एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
रविवार को पूरा दिन जोरदार बारिश होती रही। मुंबईकर उषा प्रताप मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाईवे पर यात्रा कर रही थीं। घाट में हरियाली का आनंद लेते हुए वे आगे बढ़ रही थीं। उनकी कार के वाइपर बूदों के साथ थिरक रहे थे। अचानक स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस ने कार को तेज गति से ओवरटेक किया। सड़क पर भरा पानी कार को पूरी तरह
तर कर गया, लेकिन इस बात की उन्हें इतनी नाराजगी नहीं हुई थी, क्योंकि यह तो हमारे देश में कई ड्राइवरों का नियम है, लेकिन जिस तेज गति से बस हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ रही थी, उससे उनके मन में दुर्घटना की आशंका घर कर गई। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बस में बैठे यात्रियों के लिए वे प्रार्थना करने लगीं, लेकिन उन्हें लगा कि बेकाबू ड्राइवर के बारे में किसी को सूचना देना चाहिए। यह हाईवे दुर्घटनाओं के लिए बदनाम है। उषा जैसी आम महिला को ट्रांसपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के किसी सीनियर व्यक्ति का नाम ज्ञात होना मुश्किल है। फिर भी उन्होंने अपना पैर एक्सीलेटर पर रखा और बस के नजदीक पहुंचकर उसका नंबर नोट किया। उन्होंने कार किनारे खड़ी की और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को इस बारे में ट्वीट किया। उन्हें संतोष था कि उन्होंने जिम्मेदार नागरिक के नाते अपनी चिंता उच्च स्तर तक जता दी थी। वे तो ड्राइवर को जानती थीं और ही उससे कोई रंजिश थी। उनका डर बस यह था कि जो यात्री बस में बैठे हैं उन्हें कुछ नहीं होना चाहिए। 90 मिनट बाद उन्हें जवाब मिला। वो भी स्वयं मुख्यमंत्री फडणवीस की ओर से। उनका पहला शब्द था - सॉरी और फिर आगे उन्होंने लिखा था - जांच के बाद ड्राइवर संदीप के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। संवेदनशीलता को समझते हुए फडणवीस ने अंत में एक सुखद पंक्ति जोड़ी- रात 8.45 बजे बस सुरक्षित पुणे पहुंच गई।
इस घटना ने मुझे महाभारत की एक कथा कि याद दिला दी, जिसमें एक बार अर्जुन भगवान कृष्ण से पूछते हैं कि वे यूधिष्ठिर को धर्मराज और कर्ण को दानवीर क्यों कहते हैं। इस सवाल के जवाब के लिए कृष्ण और अर्जुन ब्राह्मण का वेष धारण करते हैं और दोनों राजाओं के पास जाने का फैसला करते हैं। यूधिष्ठिर के पास जाकर वे चंदन की लकड़ी हवन के लिए मांगते हैं। चूंकि उस समय घनघोर बारिश हो रही थी, इसलिए यूधिष्ठिर के भेजे सैनिक हवन के लिए सूखी लकड़ी नहीं ला पाते। यूधिष्ठिर सोच में पड़ गए कि अब क्या करें। इस बीच दोनों कर्ण के पास जाते हैं और वही मांग उनके सामने भी रखते हैं। कर्ण भी हर जगह चंदन की सूखी लकड़ी की तलाश करते हैं, लेकिन असफल रहते हैं, लेकिन वो यह भी नहीं चाहते कि ब्राह्मण खाली हाथ घर जाएं। वो चंदन की लकड़ी से बना अपने दरबार का द्वार काटकर दे देते हैं और कहते हैं कि जब चंदन की लकड़ी मिल जाएगी तो द्वार फिर बन जाएगा। फिर कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अगर आप यूधिष्ठिर से उनके दरबार का चंदन का द्वार देने को कहते तो वे भी बिना किसी संकोच के दे देते। कृष्ण ने ये कहते हुए अपनी बात खत्म की कि कर्ण दानवीर हैं, क्योंकि वो सोच-विचार के सामान्य तरीकों से आगे सोच लेते हैं।
सोमवार को जब मैं इस अखबार की नॉलेज सीरिज में शामिल होने नई दिल्ली से होकर पानीपत जा रहा था तो मैंने एक खबर देखी। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह घोषणा की कि जो वाहनचालक मरीजों को ले जा रही एंबुलेंस के मार्ग में बाधा बनेंगे उन्हें 2000 रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा। उन्होंने लोगों से इस तरह की आपात स्थितियों के प्रति संवेदनशील बनने की अपील की। कुछ लोगों की असंवेदनशीलता के कारण यह कदम उठाना पड़ा।
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साभार: भास्कर समाचार
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