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रोमन इतिहास में विख्यात सम्राट जूलियस सीज़र का जन्म एक अत्यंत
अभिजात्य रोमन कुल में हुआ था। इस कुल के लोग स्वयं को वीनस देवी का वंशज
मानते थे। स्वाभाविक रूप से उच्च कुलोत्पन्न होने का अहंकार सीज़र को
विरासत में मिला था। उसने रोमन गणतंत्र में स्वयं को तानाशाह के रूप में
स्थापित कर लिया था। वह अपने साम्राज्य से संबंधित सारे निर्णय अकेला लेता
था। कहने को तो प्रशासकीय निर्णय रोमन सीनेट की बैठक में लिए जाते थे,
किंतु वास्तव में राजसत्ता का प्रमुख केंद्र सीज़र का महल था।वह विचार-विमर्श भले ही सभी से करता था, किंतु निर्णय अपनी दृष्टि
को सर्वोपरि रखकर ही करता था। सीज़र की इस तानाशाही प्रवृत्ति के कारण प्रजा में कई बार असंतोष भी उभरता था और सीजर के अनेक विरोधी भी थे। एक बार सीज़र को पत्रों का एक पुलिंदा मिला, जो उसके किसी विरोधी ने लिखे थे। उसमें सीज़र पर अनेक गंभीर आरोप लगाए गए थे और अनेक स्थानों पर अपशब्दों का भी उपयोग किया गया था। उसे अपमानित किया गया था। सीज़र के किसी सहयोगी ने उन्हें पढ़ा, किंतु जैसे ही उसने वे पत्र सीज़र को दिए, उसने तत्काल उन्हें आग में जला दिया। यह देखकर सहयोगी ने कहा, "सम्राट, आपने ये पत्र जलाकर ठीक नहीं किया। आपके शत्रु के विरुद्ध ये ठोस प्रमाण सिद्ध हो सकते थे।" तब सीज़र ने तर्क दिया, "यद्यपि मैं क्रोध के प्रति सदैव सतर्क रहता हूं, किंतु मेरी दृष्टि में अधिक आवश्यक यह है कि क्रोध के कारण को ही मिटा दिया जाए। यही मैंने अभी किया है।"
उचित समय व स्थान पर क्रोध करना उपयुक्त होता है, किंतु जहां व्यक्तिगत क्षति की अधिक संभावना हो, वहां क्रोध दबाकर उसके कारण पर प्रहार करना चाहिए ताकि स्वयं की ऊर्जा बनी रहे और विरोधी के गलत इरादे पूरे न हों।
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साभार: भास्कर समाचार
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