हरियाणा प्रदेश में शिक्षा की दशा सुधारने के लिए करोड़ों
रुपया पानी की तरह बहाने के बावजूद शिक्षा का स्तर चिंतनीय है। सरकारी
स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं और चयनित शिक्षकों की नियुक्ति
प्रक्रिया कोर्ट में फंसी है। आज सरकारी शिक्षकों के करीब 40 हजार पद खाली
हैं। यही कारण है कि राज्य के अनेक जिलों में सैकेंडरी और सीनियर सैकेंडरी
स्कूलों का रिजल्ट इस बार भी 50 प्रतिशत से भी कम रहा। यही एक बड़ा कारण
है
कि सरकारी स्कूलों में साल दर साल नामांकन घटता जा रहा है। प्रदेश मेें
सैकड़ों स्कूल ऐसे हैं, जहां स्कूल भवन है, लेकिन पढ़ाने वाला कोई नही।
प्रदेश में पहली बार आई भाजपा सरकार शिक्षा की गुणवत्ता और बोर्ड परीक्षा
परिणाम में सुधार लाने के दावे कर रही है लेकिन सच्चाई यह है कि जब तक
स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं ही नहीं होंगी तो सरकार की यह मंशा कैसे
पूरी होगी? दरअसल केवल पैसा खर्च करने से ही शिक्षा के ग्राफ को ऊपर नही
उठाया जा सकता। इसके लिए शिक्षा विभाग को सही मैनेजमेंट की भी आवश्यकता है।
क्योंकि जहां ज्यादा बच्चे है, वहां अध्यापक नही हैं और जहां अध्यापक है
वहां पढ़ने वाले नही है। शिक्षा को
प्रभावित करने के पीछे कई कारण है। इसमें सबसे बड़ा प्रभाव आरटीई का पड़ा
है। आरटीई लागू होने पर न तो विद्यार्थियों को आठवीं तक फेल किया जा सकता
था और न ही उसे गलती करने पर सजा मिल सकती। इसका सीधा प्रभाव शिक्षा पर
पड़ा। सरकार ने वीरवार को विधानसभा में आठवीं में बोर्ड लागू करने और
फेल-पास का सिस्टम लागू करने के संकेत दिए हैं, ऐसा होता है तो निश्चित तौर
न केवल मिडल का परिणाम सुधरेगा। बल्कि इसका असर आने वाले सालों में
सेकेंडरी कक्षा के परीक्षा परिणाम पर भी दिखेगा। अभी
प्रदेश में हालत यह हैं कि साढ़े तीन हजार से अधिक गेस्ट टीचर हटाए जा
चुके हैं और 9044 पात्र जेबीटी अध्यापक नियुक्ति के इंतजार में हैं। शिक्षा
का अधिकार अधिनियम तो शैक्षणिक सुधार की गारंटी है बशर्ते इसके अनुरूप
व्यवस्था और क्रियान्वयन होना चाहिए। सरकार स्कूलों में योग्य शिक्षकों की
तैनाती करे उन्हें सम्मानजनक वेतन दे, विद्यालयों में
मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति करें और रोचक पाठय सामग्री को पढ़ाई में शामिल
करें तो निश्चित तौर पर शैक्षणिक स्तर में सुधार होगा।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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