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कहते हैं योग और प्राणायाम से कई असाध्य बीमारियों को ठीक किया जा
सकता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हाथों से बनाई गई योग मुद्राएं भी उतनी ही कारगर हैं।
जी हां, हथेलियों से बनाई जाने वाली ये मुद्राएं बिना ज्यादा मेहनत किए
आपको हमेशा स्वस्थ बनाए रखती हैं। आईए, आज जानते हैं ऐसी ही कुछ योग
मुद्राओं के बारे में, जो कुछ प्रॉब्लम्स में बेहद असरदार हैं।
ज्ञान मुद्रा: किसी शांत और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल
बिछाकर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। अब अपने दोनों हाथों को घुटनों पर
रख लें। अंगूठे के पास वाली तर्जनी उंगली (इंडेक्स फिंगर) के ऊपर के पोर को
अंगूठे के ऊपर वाले पोर से मिलाकर हल्का-सा दबाव दें। हाथ की बाकी की
तीनों उंगलियां बिल्कुल एक साथ लगी हुई और सीधी रहनी चाहिए। अंगूठे और
तर्जनी उंगली के मिलने से जो मुद्रा बनती है, उसे ही ज्ञान मुद्रा कहते
हैं। ध्यान लगाते समय सबसे ज्यादा ज्ञान मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है।
ज्ञान मुद्रा के लाभ: ज्ञान मुद्रा के नियमित अभ्यास से अनिद्रा दूर करने
तथा गुस्से को कंट्रोल करने में सहायता मिलती है।
शंख मुद्रा: बाएं हाथ के अंगूठे को दाएं हाथ की हथेली में स्थापित
करें और मुठ्ठी को बंद करें। उंगलियों को दाहिने हाथ के अंगूठे से स्पर्श
कराएं। इस तरह चारों उंगलियों से अग्नि तत्व का संयोग होता है। इस मुद्रा
से हाथों की आकृति शंख के सामान हो जाती है। इसे शंख मुद्रा कहा जाता है।
ऊपर के भाग में उंगलियों और अंगूठे के बीच जो खुला भाग रहता है, उसका आकार
शंख जैसा होता है। मुंह लगाकर जैसे शंख बजाते हैं, वैसे ही बजाने की कोशिश
करेंगे तो शंख के समान आवाज आएगी। आरंभ में इसे 16 मिनट किया जाना चाहिए।
फिर उसे 48 मिनट तक किया जा सकता है।
शंख मुद्रा के लाभ: इस मुद्रा को करने से गले से जुड़े रोग नहीं होते हैं।
वायु मुद्रा: अपने हाथ की तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाने से वायु मुद्रा बन जाती है। हाथ की बाकी सारी उंगलियां बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। वायु-मुद्रा में वज्रासन की तरह दोनों पैरों के घुटनों को मोड़कर बैठ जाएं, लेकिन रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए और दोनों पैर अंगूठे के आगे से मिले रहने चाहिए। जिन लोगों को भोजन न पचने या गैस की समस्या हो, उन्हें भोजन करने के बाद पांच मिनट तक आसन के साथ इस मुद्रा को करना चाहिए।
वायु मुद्रा के लाभ: यह मुद्रा पेट में गैस की समस्या को दूर करती है।
वरुण मुद्रा: वरुण का अर्थ है जल। जल ही जीवन है। भोजन के बिना कुछ महीने जीवित रहा जा सकता है। पानी के बिना कुछ दिन जीवित रहना कठिन हो जाता है। पानी भोजन को तरल बनाने में सहयोगी नहीं बनता, उससे विविध तत्वों का निर्माण भी होता है। पानी के अभाव से शरीर रूखा और निष्क्रिय हो जाता है। कनिष्ठा हाथ की सबसे छोटी उंगली को कहा जाता है। कनिष्ठा या लिटिल फिंगर जल का प्रतीक है। कनिष्ठा उंगली का आगे का भाग और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाने से वरुण मुद्रा बनती है।
वरुण मुद्रा के लाभ: शरीर का रूखापन दूर होता है। त्वचा चमकीली और मुलायम बनती है। चर्म रोग दूर होते हैं। रक्त विकार दूर होते हैं। यौवन लंबे समय तक बना रहता है।
शून्य मुद्रा: मध्यमा यानी मिडल फिंगर को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अंगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की उंगलियों को सीधा रखते हैं। इसे शून्य मुद्रा कहते हैं।
