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आज 28 जुलाई को फिंगर प्रिंट डे है। महत्वपूर्ण दस्तावेजों में लगने
वाले फिंगर प्रिंट की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हो चुकी थी। पिछले 156 सालों
में इसका चलन भारत की एक घटना के बाद बढ़ा। ब्रिटिश शासन की शुरुआत में 1858
में भारत में नियुक्ति होने पर विलियम हर्शेल को पश्चिम बंगाल के नादिया
जिले का मजिस्ट्रेट बनाया गया था। इस दौरान इन्होंने कोलकाता में दीवानी
ठेके के लिए सिग्नेचर और फिंगर प्रिंट लेने का आदेश दिया, ताकि कोई भी काम
ठेकेदार द्वारा गलत न किया जाए। उनके आदेश पर स्थानीय व्यापारी राज्यधर
कोनाई ने हाथ की उंगलियों के निशान अनुबंध के एक दस्तावेज के पीछे दिए थे। हालांकि मजिस्ट्रेट हर्शेल यह प्रयोग शुरू करना नहीं चाहते थे। उनका
उद्देश्य व्यापारी को डराना भर था, लेकिन बाद में उन्हें यह प्रयोग अच्छा
लगा। उनके आदेश पर लेन-देन के प्रमुख दस्तावेजों के लिए फिंगर प्रिंट को
कानून के रूप में लागू कर दिया था। 1877 में उन्होंने कैदियों की पहचान के
लिए भी फिंगर प्रिंट का आदेश दिया, लेकिन उसे नहीं माना गया। कुछ समय बाद
यह सिविल कानून से आपराधिक कानून में अनिवार्य कर लागू कर दिया गया। भारत
की इस घटना के बाद ब्रिटेन में इसका चलन बढ़ा और अमेरिका तक फैल गया। व्यक्ति की सटीक पहचान करने में कारगर: यूरोप-अमेरिका आधुनिकता के लिए जाने जाते हैं, लेकिन आज वहां भी महत्वपूर्ण दस्तावेजी कार्यों में फिंगर प्रिंट लेने का चलन है। प्राचीनकाल में अलग-अलग सभ्यताओं और देशों में फिंगर प्रिंट लिए जाने लगे थे। इनका उपयोग व्यक्ति की पहचान पुख्ता करने के लिए ही किया जाता था, जो आज भी जारी है। बैंकों, अदालतों और पुलिस रिकॉर्ड में अपराधियों की सटीक पहचान करने में इसका उपयोग आवश्यक रूप से किया जाता है। यह आज भी पहचान स्थापित करने का कारगर तरीका इसलिए है क्योंकि फिंगर प्रिंट सभी के एक जैसे नहीं होते हैं। फिंगर प्रिंट की जांच करने के लिए फारेंसिक लैब हैं। खासतौर से मुकदमों के दस्तावेजों या अपराधियों की पहचान करने में जब मुश्किलें आती हैं, तब उनके फिंगर प्रिंट की प्रति को फारेंसिक लैब में जांच के लिए भेजा जाता है।
फिंगर प्रिंट का इतिहास है और भी पुराना:
- प्राचीन बेबीलोन सभ्यता में व्यापारिक सौदों को फिंगर प्रिंट के लिए मिट्टी का प्रयोग करके ‘सील’ किया जाता था। प्राचीन रोम में एक मर्डर मिस्ट्री को आरोपी के हाथ से रक्तभरे फिंगरप्रिंट से मिलान करके सुलझाया गया था।
- चीन के तांग राजवंश (618 से 906 ईस्वी तक) में प्रत्येक व्यक्ति की पहचान के स्रोत के तौर पर फिंगर प्रिंट का उपयोग होता था।
- जापान में प्राचीन समय से अंगूठे के निशान को दस्तावेजों में हस्ताक्षर को कानूनी मान्यता प्राप्त थी।
- मध्यकालीन फारसी शासन में फिंगर प्रिंट को दस्तावेजों में उपयोग के लिए सबसे कारगर उपाय माना गया था।
- ब्रिटिश चिकित्सक नहेमायाह ग्रेव ने 1684 में फिंगर प्रिंट के लिए उंगली के ऊपरी हिस्से का उपयोग करने पर व्याख्यान दिया था।
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साभार: भास्कर समाचार
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