बृहस्पतिवार। सुबह के दस बजे हैं। गुनगुनी धूप। गांव बुआन का पंचायत भवन। यहां देश की तकदीर कहे जाने वाले कुल तीस नौनिहाल। खिलती धूप के साथ सबके खिले चेहरे। पंक्तिबद्ध। इतने में आवाज आती है-‘आओ हाथी तुम्हें सिखाएं गिनती, बोलो-एक। आपको मिलेगा केक। बोलो हाथी, दो। मस्त होके सो। बोलो, तीन.. .. .. क्रमश: 6 तक।’ राष्ट्र के इन भावी कर्णधारों को पता ही नहीं चलता कि खेल-खेल वे अंकों की
गिनती सीख रहे। अंकों का खेल खत्म ..। अब तीस बच्चों का यह दल अक्षर, शब्द और वाक्य की कक्षा में मशगूल हो जाता है। यहां उनकी मैडम और भट्टू की सुशिक्षत बेटी सुशीला सहारण उन्हें गुड मार्निंग कहकर कक्षा शुरू करती हैं। ब्लैक बोर्ड पर एक अक्षर लिखकर पूछती हैं, बताओ बच्चों यह क्या है? समवेत जवाब-मैडम ‘ज्ञ’। हौसलाअफजाई.. वेरी गुड। फिर एक शब्द लिख पूछती हैं-बोलो बच्चों यह क्या है? एकत्रित स्वर-‘ज्ञान’। बहुत बढ़िया ..। यहां अक्षर आकार ले रहा तो शब्द बन रहे सार्थक ..।इसे यूं भी समङिाये कि 30 के ग्रुप में पढ़ रहे तीसरी से पांचवीं कक्षा के इन बच्चों का चयन भी अक्षर बोध, शब्द बोध तथा वाक्य विन्यास की परीक्षा के आधार पर ही होता है। अब तक 6 गांवों-भोड़िया, मानावाली, आजादनगर, खैराती खेड़ा, ढांढ़ व बुआना में ज्ञान की अनोखी गंगा बहा चुकीं सुशीला बताती हैं कि एक टीम गांवों में सर्वे करती है। यह जानकर हैरानी हुई कि व्यापक पैमाने पर ग्रामीण अंचल में सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी अक्षर पहचानने में भी असमर्थ होते हैं। वे बच्चे जो अक्षर नहीं पहचानते और जिन्हें शब्द पढ़ना नहीं आता, इस स्पेशल क्लास के लिए चुने जाते हैं। जो बच्चे अक्षर बोध प्राप्त कर जाते उन्हें शब्द ज्ञान देते हैं और शब्द पढ़ लेने वालों को वाक्य बनाने तथा उसे धाराप्रवाह पढ़ने का कौशल प्रदान करते हैं। समाज को सुशिक्षित करने का सुशीला का यह सिलसिला तकरीबन दो साल से चल रहा है। अंकित, अभिनव, स्नेहा, रुपाली, रेखा, राखी, काजल, सुमन जैसे सैकड़ों बच्चे इसका मुफ्त लाभ या तो उठा चुके या उठा रहे हैं। पांचवीं की सुमन बताती है कि अब वह न केवल फरार्ट से पढ़ लेती है बल्कि अपने सहपाठियों को भी ऐसा करने को प्रेरित करती हैं। अंकित कहता है कि अक्षरों को जोड़कर बनाए शब्दों के ज्ञान से वह नशा तथा भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ समाज में चेतना जागृत करेगा।
हालांकि पुलिसकर्मी की एमए बीएड, एमएड, पीजीडीसीए आदि कई डिग्रियां ले चुकीं सुशीला के लिए यह सब आसान भी नहीं था। लेकिन समाज को शिक्षित बनाने की चाह को प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन नामक स्वयंसेवी संस्था ने राह दिखाई और मिशन को मंजिल मिलने की संभावनाएं प्रबल हो उठीं। बकौल 30 वर्षीया सुशीला, पापा पंद्रह साल पहले गुजर गए थे। ऐसे में, मां कमला देवी तथा भाई देशराज का भरपूर सहयोग मिला और अब मंजिल सामने दिखाई दे रही है।
तीन घंटे की क्लास: सुशीला बताती हैं कि हर गांव में 30 बच्चों का ग्रुप बनाकर तीन घंटे की क्लास लगाई जाती है। कभी पंचायत भवन तो कभी अनुमति मिलने पर सरकारी स्कूल में भी। मार्च माह में छठी से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों की कक्षाएं लगाई जाएंगी।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: जागरण समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.