मनोहर सरकार की योजना फलीभूत हुई तो हरियाणा के सरकारी स्कूलों में आने वाले दिनों में कुशल पेशेवर तैयार होंगे। सरकार स्कूलों में ही छात्रों को रूचि के अनुसार मनपसंद क्षेत्र का प्रशिक्षण देगी। स्कूली शिक्षा के बाद छात्रों को रोजगार के लिए इधर-उधर चक्कर न काटने पड़ें इसलिए स्कूलों में ही दक्ष बना दिया जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा तैयार की जा रही नई शिक्षा नीति में हरियाणा ने अपना मुख्य उद्देश्य ही व्यावसायिक शिक्षा रखा
है। बीते दिनों पंचकूला में मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री शिक्षकों और शिक्षक संगठनों के साथ भी इस पर चर्चा कर चुके हैं। हरियाणा सरकार केंद्र को भेजे जाने वाले मसौदे में भी इसे प्रमुख बिंदु के तौर पर प्रस्तुत करेगी। स्कूलों से ही छात्रों को कुशल कर्मी बनाकर निकालना सरकार का इसमें मुख्य उद्देश्य है। सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने के लिए सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी शिक्षा के क्षेत्र में लाना चाहती है, लेकिन शिक्षकों ने इसका कड़ा विरोध किया है। हालांकि इस पर अभी और विचार-विमर्श होना बाकी है। शिक्षकों और शिक्षक संगठनों को आशंका है कि सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शिक्षा के क्षेत्र में लाकर नौवीं से बारहवीं तक के स्कूलों को निजी कंपनियों को चलाने के लिए सौंप देगी। इससे शिक्षा का निजीकरण हो जाएगा। नई शिक्षा नीति को लेकर चर्चा में शिक्षकों ने प्राथमिक शिक्षा की स्थिति सुधारने व छात्रों को अंक बोध का अधिक से अधिक ज्ञान कराने के लिए अभिभावकों का सहयोग भी मांगा है। शिक्षकों ने बताया है कि बच्चे नहीं आते और अभिभावकों की ओर से शिक्षकों को दोषी ठहराया जाता है। शिक्षकों की ओर से अहम सुझाव ये भी आया है कि सरकारी स्कूलों में छात्रओं का पंजीकरण बढ़ाने के लिए सरकार शौचालयों की व्यवस्था करे। पांचवीं से आठवीं व नौवीं और दसवीं में छात्रओं का ड्राप आउट 20 प्रतिशत है। हरियाणा राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव दीपक गोस्वामी ने कहा कि सरकार के प्रयास बेहतर हैं, लेकिन शिक्षकों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ना होगा।
है। बीते दिनों पंचकूला में मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री शिक्षकों और शिक्षक संगठनों के साथ भी इस पर चर्चा कर चुके हैं। हरियाणा सरकार केंद्र को भेजे जाने वाले मसौदे में भी इसे प्रमुख बिंदु के तौर पर प्रस्तुत करेगी। स्कूलों से ही छात्रों को कुशल कर्मी बनाकर निकालना सरकार का इसमें मुख्य उद्देश्य है। सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने के लिए सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी शिक्षा के क्षेत्र में लाना चाहती है, लेकिन शिक्षकों ने इसका कड़ा विरोध किया है। हालांकि इस पर अभी और विचार-विमर्श होना बाकी है। शिक्षकों और शिक्षक संगठनों को आशंका है कि सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश शिक्षा के क्षेत्र में लाकर नौवीं से बारहवीं तक के स्कूलों को निजी कंपनियों को चलाने के लिए सौंप देगी। इससे शिक्षा का निजीकरण हो जाएगा। नई शिक्षा नीति को लेकर चर्चा में शिक्षकों ने प्राथमिक शिक्षा की स्थिति सुधारने व छात्रों को अंक बोध का अधिक से अधिक ज्ञान कराने के लिए अभिभावकों का सहयोग भी मांगा है। शिक्षकों ने बताया है कि बच्चे नहीं आते और अभिभावकों की ओर से शिक्षकों को दोषी ठहराया जाता है। शिक्षकों की ओर से अहम सुझाव ये भी आया है कि सरकारी स्कूलों में छात्रओं का पंजीकरण बढ़ाने के लिए सरकार शौचालयों की व्यवस्था करे। पांचवीं से आठवीं व नौवीं और दसवीं में छात्रओं का ड्राप आउट 20 प्रतिशत है। हरियाणा राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव दीपक गोस्वामी ने कहा कि सरकार के प्रयास बेहतर हैं, लेकिन शिक्षकों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ना होगा।
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साभार: जागरण समाचार
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