मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
स्टोरी 1: वे एक छोटे कस्बे के सिविक स्कूल में पढ़ती थीं। जब उनकी अधिकतर सहेलियां गुड़ियों से खेलतीं तब वे एरोप्लेन से खेलने लगी थीं। धीरे-धीरे प्लेन उनका पैशन बन गया। फिर पास के शहर में जाकर उन्होंने
इंजीनियरिंग की पढ़ाई और बेहतर संभावनाओं के लिए अमेरिका चली गईं। लेकिन उन्होंने कभी अपने मितव्ययिता वाले दिनों को भुलाया नहीं। जब उनके जूते टूट गए तो नए खरीदने के स्थान पर अंजान अमेरिकी भूमि पर उन्होंने जूते ठीक करने वाले को तलाशा और 10 डॉलर देकर ठीक कराया। जबकि इसी कीमत में नए जूते खरीद सकती थीं। उनका मानना था कि इन पैसों से जूते ठीक करने वाले के परिवार को अच्छा भोजन मिल सकता है। दूसरा बड़ा कारण यह था कि उनके नए जूते के चमड़े के लिए किसी जानवर की जान जाती। उन्होंने कई छात्रों को अपने खर्च पर एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग सीखने के लिए नासा बुलाने में मदद की। यही उनका ऑफिस भी था। उन्होंने अपने पूरे जीवन के लिए जरूरत भर की बचत ही की। हम बात कर रहे हैं, करनाल हरियाणा में जन्मी भारतीय एस्ट्रोनॉट कल्पना चावला की, जिनकी 1 फरवरी 2003 को स्पेस शटल कोलंबिया के हादसे में मौत हो गई थी। यह हादसा टेक्सास के आकाश से धरती के वायुमंडल में प्रवेश के समय हुआ था। तब वे 28वें स्पेस मिशन को पूरा करने वाली थीं।
स्टोरी 2: पिछले साल मैं पुणे के एमजी रोड के नजदीक एसजीएस मॉल में अपने दोस्त के साथ जूते खरीदने गया था। मैं अकेला खरीदार था और तीन सेल्सपर्सन मौजूद थे। एक चौकाने वाला खरीदार वहां पहुंचा और सारी नजरें उन पर जा टिकीं। सभी लोग मुझे दरकिनार कर उन्हें अटेंड करने लगे और मैं उनकी इस बेरुखी का आनंद लेने लगा। खरीदार की नज़र एक जोड़ी अच्छे जूते पर जा टिकी और उन्होंने इसकी कीमत पूछी, जो करीब 8000 रुपए थी। खरीदार ने आश्चर्यजनक जवाब दिया कि उसे इतने महंगे जूते नहीं चाहिए। साथ में मौजूद बहू ने पूछा, 'पापा क्या आपको पता है कि आपके बेटे किस कीमत के जूते पहनते हैं।' खरीददार ने कहा,' वे पहन सकते हैं, क्योंकि उनके पिता अमीर आदमी हैं। मैं नहीं खरीद सकता, क्योंकि मेरे पिता अफोर्ड नहीं कर सकते।' उन्होंने कम कीमत के जूते खरीदे और चले गए। खरीददार कोई और नहीं इंडस्ट्रियलिस्ट राहुल बजाज थे। उन्होंने अंजाने में ही मेहनत से कमाए पैसों की कीमत समझा दी।
स्टोरी 3: हर साल ऑस्ट्रेलियन ओपन में एक बुजुर्ग युगल प्लेयर्स बॉक्स में मौजूद होता है- बॉब और डायना कार्टर। वे ऑस्ट्रेलिया के इंटरनेशनल कोच पीटर कार्टर के पेरेंट्स हैं। रविवार को संपन्न हुए टुर्नामेंट में वे फेडरर का उत्साह बढ़ा रहे थे। 26 साल पहले पीटर कार्टर ने युवा फेडरर के जीनियस को पहचान लिया था। तब ही ठान लिया था कि उसे सर्वकालिक श्रेष्ठ खिलाड़ी बनाना है। वे फेडरर के पहले कोच नहीं थे, लेकिन वे व्यक्ति थे, जिसने उन्हें स्विटजरलैंड के बेसल के अंधकार से निकाला और अंतरराष्ट्रीय स्तर की श्रेष्ठता के दरवाजे तक पहुंचाया। लेकिन 2002 में एक दुखद कार दुर्घटना में 37 साल के कार्टर की मौत हो गई। वे अपनी पत्नी के साथ छुट्टियों पर जा रहे थे। तब फेडरर सिर्फ 21 साल के थे। इस घटना ने उन्हें तोड़ दिया था। तब से फेडरर पीटर के पेरेंट्स के भ्रमण के सारे खर्च उठाते हैं। इसमें एयरलाइन से यात्रा के प्रथमश्रेणी के टिकट तो होते ही हैं, वे उसी होटल में रुकते हैं, जिसमें फेडरर ठहरते हैं। ये कपल फेडरर को ऐसे सपोर्ट करता है जैसे वह उनका बेटा हो। वे उसमें अपने बेटे पीटर को देखते हैं। फेडरर अपने जीवन और कॅरिअर में कार्टर परिवार के योगदान को कभी नहीं भूलते।
फंडा यह है कि अगर आप बड़ा बनना चाहते हैं तो दिल बड़ा करना होगा और मितव्ययी बनना होगा। मानवीयता से ही मिलती है सच्ची सफलता।
फंडा यह है कि अगर आप बड़ा बनना चाहते हैं तो दिल बड़ा करना होगा और मितव्ययी बनना होगा। मानवीयता से ही मिलती है सच्ची सफलता।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.