Monday, December 12, 2016

सावधान: बच्चों को बहरा कर रहा है हेडफोन का अधिक इस्तेमाल

आज के दौर में तीन साल के बच्चे भी हेडफोन लगाते दिख जाते हैं। कई बार तो अधिक समय तक ऐसा होता है। छुटि्टयों या त्योहारों के मौसम में दुकानों पर ऐसे हेडफोन भी दिखते हैं, जिन्हें अच्छी क्वालिटी वाले साउंड के साथ-साथ बच्चों के कानों के लिए सुरक्षित बताया जाता है। कुछ हेडफोन में वॉल्यूम सेटिंग होती है कि उससे
अधिक आवाज में बच्चा कुछ सुन नहीं पाएगा। माता-पिता भी उस पर भरोसा कर लेते हैं कि कम से कम बच्चों की सेहत पर बुरा असर नहीं होगा। लेकिन, बच्चों की विशेषज्ञ रिहाना का मानना है कि इस तरह की अनदेखी गलत है, यह बच्चों को बहरा बना सकती है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस-गैजेट की सिफारिश करने वाली वेबसाइट 'द वायरकटर' ने 30 हेडफोन के निष्कर्ष में पाया कि वे आवाज बढ़ाने की सीमा तय नहीं करते हैं। निम्न क्वालिटी वाले हेडफोन ज्यादा तेज आवाज करते हैं, जो कुछ मिनटों में ही कानों को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलेराडो हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक ऑडियोलॉजिस्ट कोरी पोर्टनफ कहते हैं- यह बहुत महत्वपूर्ण निष्कर्ष है। गैजेट निर्माता अपने प्रोडक्ट को लेकर बड़े दावे करते हैं, लेकिन वे एक्यूरेट नहीं होते हैं। टोरंटो स्थित हॉस्पिटल फॉर सिक चिल्ड्रन में चीफ ओटोलेरिन्गोलॉजिस्ट डॉ. ब्लेक पेपसिन कहते हैं, यह निष्कर्ष उन माता-पिता के लिए वेक-अप कॉल की तरह है, जिनके बच्चे कम उम्र में हेडफोन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हेडफोन निर्माता कंपनियों को आपके बच्चों के स्वास्थ्य की फिक्र नहीं होती। वे केवल उत्पाद बेचने में रुचि रखती हैं। 
साउंड डेसीबल: 80 डेसिबल 70 का दुगुना और 90 डेसिबल चौगुना होता है। अगर 100 डेसिबल है, तो केवल 15 मिनट ही उसे उचित है, अगर 108 डेसिबल हो तो केवल 3 मिनट काफी हैं। यह अलग बात है कि अमेरिका जैसे देशों में अधिकतम डेसिबल का कोई नियम नहीं है। 
वर्ष 2015 की रिपोर्ट के अनुसार 8 से 12 वर्ष उम्र वाले 2600 में से 1300 बच्चे रोजाना हेडफोन पर संगीत सुनते हैं, उतनी ही संख्या के दो तिहाई किशोर बच्चे भी ऐसा करते हैं। सुरक्षात्मक रूप से संगीत सुनने के लिए वॉल्यूम और अवधि का ख्याल रखना चाहिए, लॉउड साउंड तो बिल्कुल नहीं। इस स्थिति में ख्याल रखना होगा कि हमारा बच्चों का फ्री टाइम उनके कानों की कीमत नहीं है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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