एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
अलग सोचो और करो: अमाल शर्मा मामूली टी स्टाल के मालिक हैं और कोलकाता से 100 किमी दूर चंपाताला गांव में उनका घर है। दुर्भाग्य से उनका मकान उन सैकड़ों मकानों में से एक हैं, जो राष्ट्रीय राजमार्ग 34 के विस्तार में बाधा बन रहे थे। उनके जैसे मकानों के मालिक गांववालों ने मुआवजे में सरकार से 16 लाख रुपए लेकर आवंटित जमीन पर हमने मकान फिर बना लिए। अमाल ने अपना गणित लगाया। उन्होंने सोचा कि नए मकान पर मुआवजे से ज्यादा पैसा लगेगा, इसलिए उस पर पूरा जोर लगाने की बजाय उन्होंने अपना मकान राजमार्ग से 70 फीट पीछे खींचने का फैसला किया। तीन महीने की खोज के बाद वे हरियाणा के एससीएसबी इंजीनियरिंग वर्क्स पहुंचे। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। यह कंपनी पूरी इमारतों को जस की तस दूसरी जगह ले जाने की विशेषज्ञता रखती है। उसने 19 दिसंबर को काम शुरू किया और 31 दिसंबर तक वे मकान को 20 फीट पीछे ले आए थे। शेष काम 16 दिन में पूरा हो जाएगा। 3 लाख रुपए के इस पूरे प्रोजेक्ट में नींव तक चारों ओर से खुदाई, नींव को मिलीमीटर बाय मिलीमीटर धीरे-धीरे उठाना, लोहे की छड़ों वाली ट्रॉली पर रखना और फिर मकान को वांछित जगह पर ले जाना शामिल है।
कंपनी अब तक ऐसे आठ प्रोजेक्ट कर चुकी है, लेकिन किसी टी स्टाल मालिक के लिए किया जाने वाला यह उसका पहला काम है, क्यों वे सारी ऐतिहासिक महत्व की इमारते थीं और उनका संरक्षण जरूरी था। चहां तक सोच और कर्म का सवाल है, अमाल उनके लिए बिल्कुल भिन्न व्यक्ति थे। अमाल ने इस प्रक्रिया में 13 लाख रुपए बचाए।
आपकी करुणा भिन्नता लिए हो सकती है: दो माह पहले ठाणे जिले के ट्रैफिक कांस्टेबल नामदेव हिमगिरी को नारपोली नामक जगह पर भेज दिया गया। यह छोटा-सा गांव जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर स्थित है। वहां जाने के बाद उनकी दोस्ती वडा पाव स्टाल के मालिक लालू घोगरकर से हुई और कुछ दिनों बाद उनके घर-परिवार के बारे में पूछा। उन्हें जानकर धक्का लगा कि 18 साल पहले मात्र छह साल की उम्र में वे गुम हो गए थे और उन्हें अपने मूल गांव परिवार के बारे में कुछ भी याद नहीं। नामदेव ने लालू के परिवार का पता लगाने का निश्चय किया। वे लालू से छोटी-मोटी जानकारी लेते रहते थे, क्योंकि उनकी याददाश्त बहुत धुंधली थी, तो कुछ-कुछ याद जाता था। नदी की तलहटी, हाई-वे, पहाड़ी, नदी और मंदिर ऐसा कुछ। हर बारीक जानकारी जुटाकर नामदेव सप्ताह अंत की छुट्टी में बाइक उठाकर लालू के गांव की तलाश में निकल जाते। पुलिस कांस्टेबल होने से उन्हें इलाके के भूगोल का अच्छा ज्ञान था। फिर पूछताछ का हुनर भी काम आया और वे लालू के गांव पहुंच ही गए। बीती 27 दिसंबर को, 18 साल बाद नामदेव आखिरकार 24 वर्षीय लालू और उनके पालकों की मुलाकात कराने में कामयाब हो ही गए। पुलिस में दर्ज गुमशुदगी की रिपोर्ट बरसों पहले बंद कर दी थी, उसका इस हफ्ते नतीजा निकला। अपनी ड्यूटी से आगे जाकर प्रयास करके नतीजे लाने के लिए उनके अधिकारियों ने उन्हें पुरस्कृत किया।
जीत भी अलग हो सकती है: कभी आपने सुना कि विकेटकीपर के हाथ में गेंद होते हुए भी बल्लेबाज रनआउट हुआ हो, जबकि वह विकेट के मध्य तक ही पहुंच पाया था? या फील्डर को जानबूझकर कैच छोड़ते देखा है? यह मुंबई में पिछले बुधवार को विबग्योर हाईस्कूल और सेंट जोसेफ्स स्कूल के बीच हैरिस शील्ड मैच के दौरान हुआ। विबग्योर खिलाड़ी अपने बाएं हाथ के फिरकी गेंदबाज दक्ष अग्रवाल को दसवां विकेट लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। दक्ष नौ विकेट ले चुके थे और एक पारी में दस विकेट का रिकॉर्ड उनका इंतजार कर रहा था। हालांकि, दसवां खिलाड़ी अाखिरकार दक्ष की गेंद पर रनआउट हुआ, लेकिन अपने साथी की उपलब्धि के लिए अन्य सदस्यों ने जो टीम भावना बताई वह अनोखी थी। दक्ष ने 16.4 अोवर में 56 रन देकर नौ विकेट लिए। उनका एक अोवर मैडन रहा।
फंडा यह है कि साल दर साल हर क्षेत्र में दूसरे लोगों की जिंदगी में कुछ अलग करने के लिए खुद अलग बनें। यह मदद करने और मदद पाने वाले, दोनों व्यक्तियों की जिंदगी का पूरा वर्ष खुशनुमा बना देता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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