मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
स्टोरी 1: वह कबाड़ीवाला नामक ओबीसी वर्ग से था। रोज की भाषा में कुछ जगह पर उन्हें टोंगा वाला और गधेड़ी वाला भी कहते थे। स्कूल में हर कोई उसे इसी नाम से बुलाता और उसे बहुत अपमान महसूस होता।
लगातार के व्यंग्यबाणों से हताश होकर वह एक दिन अपने दादाजी की गोद में बैठकर खूब रोया, जिन्होंने उसे समझाते हुए बताया कि उनका परिवार कथाकथन करने वाले तबके से है, जो घोड़े या गधे द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी पर सवार होकर दिल्लीभर में घूमकर अलग-अलग इलाकों की कहानियां सुनाते थे, जो उन्होंने अपनी जिदंगी में देश के विभिन्न हिस्सों में घूमकर जानी थीं। यह हमारे देश की प्राचीन परम्परा की श्रुति और स्मृति का ही हिस्सा है। यह विस्तृत विवरण अपनी जाति के बारे में उसकी धारणा बदलने के लिए काफी था। बाद में वह रंगमंच कला का प्रशिक्षण लेने राष्ट्रीय बाल भवन गया, जहां उसे बताया गया कि उसका हिंदी में बोलने का लहजा और उच्चारण खराब है। लेकिन इससे वह निराश नहीं हुअा थो, क्योंकि दादाजी ने उसकी ऊर्जा को दिशा दे दी थी। उसने राष्ट्रीय भाषा में महारत हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की। फिर वह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुंचा, जहां उसे एक फिल्म में सहायक निर्देशक के बतौर काम करने का मौका मिल गया। थिएटर ने उसे उस जगह पहुंचाया, जिसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था, लेकिन उसने तो कुछ और ही सोच रखा था। वह वहीं मौका अन्यों को भी देना चाहता था, जो उसे मिला था ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला पिछड़ेपन और उसी पेशे में फंसे रहने के चक्र को तोड़ा जा सके।
इस तरह दिल्ली के शाहजहांनाबाद स्थित एक छोटे से कमरे में टैलेंट (टीम एंड एसोसिएशन इन लर्निंग एजुकेशन एंड नेचरल थिएटर) का जन्म हुआ। जहां निश्चित समय पर कई बार बच्चे अभ्यास करते या किसी नाटक पर पूरी शिद्दत से चर्चा करते देखे जा सकते हैं, जो वे रंगमंच पर प्रस्तुत करने वाले होते हैं। इरशाद आलम से मिलिए, जिन्होंने वंचित बच्चों को अपनी प्रतिभा निखारने और रंगमंच कला के जरिये शिक्षित करने के लिए टैलेंट की स्थापना की। उनका उद्देश्य बेचैनी से भरे इन अतिसक्रिय बच्चों की ऊर्जा को सही दिशा देना है। ये रिक्शा वाले, राजगीर, सुतार और ऐसे ही रोज की आमदनी पर निर्भर लोगों के बच्चे हैं। रोज कमाना और रोज खर्च करना की जिंदगी में पालकों के पास बच्चों को सही दिशा देने का वक्त नहीं होता और इस तरह की कोई सोच ही विकसित हो पाती है।
टैलेंट थिएटर वर्कशॉप से निकले बच्चे नियमित रूप से नाटक पेश करते हैं और कुछ ने तो 'पोगो' जैसे चैनलों पर भी प्रस्तुति दी है। ऐसे प्रयासों से आलम ने कई किशोर जेबकतरों शरारतियों को सुधारने में कामयाबी पाई है। ऑटो ड्राइवर ड्रग एडिक्ट के पुत्र अल नवास को सांस्कृतिक कोटे पर किरोड़ीमल कॉलेज में प्रवेश पानी में कामयाबी मिली है। आज टैलेंट नई दिल्ली नगर पालिका के 36 स्कूलों में थिएटर क्लासेस चलाता है और उन्हें प्रोत्साहन देता है, जिनकी प्रतिभा अन्यथा पहचानी नहीं जाती।
स्टोरी 2: वहअपने मुंह में सोने का चम्मच लेकर पैदा हुआ था अौर उसे जिंदगी की सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं, लेकिन वह यह देखकर बहुत बेचैन हो जाता कि उसकी गली में अनाथ बच्चे आकर ड्रम बजाते और लोगों का ध्यान आकर्षित करके पहनने के लिए कपड़े मांगते। अनाथ बच्चों का इस प्रकार मदद मांगना उसे गहराई तक विचलित कर देता। इसका उस पर गहरा असर हुआ और वह गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने लगा। उसने पाक कला में अध्ययन-प्रशिक्षण जारी रखा और शेफ बन गया, लेकिन शेफ की कैप पहनने की बजाय वह भोजन देने वाली आंगनवाड़ियों के लिए काम करने लगा। वह लोगों से गेहूं-चावल मांगता और उनके लिए भोजन बनाता, जिन्हें दिनभर में शायद एक चाय भी नसीब नहीं हो पाती है, लेकिन इससे उन्हें संतोष नहीं मिला।
2006 में वीके महादेव प्रसाद ने आखिरकार केरल के कोझीकोड़ में वंचित तबकों की लड़कियों के लिए 'सुकृतम गर्ल्स होम' की स्थापना की ताकि वे गरीबी से जर्जर जिंदगी के उस दुश्चक्र को तोड़ सकें,जो उनके अल्प शिक्षित पालक नहीं तोड़ सके। अपना घर गिरवी रखकर उन्होंने पैसे जुटाएं और गर्ल्स होम के लिए जमीन खरीदी तथा उन छात्राओं की जिंदगी बदलने का निश्चय किया, जिनके बारे में उन्हें भरोसा था कि यदि उन्हें सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन दिया जाए तो वे समाज में विशाल परिवर्तन लाएंगे। अब सिर्फ प्रसाद को अपने काम की दिशा मिल गई बल्कि उन लड़कियों की ऊर्जा को भी सही राह मिल गई।
फंडा यह है कि यदि आप बच्चों की ऊर्जा को सही दिशा देने में उनकी मदद करेंगे, तो वे ऐसे चमत्कार कर सकते हैं, जो किसी को भी हैरत में डाल दें। उर्जा को दिशा देने के बाद उनमें बदलाव देखिए।
2006 में वीके महादेव प्रसाद ने आखिरकार केरल के कोझीकोड़ में वंचित तबकों की लड़कियों के लिए 'सुकृतम गर्ल्स होम' की स्थापना की ताकि वे गरीबी से जर्जर जिंदगी के उस दुश्चक्र को तोड़ सकें,जो उनके अल्प शिक्षित पालक नहीं तोड़ सके। अपना घर गिरवी रखकर उन्होंने पैसे जुटाएं और गर्ल्स होम के लिए जमीन खरीदी तथा उन छात्राओं की जिंदगी बदलने का निश्चय किया, जिनके बारे में उन्हें भरोसा था कि यदि उन्हें सही शिक्षा और उचित मार्गदर्शन दिया जाए तो वे समाज में विशाल परिवर्तन लाएंगे। अब सिर्फ प्रसाद को अपने काम की दिशा मिल गई बल्कि उन लड़कियों की ऊर्जा को भी सही राह मिल गई।
फंडा यह है कि यदि आप बच्चों की ऊर्जा को सही दिशा देने में उनकी मदद करेंगे, तो वे ऐसे चमत्कार कर सकते हैं, जो किसी को भी हैरत में डाल दें। उर्जा को दिशा देने के बाद उनमें बदलाव देखिए।
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साभार: भास्कर समाचार
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