शून्य मुद्रा के लाभ: यह शरीर के सुस्ती को कम कर स्फूर्ति पैदा करती है। प्रतिदिन चार से पांच मिनट अभ्यास करने से कान के दर्द में आराम मिलता है। बहरे और मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए यह मुद्रा लाभदायक है।
सूर्य मुद्रा: सूर्य की ओर हथेली को रखते हुए अनामिका उंगली (RING FINGER) मोड़कर अंगूठे से दबाएं। अन्य तीनों उंगलियों को सीधा रखें। इसे सूर्य मुद्रा कहते हैं।
सूर्य मुद्रा के लाभ: इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट के लिए अभ्यास करने से कोलेस्ट्रॉल घटता है। वजन कम करने के लिए भी इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है। पेट संबंधी रोगों में भी यह मुद्रा लाभदायक है। यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हल्का बनाती है।
शंख मुद्रा के लाभ: इस मुद्रा को करने से गले से जुड़े रोग नहीं होते हैं।
वायु मुद्रा: अपने हाथ की तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाने से वायु मुद्रा बन जाती है। हाथ की बाकी सारी उंगलियां बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। वायु-मुद्रा में वज्रासन की तरह दोनों पैरों के घुटनों को मोड़कर बैठ जाएं, लेकिन रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए और दोनों पैर अंगूठे के आगे से मिले रहने चाहिए। जिन लोगों को भोजन न पचने या गैस की समस्या हो, उन्हें भोजन करने के बाद पांच मिनट तक आसन के साथ इस मुद्रा को करना चाहिए।
वायु मुद्रा के लाभ: यह मुद्रा पेट में गैस की समस्या को दूर करती है।
वरुण मुद्रा: वरुण का अर्थ है जल। जल ही जीवन है। भोजन के बिना कुछ महीने जीवित रहा जा सकता है। पानी के बिना कुछ दिन जीवित रहना कठिन हो जाता है। पानी भोजन को तरल बनाने में सहयोगी नहीं बनता, उससे विविध तत्वों का निर्माण भी होता है। पानी के अभाव से शरीर रूखा और निष्क्रिय हो जाता है। कनिष्ठा हाथ की सबसे छोटी उंगली को कहा जाता है। कनिष्ठा या लिटिल फिंगर जल का प्रतीक है। कनिष्ठा उंगली का आगे का भाग और अंगूठे के अग्रभाग को मिलाने से वरुण मुद्रा बनती है।
वरुण मुद्रा के लाभ: शरीर का रूखापन दूर होता है। त्वचा चमकीली और मुलायम बनती है। चर्म रोग दूर होते हैं। रक्त विकार दूर होते हैं। यौवन लंबे समय तक बना रहता है।
शून्य मुद्रा: मध्यमा यानी मिडल फिंगर को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अंगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की उंगलियों को सीधा रखते हैं। इसे शून्य मुद्रा कहते हैं।
शून्य मुद्रा के लाभ: यह शरीर के सुस्ती को कम कर स्फूर्ति पैदा करती है। प्रतिदिन चार से पांच मिनट अभ्यास करने से कान के दर्द में आराम मिलता है। बहरे और मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए यह मुद्रा लाभदायक है।
सूर्य मुद्रा: सूर्य की ओर हथेली को रखते हुए अनामिका उंगली (RING FINGER) मोड़कर अंगूठे से दबाएं। अन्य तीनों उंगलियों को सीधा रखें। इसे सूर्य मुद्रा कहते हैं।
सूर्य मुद्रा के लाभ: इस मुद्रा का रोज दो बार 5 से 15 मिनट के लिए अभ्यास करने से कोलेस्ट्रॉल घटता है। वजन कम करने के लिए भी इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है। पेट संबंधी रोगों में भी यह मुद्रा लाभदायक है। यह मुद्रा शरीर की सूजन मिटाकर उसे हल्का बनाती है।
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साभार: भास्कर समाचार
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