एथलीट। व्हिटनी तो स्वीमिंग पूल से बाहर ही आती। उसने फेल्प्स को तैरने जाने को कहा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फेल्प्स को सिर पानी में डालने पर डूबने का भयंकर डर लगता था। इसलिए बचते रहे। कि डॉक्टर ने कहा - तैरने से ऊर्जा ख़र्च होगी। तैरो। वहां के कोच ने कहा -सिर बचाना है- तो पीठ के बल तैरो। मैं सिखाऊंगा। बैकस्ट्रोक में इसलिए मास्टर हैं फेल्प्स! बीमारी, तैरने का अवसर लेकर आई। उनके पैरों का आकार भी 'बीमारी' कहा जाता। शरीर की तुलना में टांगें छोटी लगतीं। पैरों के पंजे चौड़े लगते। बाद में डबल-जॉइन्ट अलग निकले। तैरने में सब, बहुत काम आए! 2.बचपन के डर, विचित्र रूप मेंे निकलते हैं : तीनदिन पहले, जब हजारों लोगों के बीच वे अपनी मंगेतर निकोल के साथ, अपने सात-सप्ताह पहले पैदा हुए बच्चे बूमर को सहला रहे थे - तो सबसे अधिक रोना साथ ही बैठी मां और चार कुर्सियां छोड़कर बैठे पिता को रहा था। यू-ट्यूब पर पूरा दृश्य है। ये जो चार कुर्सियों की दूरी वहां दिख रही थी - वही फेल्प्स की ज़िंदगी में चार ज़िंदगियों की तबाही की इबारत लिख कर गई। नौ साल की उम्र रही होगी उनकी, जब पिता फ्रेड ने उनकी मां डैबी को छोड़ दिया। भारी झगड़ों के बाद। मां, तीनों बच्चों को पालती रही। एक ऐसा दर्द फेल्प्स के दिल और दिमाग में बैठ गया। कुछ किताबें हैं - जिनमें उनके भावनात्मक रूप से बिखरने का वर्णन है। 3.परिवार का साथ सर्वोच्च, पिवार का टूटना निकृष्ट : फेल्प्सआज इतनी हिम्मत जुटाकर लौटे हैं - तो उनका परिवार ही इसके मूल में है। मंगेतर की प्रेरणा और बच्चे को देखकर ही वे रियो ओलिम्पिक में उतरने को तैयार हुए हैं। अन्यथा लंदन ओलिम्पिक में वे संन्यास लेने की घोषणा कर चुके थे। फिर केवल भटक रहे थे। दस वर्ष से उन्होंने पिता से कोई बात नहीं की। जो ठीक भी किया। किन्तु मां को अकेला देख, गलते रहे। जलते रहे। अत्यधिक भावुक हैं फेल्प्स। परिवार-आधारित। 4.सर्वश्रेष्ठ होना जितना दु:खदायी है, उससे कहीं अधिक कष्टप्रद : चैम्पियनमें जीत का उन्माद होता है। सन् 2000 में मात्र 15 वर्ष की उम्र में फेल्प्स सिडनी ओलिम्पिक के लिए चुन लिए गए थे। और पांचवां स्थान बना लिया। और कुछ ही महीनों बाद जापान में 'यंगेस्ट एवर वर्ल्ड रेकॉर्ड' बनाकर धमाका कर दिया। और फिर एथेन्स ओलिम्पिक में स्वर्ण पर ऐसा धावा बोला कि बीजिंग ओलिम्पिक में 8 स्वर्ण का अतुलनीय पराक्रम दिखाया। फिर आया लंदन ओलिम्पिक। जब वे 17वें स्वर्ण को गले लगा रहे थे, तब अमेरिका में यह बहस चल रही थी कि फेल्प्स, अब सर्वश्रेष्ठ नहीं रहे। कल तक विशेषज्ञ और वैज्ञानिक, यह सिद्ध करने में लगे रहते थे कि उनके दोनों हाथों को फैलाने पर बनने वाला 'विंगस्पान' उनकी श्रेष्ठता का कारण नहीं है। फेल्प्स तो कठोर परिश्रम, असहनीय प्रशिक्षण और अनूठे समर्पण के कारण श्रेष्ठ हैं। वे ही यह गिनाने में लग गए कि उनकी दोनों बांहें फैलाने से कुल 6 फुट 7 इंच की चौड़ाई बनती है। जबकि फेल्प्स की लंबाई 6 फुट 4 इंच है। अपनी लम्बाई से 3 इंच अधिक। औसत खिलाड़ियों में यह बराबर होती है। इससे वे पूल में