बलबीर पुंज (लेखक भाजपा के राज्यसभा सदस्य रहे हैं)
कट्टर इस्लामी विचारधारा से विश्व को किस हद तक खतरा है, इसका अनुमान अभी हाल के कुछ घटनाक्रमों से हो जाता है। केरल के कासरगोड़ और पलक्कड़ से लापता 15 लोगों को लेकर संदेह है कि वे आइएस में शामिल हो गए हैं। इसका अर्थ यह है कि मजहबी जुनून से प्रेरित होकर ये जिहादी अपनी जान देने या दूसरों की लेने पर
आमादा हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। लापता लोगों में से पांच ने विगत वर्ष ही मतांतरण कर इस्लाम अपनाया था। एक जुलाई को ढाका के एक कैफे और उसके एक सप्ताह पश्चात ढाका से 150 किलोमीटर दूर किशोरगंज स्थित ईदगाह पर आतंकी हमले से हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी आतंकवाद की विष बेल की जड़ें कितनी गहरी हैं और वर्तमान में उसका पोषण कैसे और किनके द्वारा होता है।
ढाका में आतंकी हमले को अंजाम देने वालों में से रोहाना इम्तियाज और निबरस इस्लाम ने फेसबुक पर संकेत दिए थे कि उनके प्रेरणास्नोत डॉक्टर जाकिर नाइक हैं, जो मुंबई में रहकर पिछले कई वर्षो से अपने टीवी चैनल और व्यक्तिगत भेंटों से विश्वभर के करोड़ों लोगों को इस्लाम के बारे में बताते हैं। अभी हाल ही में हैदराबाद से गिरफ्तार किए गए आइएस के संदिग्धों ने पूछताछ में बताया था कि उनको भी जाकिर से ही प्रेरणा मिलती है। इसी तरह मुंबई स्थित कल्याण से आइएस में शामिल होने गए चार शिक्षित युवक भी नाइक के उन्मादी तर्को से प्रभावित होकर गैर-मुसलमानों की हत्या करने इराक चले गए थे। वर्ष 2012 में गिरफ्तार आतंकी यासीन भटकल भी नाइक से प्रभावित था। जांचकर्ताओं को जानकारी मिली थी कि भटकल बिहार में दरभंगा स्थित उस पुस्तकालय में अक्सर जाया करता था, जहां पुलिस को बड़े स्तर पर नाइक द्वारा लिखी पुस्तकें, भाषणों की प्रतियां और तस्वीरें मिली थीं। 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में आरोपी राहिल शेख पर भी नाइक का असर था। वर्ष 2007 में आतंकी कफील अहमद ग्लासगो एयरपोर्ट को उड़ाने की कोशिश करते हुए घायल हो गया था, वह भी डॉ. जाकिर नाइक से उनके विचारों के माध्यम से जुड़ा हुआ था।
जाकिर नाइक पेशे से डॉक्टर हैं, परंतु कट्टर इस्लामिक प्रचारक अहमद दीदत से प्रभावित होकर डॉक्टरी छोड़ वह इस्लाम के प्रचार में जुट गए। वर्ष 1991 में उन्होंने इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना भी की। उन्होंने पीस टीवी नामक चैनल की भी शुरुआत की। नाइक की वेशभूषा और भाषा अन्य किसी साधारण मुल्ला-मौलवियों से अलग है, परंतु उनके विचार कुख्यात आतंकी हाफिज सईद से कम जहरीले नहीं हैं। नाइक अपने भाषणों में इस्लाम को सबसे सर्वश्रेष्ठ बताते हुए अन्य पंथों का अपमान करते हैं। हिंदू देवी-देवताओं का उपहास करते हैं। ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी मानने से इंकार करते हैं। इस्लाम को त्यागकर दूसरा मजहब स्वीकारने की सजा मौत बताते हैं। वह इस्लामी देशों में गैर-मुस्लिमों के लिए धार्मिक स्थल बनाने की स्वीकृति नहीं देने के पक्षधर हैं। वह मानते हैं कि इस्लाम में औरतों की पिटाई तर्कसंगत है। क्या यह नाइक के जहरीले भाषणों का प्रभाव है कि संपन्न और शिक्षित युवा मजहब के नाम पर गैर-मुस्लिमों को मौत के घाट उतारने के लिए प्रेरित हो रहे हैं? क्या यह विडंबना नहीं है कि सऊदी अरब आइएस के निशाने पर होने के बाद भी नाइक को इस्लाम की सेवा के लिए किंग फैसल अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करता है? जांचकर्ताओं को संदेह है कि नाइक का हाफिज सईद से संबंध हो सकता है। बताया जा रहा है कि उसके संगठन जमात-उद-दावा की उर्दू वेबसाइट पर जाकिर के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की साइट की लिंक मौजूद थी। हालांकि 26/11 आतंकी हमले के बाद वेबसाइट का नाम परिवर्तित कर दिया गया था।
