Saturday, September 5, 2015

हरियाणा के ये शिक्षक फैला रहे शिक्षा का उजियारा

गुरु, शिक्षक, आचार्य, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है। इन्हीं शिक्षकों को मान-सम्मान, आदर तथा धन्यवाद देने के लिए एक दिन निर्धारित है, 5 सितंबर जो कि शिक्षक दिवस के रूप में जाना जाता है। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में भले ही बुनियादी शिक्षा का ढांचा गड़बड़ाया हुआ हो, लेकिन शिक्षा की अलख जगाने वाले अनेक लोग इस क्षेत्र में जी जान
से जुटे हैं। शिक्षक दिवस मौका है उन लोगों के काम को प्रकाश में लाने का जो समाज में छाए अज्ञानता के अंधकार को मिटाने में लगे हैं। कुछ ऐसी ही शख्सियतें आपके सामने हैं, जिन्होंने शिक्षा का उजियारा फैलाने को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना रखा है।
अथक परिश्रम और लक्ष्य बच्चों को मंजिल पहुँचाना: शिक्षा देना तो हर शिक्षक की ड्यूटी है। लेकिन अपने विद्यार्थी के लिए सेतु बन उसे लक्ष्य तक पहुंचाने वाले महाबीर जैसे शिक्षक बहुत ही कम मिलते हैं। फतेहाबाद के धांगड़ राजकीय प्राथमिक विद्यायल के सेंटर इंचार्ज महाबीर के मार्गदर्शन में विद्यार्थी आज विभिन्न क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। उनके इसी अथक परिश्रम का परिणाम है कि कब-बुलबुल में महाबीर प्रसाद से प्रशिक्षित चार विद्यार्थियों को राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है। वह स्काउट्स एवं गाइड में प्री-एएलटी टेस्ट पास करने वाले जिले के एकमात्र प्राइमरी शिक्षक हैं। महाबीर की मेहनत के चलते ही धांगड़ विद्यालय सौंदर्यीकरण योजना में ब्लॉक में अव्वल आया तो सीआरपी कार्यक्रम में दूसरे नंबर पर रहा। जिलास्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता में धांगड़ स्कूल को प्रथम स्थान दिलवा कर बेहतर कोच की भूमिका भी निभाई है। अपने योगदान के लिए महाबीर को कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। 
ज्ञान की जोत जलाने को महाप्रबंधक से बने शिक्षक: सुबह से शाम बस शिक्षा के नाम। मन में बस एक ही धुन किसी तरह बच्चों का बेहतर भविष्य बन सके। पिछले 10 साल से दिन में 15 घंटे नि:शुल्क शिक्षा देकर बच्चों का अंग्रेजी ज्ञान सुधार रहे खारिया गांव निवासी इंद्रदेव आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में जनरल मैनेजर के पद से रिटायर्ड होने के बाद इंद्रदेव समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। इसके लिए वह राजस्थान के जयपुर में एक एनजीओ के माध्यम से सामाजिक कार्यों से जुड़ गए। कार्य में पारदर्शिता नहीं मिलने पर इंद्रदेव का मन कुछ ही दिनों में वहां ऊब गया। इंद्रदेव एक दिन गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के लिए अपने गांव आए। यहां अपने सहपाठी व रिटायर्ड डीईओ ओमप्रकाश आर्य से मिलकर पता लगा कि गांव के बच्चे अंग्रेजी में बहुत पिछड़े हुए हैं, जो स्नातक हैं, उन्हे भी अच्छे से अंग्रेजी नहीं आती। बस यहीं से शुरू हुआ बदलाव सफर। मन में ठान लिया कि अब इसी दिशा में आगे बढ़ना है। इसके बाद रिटायर्ड जीएम मास्टरजी बन गए।
शिक्षा से संवारा बेसहारों का जीवन: गुरु भगवान से बड़ा होता है, ये बात साबित की है कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा ने। शहर की सड़कों पर रिक्शा चलाकर पढ़ाई करने वाले एक युवक को उन्होंने ऐसे तराशा कि वह बीबीसी लंदन में 30 वर्ष तक रिपोर्टर रहा और अब लंदन में ही अपने एक निजी न्यूज चैनल का मालिक है। उनका कोई शिष्य जज है तो कोई आईएएस अधिकारी। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में जनवरी 1963 में दर्शन शास्त्र विभाग में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर आए डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा ने छात्रों की प्रतिभा को पहचाना। फिर रात को 10-11 बजे तक अपने ही घर में इन बच्चों को शिक्षा देना शुरू कर दिया। यूनिवर्सिटी में पढ़ने आने वाले कई छात्र इनके घर पर ही ठहरते थे। डॉ. सिन्हा बताते हैं कि उस समय कुरुक्षेत्र में कोई संसाधन नहीं थे। आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ था। वह रात के 10-11 बजे तक महादेव मोहल्ला आदि में जाकर बच्चों को पढ़ाते थे। जिन बच्चों के पास फीस के पैसे नहीं होते थे, उनकी फीस भी भर देते थे।  
