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अधिकांश भारतीय परिवारों में महिलाएं पर्सनल फाइनेंस के मामलों
को पुरुषों पर छोड़ देती हैं। चाहे वह निवेश करने का मामला हो या कर्ज
लेने का या फिर घर खरीदने का, आखिरी फैसला पुरुषों का ही होता है। महिलाएं
पर्सनल फाइनेंस के मामलों को खुद से मैनेज करने पर अधिक ध्यान ही नहीं
देतीं। चूंकि कई स्थितियों में पुरुषों और महिलाओं की जिंदगी
अलग-अलग होती
है, ऐसे में महिलाओं के लिए यह जरूरी है कि या तो वे अपने जीवन में
फाइनेंशियल प्लानिंग को शामिल करें या फिर परिवार के वित्तीय निर्णयों में
बराबर की रुचि लें। आइए अब उन पहलुओं की चर्चा करते हैं, जिनकी वजह से महिलाओं के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग जरूरी है:
कम होती है महिलाओं की आमदनी: कामकाजी महिलाओं की जिंदगी में कई ऐसे मौके आते हैं जब उन्हें नौकरी
छोड़कर घर बैठना पड़ता है, जैसे बच्चे का जन्म या बच्चों, माता-पिता,
सास-ससुर की देखभाल। ऐसे में अपने मेल पार्टनर के मुकाबले उनकी आमदनी कम हो
जाती है या खत्म हो जाती है। इसकी वजह से वे अपने रिटायरमेंट के बाद के
जीवन के लिए उतना नहीं जुटा पातीं, जितना उन्हें चाहिए।
अधिक उम्र तक जीवित रहती हैं महिलाएं: इस बारे में कई शोध हुए हैं कि पुरुष और महिलाएं औसतन कितने सालों तक
जीवित रहते हैं। इन शोधों से यह पता चला है कि महिलाएं औसतन पुरुषों के
मुकाबले 4-5 साल अधिक जिन्दा रहती हैं। चूंकि परिवारों में वित्तीय निर्णय
पुरुष ही लेते हैं, ऐसे में पूरी फाइनेंशियल प्लानिंग उन्हीं की जीवन
प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेंक्टेंसी) पर आधारित होती है। इसका मतलब यह हुआ कि
किसी परिवार के पुरुष मुखिया की मौत के बाद उस परिवार की महिला के सामने
वित्तीय संकट की स्थिति आ जाएगी। अगर हम यह मान लें कि पति और पत्नी की उम्र में तीन सालों का फर्क है,
तो ऐसे में संभव है कि पति की मौत के बाद सात-आठ सालों तक उसकी पत्नी
जिन्दा रहे। ऐसे में पुरुष के मुकाबले महिला के लिए नियमित आमदनी की जरूरत
ज्यादा है।
पुरुष पर निर्भरता हो सकती है घातक: अधिकांश घरों में रिटायरमेंट की प्लानिंग पुरुष के जिम्मे होती है और
महिला को इससे या तो कोई मतलब नहीं होता या फिर काफी कम मतलब होता है। अगर
पति की मौत के बाद पत्नी को पेंशन मिलने का प्रावधान है, तब तो ठीक है,
अन्यथा पति की मौत के बाद मुश्किल आ जाती है। अगर पति की कम उम्र में मौत
हो जाए या फिर दोनों के बीच तलाक हो जाए, तो पत्नी की वित्तीय स्थिति काफी
दयनीय हो जाती है।
जब जिम्मेदारी है सिर पर, तो क्यों न करें प्लानिंग: मोटे तौर पर घर चलाने की जिम्मेदारी महिलाओं की ही होती है। इससे
संबंधित निर्णय वही लेती हैं। अगर पति का असमय देहांत हो जाए, तो परिवार के
बड़े वित्तीय फैसले भी उन्हीं को लेने होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि शुरू
से ही महिला फाइनेंशियल प्लानिंग में शामिल होना चाहिए, ताकि वे बाद में
गलत फैसलों से बच सकें।
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साभार: भास्कर समाचार
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लेखक (जितेंद्र पी. एस. सोलंकी) सेबी के साथ पंजीकृत इनवेस्टमेंट एडवाइजर और जे एस फायनेंशियल एडवाजर्स के संस्थापक हैं।