उसने बचपन के उन दिनों में अपनी मां को सुबह पांच बजे पानी के लिए कतार में लगकर संघर्ष करते देखा था। उसने सार्वजनिक नल पर एक बाल्टी पानी के लिए झगड़े होते देखे थे। और उसने यह भी देखा था कि इतनी जल्दी उठकर भी इसकी गारंटी नहीं थी कि घर में पीने, नहाने और कपड़े धोने के लिए पर्याप्त पानी होगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 72 साल पेंटर और लेखक के रूप में जिंदगी जीने और आजीविका कमाने के बाद उन्होंने कहीं पढ़ा कि प्रति सेकंड पानी की एक बूंद का रिसाव, एक माह में 1000 लीटर पानी की बर्बादी का कारण बनता है। इस आंकड़े ने उन्हें भीतर तक हिला दिया। फिर उन्होंने अपना मिशन स्थापित करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने तय किया कि शेष जिंदगी में वे यथासंभव रिसते पाइप नल सुधारेंगे। वे जहां रहते थे, उसी कॉलोनी से शुरू करके उन्होंने सोसायटी सचिव से कहकर एक बोर्ड लगवाया कि वे दिन के किसी भी समय में रिसते हुए नलों, पाइपों की शिकायत पर ध्यान देकर उन्हें सुधारेंगे। प्रतिसाद इतना जबर्दस्त रहा कि इससे एक व्यक्ति वाले गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) को जन्म दिया नाम है 'द ड्रॉप डेड फाउंडेशन।' इसके तहत वे जगह कोई भी हो, पाइप दुरुस्ती के काम में लगे रहते हैं।
मिलीए, राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित लेखक, चित्रकार और इंद्रजाल कॉमिक्स के लोकप्रिय सुपरहीरो 'बहादुर' के जन्मदाता आबिद सुरती से, जिन्हें आज 80 वर्ष की उम्र में यह चीज से प्यार है सिवाय किसी नल या पाइप से गिरती पानी की बूंद की आवाज के। उन्हें इस आवाज से इतनी नफरत है कि यदि अलसुबह के अंधेरे में भी उन्हें आवाज सुनाई दे तो उठकर तत्काल उसकी मरम्मत करते हैं जैसा कि उनके फाउंडेशन का नाम है भी। इस काम में वे समय अौर स्थान क्या है, इसकी परवाह नहीं करते।
सोसायटी के मामले की तरह शुरू हुई हर रविवार की यह साप्ताहिक गतिविधि बढ़कर हफ्ते के सारे दिनों में फैल गई। आज वे हर सुबह इस संकल्प के साथ उठते हैं कि वे उस दिन जितने मुमकिन हो उतने नल पाइप सुधारेंगे और मुंबई की 'मैक्जिमम सिटी' को 'मिनिमम वैस्टेज सिटी' बनाएंगे। यह उनकी ओर से छोटा-सा योगदान उस महानगर को है, जो इस वर्ष अपर्याप्त वर्षा के कारण पानी के बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मुंबई महानगर पालिका के अनुमान के मुताबिक महानगर में रिसते हुए पाइप और नलों के कारण प्रतिदिन 65 करोड़ लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। यह आंकड़ां बिल चुकाने के अलावा हुई जलापूर्ति को नापने से आया है। इसमें कई हजार लीटर पानी की चोरी भी शामिल हो सकती है। फिर भी रिसाव बहुत ज्यादा है। इस प्रक्रिया में आबिद सुरती अपने रहवासी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में हर साल 400 बड़े रिसाव की मरम्मत करते हैं।
संयोग की बात है कि सुरती गुजरात के एक शाही परिवार में जन्मे थे और उनकी स्वयं की एक हवेली थी। एकदम बचपन में उन्हें मां अपने साथ ले जाती थी और गाड़ियों में सिक्के लादकर बैंक में ले जाए जाते थे। सुरती परिवार के लिए पैसे की कोई समस्या नहीं थी। किंतु नियति आबिद सुरती के लिए कुछ और ही पटकथा लिख रखी थी और उन्हें हवेली छोड़कर मंुबई के फुटपाथ पर आना पड़ा। यह एक ऐसी कहानी है, जिसकी चर्चा करना सुरती को पसंद नहीं है।
उसी समय उन्होंने लेखन और चित्रकला में अपना कॅरिअर शुरू किया, जिसने उन्हें बहुत सम्मान और पुरस्कार दिलाए। जब से उन्होंने अपना यह एनजीओ शुरू किया तो पुरस्कार में उन्हें मिलने वाली नकद राशि इसे काम में लगा दी जाती है। जब पुरस्कारों की राशि खत्म होने लगी तो वे अभिनेता अमिताभ बच्चन के टीवी शो के हिस्से हो गए। अमिताभ ने खुद उनके एनजीओ को अपनी ओर से 11 लाख रुपए दिए। इससे उन्हें भरोसा हुआ कि यदि इरादे नेक हैं तो कुछ कुछ उनकी जिंदगी में आता रहता है और उनका यह प्रिय प्रोजेक्ट चलता रहता है। सबसे बड़ी बात यह है कि खुद लेखन और चित्रकला की सेलेब्रेटी होकर उन्हें सिर्फ ऐसा जमीनी काम करने का ख्याल आया बल्कि उसे उन्होंने तत्काल जमीन पर साकार भी कर दिया। फिर तो काम अपने आप बढ़ता चला गया।
फंडा यह है कि आप अपने आसपास जो भी अच्छा कर सकते हैं, करते रहिए और फिर दखिए कैसे भाग्य कई और चीजों को आपकी दहलीज पर लाकर इसे और भी सफल बनाता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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