Tuesday, January 3, 2017

सुप्रीम कोर्ट तल्ख़: राज्य और केंद्र सरकारों का बार बार अध्यादेश जारी करना धोखा

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा एक ही अध्यादेश को बार-बार जारी करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई है। सोमवार को उसने अपने एक फैसले में इस बारे में तल्ख टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी अध्यादेश को दोबारा जारी करना संविधान से धोखा है। इतना ही नहीं, उसने इसको लेकर
राष्ट्रपति या राज्यपाल के संतुष्ट होने पर भी सवालिया निशान लगाया। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि अध्यादेश लागू करने को लेकर राष्ट्रपति या राज्यपाल की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा के बाहर नहीं है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने एक अध्यादेश को बार-बार जारी करने पर उपरोक्त कठोर टिप्पणी की। पीठ के अनुसार, अध्यादेश में भी वही शक्तियां निहित हैं, जो विधायिका द्वारा पारित किसी कानून में होती हैं। अध्यादेश को संसद या विधानसभा में पेश किया जाना बाध्यकारी है।
संविधान पीठ की ओर से 6-1 बहुमत वाले इस फैसले को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनाया। इसमें कहा गया कि अध्यादेश को कानून बनाने के लिए विधेयक के रूप में संसद या विधानसभा में नहीं पेश किया जाना संविधान का घोर उल्लंघन है। न्यायमूर्ति एसए बोब्डे, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जज उदय उमेश ललित तथा न्यायाधीश एल नागेश्वर राव ने इस राय से सहमति जताई। हालांकि मुख्य न्यायाधीश ठाकुर ने इसी तरह के मिलते-जुलते अपने फैसले में अलग कारण दिए। 

बहुमत वाले अपने इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि किसी अध्यादेश को फिर जारी करना संविधान से धोखा है। इसी क्रम में संविधान पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अध्यादेश समाप्त होने या दोबारा जारी होने पर इसके लाभार्थियों को कोई कानूनी अधिकार नहीं दिया जा सकता है। लेकिन न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने अपने असहमति वाले फैसले में कहा अध्यादेश को संसद या विधानसभा में पेश नहीं किए जाने के कई कारण हो सकते हैं, इसलिए इसे अवैध नहीं कहा जा सकता है।
मालूम हो कि जब संसद या विधान सभा के सत्र नहीं चल रहे होते हैं तो केंद्र और राज्य सरकार तात्कालिक जरूरतों के आधार पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की अनुमति से अध्यादेश जारी करती है। इसमें संसद/विधानसभा द्वारा पारित कानून जैसी शक्तियां होती हैं, लेकिन इस अध्यादेश को छह महीने भीतर अगले सत्र में सदन में पेश करना अनिवार्य होता है। सदन उसे पारित कर दे तो यह कानून बन जाता है। तय समय में सदन से पारित नहीं होने की स्थिति में अध्यादेश स्वत: खत्म हो जाता है। लेकिन कई बार सरकारें एक ही अध्यादेश को बार-बार जारी करती रही हैं।
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साभारजागरण समाचार 
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