जाकिर नाइक और उनका चैनल अपने जहरीले प्रचार-प्रसार के कारण ब्रिटेन, कनाडा, मलेशिया सहित कई देशों में प्रतिबंधित है। विगत शनिवार को मुस्लिम बहुल बांग्लादेश ने भी नाइक के चैनल पर प्रतिबंध लगाया है। हाल की आतंकी घटनाक्रमों से पूर्व क्या भारत में नाइक के उन्मादी भाषणों के खिलाफ कोई स्वर सुना था? किसी भी छुटभैये हिंदू नेता के गैर-जिम्मेदाराना बयानों को लेकर छद्म-पंथनिरपेक्ष समाचारपत्रों और टीवी चैनलों पर दिनोंदिन चर्चा होती रहती है, परंतु क्या उनमें से किसी ने भी नाइक, जिनकी पहुंच करोड़ों लोगों तक है, उनके कई वर्षो से प्रसारित विषैले बोल और भड़काऊ भाषणों का संज्ञान लिया? क्यों नाइक का विष-वमन कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को शांति की घुट्टी लगती है? वर्ष 2012 के एक वीडियो के अनुसार वह नाइक के बारे में कहते हैं, मैं इस बात से प्रसन्न हूं कि आप दुनियाभर में शांति के संदेश का प्रसार कर रहे हैं। मैंने आपकी सभाओं की ताकत के बारे में सुना था और अब इसे देख भी लिया है, इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं। मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त और वर्तमान समय में लोकसभा सांसद सत्यपाल सिंह के अनुसार वर्ष 2008 में उन्होंने तत्कालीन संप्रग सरकार को नाइक की संदिग्ध और खतरनाक गतिविधियों पर विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी जिसमें इस बात का भी उल्लेख था कि वह अपने फाउंडेशन को मिलने वाले विदेशी धन का दुरुपयोग सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के लिए कर सकते हैं। मामला गंभीर होने के बाद भी सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया। क्या यह चिंता का विषय नहीं है कि इतनी जानकारी होने के बाद भी वर्षो तक न तो मीडिया ने नाइक के विष-वमन का संज्ञान लिया और न ही सत्ता अधिष्ठानों ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की? आत्मघाती हमला करने वाले और निदरेष लोगों का मजहब के नाम पर गला रेतने वाले प्रत्यक्ष रूप से दोषी हैं ही, परंतु उनको जहरीली मानसिकता की खुराक देने वाले क्या कम कसूरवार हैं? नि:संदेह इस त्रसदी के लिए अपने आप को सेक्युलर कहने वाले वह लोग भी उत्तरदायी हैं, जिन्होंने दशकों तक सेक्युलरवाद के नाम पर इस्लामी कट्टरवाद को प्रोत्साहन दिया।
हाल के समय में आतंकवाद रूपी जहरीले फल के जन्म के लिए विचार बेल का पोषण ओसामा बिन लादेन, मोहम्मद हाफिज सईद, जाकिर नाइक सहित अनगिनत मुल्ला-मौलवियों द्वारा किया जाता है। इन सबके लिए उनके ब्रैंड के इस्लाम को छोड़कर बाकी सब कुफ्र है। उनके अनुसार काफिरों को या तो अपने पाले में लाने के लिए विवश करना या उन्हें मौत के घाट उतारना एक सच्चे मुसलमान का मजहबी कर्तव्य है। इस खतरनाक सोच का असर कई युवा मुस्लिमों पर हो रहा है। यह विष बेल बिना अनुकूल वातावरण के पुष्पित और पल्लवित नहीं हो सकती है। दिग्विजय सिंह जैसे नेता और उनके ब्रैंड के सेक्युलरिज्म के पुरोधा भी इस विष बेल के लिए आवश्यक खाद और पानी का प्रबंध करते हैं।
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साभार: जागरण समाचार
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