साभार: मैनेजमेंट फंडा (एन रघुरामन)
मंगलवार को सुबह 6.15 बजे मेरे दो छोटे ल्हासा अप्सो नस्ल के चीकू और चीनी काफी बेचैन हो रहे थे। पिछले तीन साल से जब से हमने सेवानिवृत्ति बाद के जीवन के लिए नासिक में एक छोटा-सा मकान खरीदा है, हम गणेश उत्सव के 5वें दिन से छह दिन के लिए यहां जाते हैं, क्योंकि इस दौरान मुंबई में, खासकर पवई में जहां हम रहते हैं काफी शोर-शराबा होता है। अकेले मुंबई में ही हर साल करीब 1.5 लाख गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन होता है। यह शांत जगह अलग-अलग तरह के फूलों वाले पेड़ों से घिरी है, जैसे पारिजात, फ्रंगीपानी, चंपा (गणेशपूजा के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला) गुड़हल, कई तरह के गुलाब, जिनका उपयोग पूजा के लिए होता है। साथ ही गुलमोहर भी, जिसके फूलों का पूजा में उपयोग नहीं किया जाता।
मुंबई से अलग हम उन्हें नासिक में नियमित वॉक के लिए देर से ले जाते हैं, क्योंकि यहां काफी एकांत होता है। उन्हें देरी से परेशानी नहीं थी, बल्कि इस बात से थी कि फूलों की खुशबू के बीच इंसान की गंध भी अा रही थी। खिड़की से बाहर झांका तो देखा कि एक छोटा लड़का घास में गिरे पारिजात के फूल चुनकर अपनी टोकनी में रख रहा है। उसकी कोशिश थी कि गुड़हल और चंपा के फूल भी तोड़ ले। हालांकि, उसे परिसर के बाहर के फूल लेने का हक था, लेकिन मेरा शरीर और दिमाग उसे अपने छोटे हाथों को आगे बढ़ाने और परिसर के अंदर की ओर से फूल तोड़ने की इजाजत नहीं देना चाहते थे, फूल दीवार के एकदम पास थे। मैं परेशान हो रहा था। उसे रोकने के लिए आवाज ऊंची करने ही वाला था कि मेरी चेतना ने मुझे एक क्षण के लिए रोक लिया। मैं हमेशा थम जाता हूं जब मेरे अस्तित्व का आध्यात्मिक- चैतन्य- हिस्सा मेरे जीवन के दैहिक रक्षकों- दिमाग और शरीर के खिलाफ कुछ कहता है। मन ने कहा, 'अतीत में जाओ और अपने आपको देखो, 45 साल पहले नागपुर में छोटे बच्चे के रूप में तुम गणेश उत्सव, नवरात्र पूजा और कई अन्य अनुष्ठानों में अपनी मां के लिए फूल लाया करते थे। तुम भी वही करते थे जो वह छोटा बच्चा अभी कर रहा है- पेड़ों के पीछे छुपना ताकि कोई तुम्हे देख ले। मैंने इंतजार किया कि वह सारे फूल चुन ले। निश्चित रूप से वह खुश नहीं था, क्योंकि कुछ फूल मैंने सोमवार को आने के बाद तोड़ लिए थे। पहली मंजिल की खिड़की से मैंने अपना हाथ बढ़ाया और धीरे-से पारिजात के पेड़ की बड़ी शाखा को हिला दिया। वाह क्या दृश्य था, फूल बरस रहे थे और लड़का उनके बीच घास में कूद पड़ा ताकि फूलों की पवित्रता बनी रहे। उसे लगा कि मां की खुशी के लिए भगवान ने उसकी प्रार्थना सुन ली है। तीन मिनट में उसने चुपचाप सारे फूल चुन लिए और फिर अपने घर की ओर दौड़ पड़ा। घर करीब 200 मीटर की दूरी पर था। मुझे लगा कि मैं 45 साल पीछे दौड़ लगा रहा हूं, जब त्योहार के दिनों में मुझे भी ऐसा ही फूलों का उपहार मिला था। मैंने खिड़की पीछे खड़े आर्मी के अंकल को देखा और सोचा था कि शाखाओं के पीछे छुपकर मैंने उन्हें धोखा दे दिया है, लेकिन आज मुझे पता लगा है कि उन्होंने मुझे ऐसा समझने का मौका दिया था और उन्हें खुशी हुई होगी, जैसी आज मुझे हो रही है। मैं देख सकता था कि बच्चे ने अपनी मां को फूल दिखाते हुए क्या कहा होगा। शायद उसने कहा होगा, 'देखो मैं आपके लिए क्या लाया हूं और देखो ये कितने सारे हैं।' मां ने उसके बालों में हाथ फेरा होगा और हाथ से बास्केट ले ली होगी। मुझे लगा कि मेरी मां स्वर्ग से मुझे दुलार कर रही है। और मेरा मन अपने बगीचे के पेड़ों से रही खुशबू की खुशी से महक रहा था। खुशी की सुगंध पेड़ों की खुशबू पर भारी थी। अंग्रेजी में एक कहावत है, 'हैल्पिंग हैंड्स आर बैटर देन प्रेइंग लिप्स', लेकिन मुझे लगा कि जो हाथ लबों पर अच्छी प्रार्थना लाने में मदद करते हैं वे भी काफी अहम होते हैं।
फंडा यह है कि खुदकी तुलना अपने बीते कल से कीजिए, आप कितने बड़े हो गए हैं, आप कितने परिपक्व हो गए हैं और आप कितने खुश हैं; इनका उत्तर आपको बहुत संतोष देगा। अपनी तुलना इस दुनिया से मत कीजिए।
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साभार: भास्कर समाचार
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