गांव की पहली एमए पास महिला ने चालीस साल तक पढ़ाए बच्चे: लगभग 55 साल पुरानी बात है। उत्तरप्रदेश की तत्कालीन हापुर तहसील के अकवाली गांव की रहने वाली कमलेश नाम की लड़की कॉलेज जाने लगी। कमलेश के पिता ने अपनी बेटी को रुकने नहीं दिया। असर ये पड़ा कि कमलेश अकवाली गांव की पहली एमए पास करने वाली लड़की बन गई। उसके बाद अन्य लड़कियों में भी पढ़ाई के लिए जज्बा पैदा हुआ। किसे पता था कि ये ही कमलेश आगे चलकर लगातार 40 सालों तक हजारों बच्चों में शिक्षा की अलख जगाएगी। कौन जानता था कि इसी कमलेश मलिक से ज्ञान अर्जित कर युद्धवीर मलिक सरीखे आईएस और श्रीनिवास सरीखे आईपीएस तैयार होंगे। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की ब्रांड एंबेसडर रह चुकी मेघना मलिक की मां कमलेश बताती हैं कि जिस समय हम पढ़ते थे या फिर पढ़ाते थे। उस समय ज्यादा अंतर नहीं था, लेकिन अब गुरु और शिष्य दोनों का ही एटीट्यूट कमर्शियलाइज्ड हो गया है। इस पर चिंतन की जरूरत है। 
मूक-बधिरों के जीवन में कर रहे आखर ज्ञान का उजाला: शहर के ब्रह्मचारी कौशलेंद्र मूक-बधिर बच्चों के जीवन में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। बिना किसी सरकारी सहायता से चलने वाले विद्यालय में मूक बधिर बच्चों को शिक्षित कर वे इन्हें आत्मनिर्भर बना रहे हैं। आज यहां से पढ़कर निकले 40 से अधिक बच्चे विभिन्न पदों पर काम कर रहे हैं। श्वेत कटिवस्त्र धारण करने वाले यह संन्यासी कौशलेंद्र वर्तमान में शहर के सैनिक नगर में वर्ष 1986 से श्री सच्चा मूक बधिर विद्यालय चला रहे हैं। इससे कई साल पहले उन्होंने श्री सच्चा धाम आश्रम की स्थापना की थी। शुरुआत में इसी आश्रम में मूक बधिर बच्चों के लिए सिर्फ छात्रावास बनाया, लेकिन 1986 में मूक बधिर विद्यालय की स्थापना की गई। आज इस विद्यालय में 115 मूक बधिर बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ब्रह्मचारी कौशलेंद्र मूक-बधिर बच्चों को किताबी ज्ञान देने से ही संतुष्ट नहीं होते, बल्कि आत्मनिर्भर भी बनाते हैं। कंप्यूटर का ज्ञान देकर इन्हें मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र भी दिया जाता है। 
जानलेवा हमले के बाद भी नहीं डिगे कदम: शिक्षा शिक्षक से मिले, शिक्षक की ही पौर। शिक्षक ही वह देव है जिस सम कोई न और। कविता की ये चंद लाइनें एमडीयू के आईएचटीएम संस्थान के पूर्व डायरेक्टर प्रो. आशीष दहिया पर बिलकुल सटीक बैठती है। सोनीपत के तिहाड़ा कलां गांव से निकलकर प्रो. दहिया ने शिक्षा की बुलंदियों को छुआ। भोपाल में पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार के संस्थान से होटल मैनेजमेंट की शिक्षा ग्रहण की। जुलाई 2009 में उन्होंने एमडीयू में ज्वाइन किया। यहां पर उन्होंने आईएचटीएम के डायरेक्टर का कार्यभार संभाला। दिसंबर 2013 में कार्यालय के अंदर एक छात्र ने उन पर जानलेवा हमला कर दिया, जिस का कारण आज तक स्पष्ट नहीं हो सका। गोली लगने से वे जख्मी हुए। लोगों ने उन्हें घर पर ही रहने की सलाह दी, लेकिन उनके कदम नहीं डगमगाए। कुछ समय बाद ही फिर से अपना काम संभाला और बच्चों को पढ़ाने लगे। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी लगन को देखते हुए पिछले माह उन्हें महेंद्रगढ़ की सेंट्रल यूनिवर्सिटी में डीन नियुक्त कर दिया गया। 

साभार: अमर उजाला समाचार 

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