एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
इस सप्ताह की शुुरुआत में मैं इस अखबार के कार्यक्रम के सिलसिले में छिंदवाड़ा जा रहा था। मुंबई एयरपोर्ट के एक एयरलाइन चेक-इन काउंटर पर पहुंचने के बाद एक युवा ने मेरा स्वागत किया और बहुत ही विनम्रता से कहा कि यह काउंटर प्राय: यात्रा करने वाले और वह भी प्लेटीनम मेम्बरशिप वाले लोगों के लिए है। जब मैंने अपनी सदस्यता की पुष्टि की तब उसने मुझे अंदर जाने दिया। हालांकि, जैसे वह युवक मुखातिब हुआ, उससे कोई अच्छी भावना पैदा नहीं हुई। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कुछ ही देर बाद एक अन्य यात्री से उसका झगड़ा हो गया, जिसने बहुच ऊंची और उत्तेजित आवाज में पूछा, 'मेरी मेम्बरशिप पूछने वाले आप कौन होते हैं?' मैंने मुड़कर देखा कि वह कर्मचारी अपने व्यवहार भाषा में रूखा नहीं था। उसका लहजा विनम्रताभरा था, लेकिन जहां उसका बायां हाथ यात्री से संवाद में सकारात्मक संकेत दे रहा था, वहीं उसका दायां हाथ उसकी पेंट की जेब में था, जिसके कारण उसकी देहबोली से अहंकार व्यक्त हो रहा था, जबकि उसके व्यवहार में कहीं भी अहंकार नहीं था। कोई अचरज नहीं कि वह यात्री विचलित हो गया था और मुझे भी असहजता महसूस हुई थी। एक अधिकारी वहां आए, उन्होंने खेद जताया और मामला सुलझ गया। लेकिन कोई भी इसका कारण नहीं जान पाया। काउंटर से बाहर आने के बाद मैंने अधिकारी को इशारे से बुलाया और उनका ध्यान झगड़े के संभावित कारण की ओर दिलाया और वहां से चला गया।
नागपुर की मेरी फ्लाइट दो घंटे देर से थी। मैं एयरपोर्ट लाउंज में बैठकर लैपटॉप पर घंटेभर अपने काम में मशगुल रहा और फिर बोर्डिंग गेट पर कुछ हलचल होने लगी, क्योंकि एयरलाइन ने फ्लाइट में एक घंटे और देरी होने की घोषणा की। यात्री थोड़े उत्तेजित तो थे, लेकिन मौसम की अनिश्चितता और मंुंबई एयरपोर्ट पर मरम्मत के बड़े काम के कारण को समझ रहे थे। लेकिन आधे घंटे बाद ही 40 मिनट और देर होने की घोषणा ने तो यात्रियों का संयम तोड़ दिया। कुल-मिलाकर चार घंटे की देर हो चुकी थी। यात्री बहुत गुस्से में आकर झल्लाहट जाहिर करने लगे। स्थिति को शांत करने के लिए जन-संपर्क के उन्हीं अधिकारी को बुलाया गया, जिनसे मैं सुबह मिल चुका था। वे हर यात्री से माफी मांग रहे थे। उन्होंने देखा कि सुरक्षा गेट पर तैनात उनके कर्मचारी अपने-अपने मोबाइल फोन पर वीडियो गेम खेल रहे थे। लतीफे सुना रहे थे और अापस में जोर-जोर से हंस रहे थे। जब अचानक किसी परेशान यात्री ने उनसे उड़ान की स्थिति के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब तो ठीक तरह से दिया, लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान थी, जो थोड़ी देर पहले आपस में किए मजाक का असर था। उनके काम में इसकी जरूरत नहीं थी।
मानव मनोविज्ञान कहता है कि जब आप परेशानी में हों तो किसी को हंसते देखना मुश्किल होता है। मौजूदा स्थिति में जहां यात्री परेशानी में थे, कर्मचारी खुश दिखाई दे रहे थे। अधिकारी को यह गलती समझ में गई और उन्होंने स्टाफ से सतर्कता बरतने और अपने 'मोबाइल खिलौने' को सिर्फ फोन कॉल का जवाब देने तक सीमित रखने को कहा। वे मुझ तक आए और मुझे सुबह सलाह देने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, 'हम सबमें बुरी आदतें होती हैं। जरूरी नहीं कि खराब आदतें हों तो आप खराब व्यक्ति भी होते हैं, लेकिन एक कर्मचारी और वह भी एक एयरलाइन कंपनी में कर्मचारी हों तो बिज़नेस और जॉब के रूप में आपको इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। मेरे ये लड़के हैं तो बहुत अच्छे बस थोड़े सुधार की जरूरत थी।' जिस तरह उन्होंने अपने कर्मचारियों और यात्रियों, दोनों को संभाला उससे मैं प्रभावित हुआ।
फंडा यह है कि बुरी आदत के लंबे समय तक बने रहने के असर से नौकरी भी जा सकती है। बेहतर हैं नजऱ आते ही सुधार लिया जाए।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.