एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
करीब सात साल पहले उडुपी के निकट शिर्रोर नामक कस्बे के संघर्षशील अबुबकेर मकाडे रियाद में कूरियर बॉय की नौकरी मिलने पर वहां चले गए। एक तरफ तो वे भावी जीवन की संभावना से खुश थे दूसरी तरफ अपने एक साल के बेटे को छोड़कर जाने का दुख भी था, जिसके साथ वे अभी ठीक से खेले भी नहीं थे। किंतु आर्थिक
मजबूरियों के कारण उन्हें वह कठिन फैसला लेना पड़ा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। छह साल हो गए पर सालाना छुट्टी लेकर अपनी परिवार से मिलने के कोई चिह्न नहीं दिख रहे थे। कड़ी मेहनत करके वे किसी तरह अपने परिवार को तुलनात्मक रूप से बेहतर आर्थिक स्थिति में ले आए। हालांकि, यह भावनात्मक रूप से तोड़ देने वाला अनुभव था, क्योंकि बेटा बड़ा हो रहा था लेकिन, उस महत्वपूर्ण दौर में वे उसके पास मौजूद नहीं थे। आखिरकार अप्रैल 2016 में वह दिन ही गया। दो महीने की सवैतनिक छुट्टी से लैस वे लौटकर पत्नी और सात वर्षीय बेटे से मिलने के लिए तैयार थे। उन्होंने सामान बांधा और रवाना होने के पहले पत्नी को फोन करके यह अच्छी खबर देने की सोची। उनकी आवाज सुनकर वे रोमांचित हो गईं और फिर कहा कि क्या वे अपनी छुट्टी और बढ़ा सकते हैं, क्योंकि वे पहली बार बेटे को चलते-बोलते देख रहे होंगे? वे अपने दफ्तर की ओर बढ़े और फुटपाथ पर चलते हुए वे सोचने लगे कि वे कैसे छुट्टी बढ़ाने की गुजारिश करें? करीब सात साल पहले उडुपी के निकट शिर्रोर नामक कस्बे के संघर्षशील अबुबकेर मकाडे रियाद में कूरियर बॉय की नौकरी मिलने पर वहां चले गए। एक तरफ तो वे भावी जीवन की संभावना से खुश थे दूसरी तरफ अपने एक साल के बेटे को छोड़कर जाने का दुख भी था, जिसके साथ वे अभी ठीक से खेले भी नहीं थे। किंतु आर्थिक
उन्हें अहसास नहीं था कि 11 वर्षीय बालक द्वारा चलाई जा रही कार के रूप में उनके पीछे दैत्य चला रहा है। कार ने अनियंत्रित होकर मकाडे को टक्कर मार दी और वे कोमा में चले गए। प्रिंस मोहम्मद बिन अब्दुल अजीज अस्पताल में भर्ती मकाडे की कई सर्जरी करनी पड़ी। परिवार तो जैसे बिखर गया। परिवार के किसी सदस्य के पास तो पासपोर्ट था और इतना पैसा कि अपने शहर के बाहर भी जा सके। दिन और हफ्ते बीतते चले गए पर मकाडे कोमा से बाहर नहीं आए। परिवार को तब एक और झटका लगा जब पता चला कि अस्पताल का बिल एक करोड़ रुपए के करीब पहुंच गया है। आर्थिक रूप से परिवार उसी स्तर पर गया, जहां वह छह साल पहले था और परिवार के कमाऊ मुखिया को कोमा में खो बैठा।
परिवार ने मदद पाने के हरसंभव प्रयास किए और आखिर तटीय कर्नाटक के भटकल से संचालित वेब पोर्टल साहिल ऑनलाइन के प्रमुख से मिले। उनके माध्यम से परिवार रियाद के भटकल्ली और नवायतों तक पहुंचे, जिन्होंने तेजी से सहायता मुहैया कराई। डॉ. मोहम्मद वासीम मणि अपने जैसी सोच वाले अफान मन्ना, डॉ. जहीर, इतियाक आर्मर, फौजान और शेबाज मन्ना को लेकर लगभग रोज मकाडे को देखने जाते, फंड इकट्ठा करते और उन्होंेने अस्पताल प्रबंधन से भी रियायत का अनुरोध किया। इसके अलावा दम्माम, दुबई और रियाद से भी दान में पैसा आने लगा। मदद के लिए लोग जिस तरह आगे रहे थे, उसे देखकर अस्पताल के सीईओ डॉ. तलाल ने पूरा बिल माफ कर दिया और बीमा की राशि प्राप्त करने की प्रक्रिया जारी है। दुर्घटना के नौ माह बाद पिछले हफ्ते डॉ. वासीम मणि बेंगलुरू आए और उन्होंने मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों से मकाडे को वहां शिफ्ट करने के बारे में बात की। डॉक्टरों ने उन्हें आश्वस्त किया कि स्पीच थैरेपी फिजियोथैरेपी सहित अन्य इलाज जारी रहा तो मकाडे एक साल में ठीक हो जाएंगे, क्योंकि कोमा पर उनका पैमान सिर्फ 8-9 था। नर्स और डॉक्टर निशुल्क एंबुलेंस सेवा के जरिये उन्हें एयरपोर्ट से अस्पताल लाएंगे। शुक्रवार को रियाद से फ्लाइट तय है। जीवनरक्षक प्रणालियों पर निर्भर मकाडे जब आंखें खोलेंगे तो उन्हें पता भी नहीं होगा कि वे वहां कैसे पहुंचे।
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साभार: भास्कर समाचार
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