आखिरकार सात सालों की जद्दोजहद के बाद नेपाल को अपना नया धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्रात्मक संविधान मिल गया है। रविवार को राष्ट्रपति राम बरन यादव ने देश में नए संविधान के लागू होने का ऐलान कर दिया। वहीं, सात प्रांतीय मॉडल वाले नए संविधान के विरोध में मधेसी पार्टियां सड़कों पर उतर आई हैं, जिस वजह से पूरे नेपाल में हिंसा भड़क उठी है। ताजा प्रदर्शनों में एक व्यक्ति की मौत के साथ ही अब तक हिंसा में मरने वालों की संख्या तकरीबन 40 तक जा पहुंची है। इससे पहले बुधवार को ही नेपाल की 601 सदस्यीय संविधान सभा ने 25 के मुकाबले 507 वोटों से नए संविधान को पारित कर दिया था। पिछले 67 सालों के लंबे लोकतांत्रिक संघर्ष के बाद पहली बार इस नए संविधान को चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने तैयार किया था। राष्ट्रपति राम बरन यादव ने एक विशेष समारोह में कहा, ‘मैं नेपाल की जनता के समक्ष नए संविधान का ऐलान करता हूं। संविधान सभा द्वारा पारित और सभापति की मंजूरी के बाद नया संविधान रविवार यानी, 20 सितंबर, 2015 को लागू हो गया है। इस ऐतिहासिक मौके पर मैं देशवासियों से एकजुटता और सहयोग की अपील करता हूं।’ उन्होंने कहा कि नया संविधान हमारी आजादी, भौगोलिक अखंडता और संप्रभुता को सुरक्षित रखेगा। राष्ट्रपति ने कहा कि ‘संविधान 2072’ कहा जाने वाला नया संविधान देश को एक गणतंत्र बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएगा। उम्मीद है कि संविधान देश की आर्थिक तरक्की में मददगार साबित होगा। मुश्किल में मधेसी: मधेस और थारू समेत कई छोटी पार्टियों ने इस नए संविधान में प्रतिनिधित्व को लेकर विरोध किया था। नेपाल में 2006 से पहले राजशाही का शासन था। नेपाल ने 2007 में खुद को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया था। वहीं, नेपाल के लिए हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे हिंदू समर्थक और राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल के 25 सांसदों ने नए संविधान के विरोध में वोटिंग की थी। जबकि सभा में मधेस पार्टियों के 60 सदस्यों ने सात प्रांतों के मॉडल की वजह से वोटिंग से अपनी दूरी बनाए रखी थी।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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