हर हाथ मारने पर, बाकी से अपने आप आगे हो जाते हैं! महान् तैराक इयान थोर्प ने कहा था कोई भी एथलीट, एक ओलिम्पिक में 7 से अधिक स्वर्ण कभी नहीं जीत सकता। विश्लेषक पहले बताते थे कि फेल्प्स ने इस वाक्य को एक पोस्टर बनाकर अपने पलंग के सामने टांग दिया था। ऐसी दृढ़ता। इतिहास कैसे गढ़ता। वे विश्लेषक ही समझाने लगे कि देखिए फेल्प्स 200 मी. बटरफ्लाय में गोल्ड चूक गए। देखिए, 400 मी. में मेडल ही ला पाए। देखिए, वे अपने साथी से ही पिछड़ गए। पराजय अकेली पड़ जाती है। विजय का परिवार बन जाता है। सर्वश्रेष्ठ, कोई शरीर से नहीं होता। त्याग से ही होता है। आराम त्यागना पड़ता है। सरल उपाय त्यागने होते हैं। छोटे मार्ग त्यागने पड़ते हैं। तत्काल कुछ होने का भाव त्यागना पड़ता है। संतोष का त्याग। स्वाद का त्याग। रोचक-रसप्रद साधनों का त्याग। प्रत्येक पसंद सुविधा का त्याग। फेल्प्स ने सबकुछ त्याग दिया था। 5.गंभीर से गंभीर भूल के उपाय हैं, मानने वाला चाहिए : यहमहान् खिलाड़ी शराब के भारी नशे में कार चलाते पकड़ा गया। सर्वश्रेष्ठ जब गिरते हैं, तो पतन की शर्मनाक पताका फहराते हुए, स्वाभाविक रूप से देखे जा सकते हैं। मारिजुआना का धुंआ उड़ाते उनका फोटो, उनके करोड़ों प्रशंसकों को बुरी तरह विचलित कर गया था। किन्तु, फेल्प्स ने अधिक शर्मिंदा नहीं किया। दोष मान लिया। 6.समझाने समझने वाला साथी/गुरु हो तो सब कुछ आसान हो जाता है : बॉबबॉमैन नाम का व्यक्ति, विलक्षण प्रतिभा को पहचानता था। 11 वर्ष के थे फेल्प्स। तब बॉब ने उन्हें स्कूल स्वीमिंग पूल में देखा था। आज बाॅब के बिना फेल्प्स कोई निर्णय नहीं करते। कोच नहीं, अभिन्न सखा हैं वे। जब विश्व स्तर के 77 मेडल -जिनमें 61 गोल्ड- लेकर फेल्प्स नशे की लत का शिकार हो गए थे - तब बॉब ने उन्हें उबारा। फेल्प्स को प्रेरित किया कि वो बच्चों को, कच्चे युवाओं को सिखाएं। आज दोनों कोच हैं! 7.सबसे बड़ा काम है - काम करना : फेल्प्सने पतन से उत्थान का सरल हल निकाला : भयंकर मेहनत करो। उन्होंने काम में खुद को झोंक डाला। 7-7 घंटे तैराकी। वो दिन है, और आज का दिन है - 6 घंटे प्रतिदिन वर्कआउट। यही कारण है कि हम आज जिस फेल्प्स को देखते हैं - उसकी कमर 32 इंच है। बायसेप्स 15 इंच। 13 किलोमीटर प्रतिदिन तैरते हैं। इसलिए 13 हजार कैलोरी खाते हैं। थकान, मृत्यु के समान है। उत्साह, जीवन का सच्चा अर्थ है। फेल्प्स का उत्साह देखने योग्य है। 8.लोगों से ही संसार है, उनके बीच जाएं और लौटें : एकाकीपनने विश्व विजेता को दोषी, दोयम और द्रवित बना दिया। करोड़ों प्रशंसकों में वे रमे रहते थे। फिर अचानक अकेले हो गए। और पिछड़ते गए। भीड़ में हम अकेले ही होते हैं। सिर्फ समझने मानने वाली बात है। किन्तु रहना लोगों के ही बीच है। बच नहीं सकते। श्रेष्ठ होगा कि लौटें। उन्होंने वही किया। रियो में क्या करेंगे? हो सकता है कुछ नहीं। क्या अंतर पड़ता है? हां, जो विजय के ही साथ हैं, उन्हें अंतर पड़ेगा।
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साभार: भास्कर समाचार
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