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मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन का सेहत पर क्या असर पड़ता है, इस
पर लंबे समय से रिसर्च हो रही है, लेकिन वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कोई इसे
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के लिए जिम्मेदार मानता है तो कोई कहता है कि टावर
रेडिएशन का हेल्थ पर कोई बुरा असर नहीं होता है। दरअसल, सेलफोन टावर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड रेडिएशन होता है, जो संभव
है कि मनुष्य के शरीर पर नकारात्मक असर डालता हो। हालांकि, किसी बड़े पैमाने
के अध्ययन में यह साबित नहीं हुआ है कि टावर से जिस स्तर का रेडिएशन निकलता है, वह नुकसानदेह है। फिर भी इस विषय पर काफी समय से बातें हो रही हैं। ऐसे अनेक जानकार हैं, जो यह कहते हैं कि मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन इतने कमजोर होते हैं कि उनका शरीर पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होता है। दूसरी तरफ, एक ऐसी जमात भी है जो कहती है कि मोबाइल टावर रेडिशन का खतरा पूरी दुनिया पर लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, सरकार लगातार यह प्रयास कर रही है कि मोबाइल टावर रेडिएशन के खतरे को कम किया जा सके।
के अध्ययन में यह साबित नहीं हुआ है कि टावर से जिस स्तर का रेडिएशन निकलता है, वह नुकसानदेह है। फिर भी इस विषय पर काफी समय से बातें हो रही हैं। ऐसे अनेक जानकार हैं, जो यह कहते हैं कि मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन इतने कमजोर होते हैं कि उनका शरीर पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होता है। दूसरी तरफ, एक ऐसी जमात भी है जो कहती है कि मोबाइल टावर रेडिशन का खतरा पूरी दुनिया पर लगातार बढ़ रहा है। हालांकि, सरकार लगातार यह प्रयास कर रही है कि मोबाइल टावर रेडिएशन के खतरे को कम किया जा सके।
आइए जानें कुछ तथ्य:
- 450 मिलीवॉट प्रति वर्ग मीटर रेडिएशन इमिशन लिमिट है देश में इस समय मोबाइल फोन टावर्स की, जबकि चीन में यह आंकड़ा 400, रूस में 100 और स्विट्जरलैंड में 42 मिलीवॉट प्रति वर्ग मीटर है।
- 70 फीसदी की कमी आई है टावर इन्स्टालेशन में देश भर में। वर्ष 2007 से 2010 तक देश में प्रति वर्ष करीब एक लाख टावर लग रहे थे, जबकि वर्ष 2010 के बाद यह आकंड़ा 30 हजार के करीब हो गया है।
- 5 लाख से ज्यादा सेलफोन टावर थे देश में वर्ष 2013 के अंत तक। सरकार ने इनकी रेडिएशन इमिशन लिमिट वर्ष 2012 में 90 फीसदी तक कम की है।
कोई खतरा नहीं: वर्ष 2013 में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि मोबाइल टावर से कोई खतरा
नहीं है। एसोसिएशन के अनुसार, ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला है, जिससे यह साबित
हो कि टावर रेडिएशन से किसी प्रकार का कैंसर होता है। टावर का रेडिएशन बेहद
कमजोर होता है और इससे हजारों गुना ज्यादा शक्तिशाली रेडिएशन सूर्य से
निकलता है। माइक्रोवेब ओवन के अंदर एक सेकंड में निकली एनर्जी टावर से
निकलने वाली एनर्जी से ज्यादा होती है। वर्ष 2013 में ही आईआईटी के 22
प्रोफेसर्स ने सरकार को चिट्ठी लिखकर कहा कि टावर से निकलने वाले रेडिएशन
की मौजूदा लिमिट से कोई नुकसान नहीं है। टेलिकॉम कंपिनयां भी यही कहती हैं कि एंटी-रेडिएशन मुहिम के पीछे
व्यावसायिक हित है। इसी तरह, इस वर्ष इलाहबाद हाईकोर्ट में सबमिट की गई एक
रिपोर्ट में भी गवर्नमेंट पैनल ने कहा कि सेलफोन टावर रेडिएशन की गाइडलाइन
को और सख्त करने की जरूरत नहीं है। हालांकि, इस पैनल ने यह जरूर कहा है कि
अभी देश में इस क्षेत्र में और अध्ययन करने की जरूरत है। सेल्युलर ऑपरेटर्स
एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी पिछले वर्ष दावा किया था कि टावर रेडिएशन
एक्स-रे या गामा किरणों से भिन्न है और इससे शरीर में कोई रासायनिक
परिवर्तन नहीं होते हैं।
खतरा जरूर है: वैज्ञानिकों और जानकारों का एक धड़ा ऐसा भी है, जो इस बात पर जोर देता है कि
मोबाइल टावर से रेडिएशन का खतरा है। कई जानकार कहते हैं कि 50 मीटर के दायरे में कहीं पर मोबाइल टावर लगा है, तो आप उसी तरह रेडिएशन के संपर्क
में रहते हैं, जैसे आप 24 घंटे माइक्रोवेव ओवन के अंदर हों। उनका तर्क है
कि टावर रेडिएशन एक्सपोजर के कारण स्लीप डिस्टर्बेन्स, सिर दर्द, थकान,
जोड़ों में दर्द और कई गंभीर एक्सपोजर में कैंसर तक का खतरा रहता है। ये
टावर रेडिएशन को ब्रेन में स्वेलिंग और हियरिंग डिसऑर्डर के लिए भी
जिम्मेदार मानते हैं। बच्चों पर इसका असर ज्यादा गंभीर हो सकता है, क्योंकि उनका स्कल छोटा और
नाजुक होता है। यह भी तर्क दिया जाता है कि यदि सेलफोन टावर इतने ही सेफ
हैं, तो फिर इनके लिए गाइडलाइन और लिमिट बनाने की क्या जरूरत है। कुछ लोगों
का तर्क है कि टावर रेडिएशन से कैंसर का खतरा उसी तरह है जैसे लेड, डीडीटी
और क्लोरोफॉर्म से होता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की इंटरनेशनल
एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर का कहना है कि मोबाइल और टावर के रेडिएशन
मनुष्य के लिए कैंसरकारी हो सकते हैं। इससे ब्रेन कैंसर का एक प्रकार
ग्लाइओमा हो सकता है। हालांकि, ऐसी बातें अभी साबित नही हो सकी हैं।
भारत ने क्या कदम उठाए: देश में टेलिकॉम कंपनियां मानदंडों का पालन करती हैं। ये मानदंड डब्ल्यूएचओ
और इंटरनेशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन प्रोटेक्शन (ICNIRP) जैसे अंतरराष्ट्रीय विनियामकों द्वारा जारी गाइडलाइन पर आधारित होते हैं।
गौरतलब है कि ICNIRP की गाइडलाइन को बेहद विश्वसनीय माना जाता है।
इसका पालन दुनिया के 95 फीसदी देश करते हैं। सरकार ने 1 सितंबर, 2012 से टावर्स
की रेडिएशन लिमिट कम कर दी थी। इससे पहले देश में रेडिएशन इमिशन लिमिट 4500 मिलीवॉट प्रति वर्गमीटर थी, लेकिन यह एक सितंबर 2012 से घटाकर 450
मिलीवॉट प्रति वर्गमीटर कर दी गई। इसलिए जानकारों का कहना है कि इससे
परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन चिंता अभी बरकरार है। जनवरी 2013 में एक ग्लोबल रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत में 450
मिलीवॉट प्रति वर्गमीटर रेडिएशन इमिशन लिमिट है, लेकिन यह सेफ लिमिट से 900
गुना ज्यादा है। रिपोर्ट से सामने आया कि सेफ रेडिएशन इमिशन लिमिट 0.50
मिलीवॉट प्रति वर्गमीटर है। यह बायो-इनिशिएटिव रिपोर्ट 2012 को 29 इंडिपेंडेंट साइंटिस्ट्स और दस देशों
के हेल्थ एक्सपर्ट ने मिलकर तैयार की थी। दूसरी तरफ, यह भी दावा किया जाता
है कि रेडिएशन इमिशन लिमिट को यदि और कम किया जाएगा तो यह और खतरनाक हो
सकता है, क्योंकि तब मोबाइल हैंडसेट नेटवर्क सर्च करने के लिए अपने रेडिएशन
को बढ़ा देगा, जो और भी खतरनाक है।
इसलिए रहें बेफिक्र: टावर रेडिएशन मामले में जानकार भले ही एक मत न हों, लेकिन कुछ ऐसी बाते
हैं, जिन्हें जानकर डरने की जरूरत नहीं है। जानिए अमेरिकन कैंसर सोसायटी
क्या कहती है।
- टावर से निकलने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी वेब्स का एनर्जी लेवल गामा-रे, एक्स-रे और यूवी-रे की तुलना में काफी कम होता है। ये फ्रीक्वेंसी वेब्स हमारे डीएनए मॉलिक्यूल्स में केमिकल बॉन्ड्स को नहीं तोड़ सकती।
- मोबाइल टावर से निकलने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी में लॉन्ग वेबलेंथ होती हैं, जो केवल एक या दो इंच की साइज में ही कॉन्संट्रेट हो सकती हैं। इसलिए ये इस तरह कॉन्संट्रेट नहीं हो सकतीं कि शरीर की सेल्स को नुकसान पहुंचा सकें।
- यदि रेडियो फ्रीक्वेंसी का हायर डोज शरीर को नुकसान पहुंचाता है, तो भी टावर्स के लिए हर देश में लिमिट तय है। इस लिमिट के कारण ग्राउंड लेवल पर फ्रीक्वेंसी बेहद लो होती है। इस तरह के रेडिएशन हमें कई बार टीवी ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन और रेडियो से भी मिलते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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