Sunday, December 18, 2016

जन्म से दृष्टिहीन हैं हिंदी अध्यापक जैसाराम, लेकिन इनके बच्चे लाते हैं डिस्टिंक्शन, खुद हैं आल राउंडर

कुदरत ने इन्हें जन्म से ही रोशनी नहीं बख्शी। लेकिन ये अपने छात्रों की जिंदगी खूब रोशन कर रहे हैं। जानने वाले इन्हें हिंदी का मास्टर माइंड कहते हैं। देख नहीं सकते, लेकिन मजाल है हिंदी में बिंदी तक की चूक कर जाएं। सेकंडरी बोर्ड परीक्षा में इनकी पूरी क्लास ही हिंदी में डिस्टिंक्शन मार्क्स पा गई। व्याकरण की इस तरह जानकारी है कि मुंह जुबानी ही पढ़ा देते हैं। पढ़ाते वक्त किताब की भी जरूरत नहीं पड़ती। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। ये हैं बेहद सीधी-सादी शख्सियत जैसाराम मूंड। ये हिंदी, राजनीति शास्त्र में डबल एमए हैं। देवीकुंड सागर सेकंडरी सरकारी स्कूल में हिंदी के टीचर हैं। आठ साल पहले थर्ड ग्रेड टीचर बनें। एमए करने के बाद सेकंडरी
क्लास लेने लगे। कड़ी मेहनत से अब राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन की लेक्चरर परीक्षा पास कर ली। अब सीनियर सेकंडरी की क्लास लेंगे। हिंदी को पढ़ाने का इनका अपना अंदाज है। बच्चों के हाथ में होती है सामान्य किताब और इनके हाथ में ब्रेललिपि बुक। हर लाइन को जैसे वे बच्चों के दिमाग में फिट कर देते हैं। बारीकी इतनी कि बिंदी की गलती पर भी लाल गोला तय है। हालांकि होमवर्क जांचने में सीनियर छात्रों की मदद लेते हैं।
हर बच्चे से रोजाना एक पेज का सुलेख जरूर लिखवाते हैं। शिक्षा महकमा जैसाराम को रोल मॉडल के रूप में पेश करना चाहता है। डायरेक्टर बीएल स्वर्णकार कहते हैं- जब ये दिव्यांग होकर ऐसे परिणाम दे सकते हैं तो और क्यों नहीं? इन्हें बेहतर प्लेटफॉर्म के लिए सरकार से सिफारिश की गई है। हमारे रिपोर्टर ने जैसाराम की क्लास को लाइव देखा। पता चला कि हर पाठ के बाद उनका सवाल-जबाव का सेशन चलता है। यानी बच्चे को जो पढ़ाया उसी दिन कंठस्थ करवाना। कॉपियां चेक करने वे घर ले जाते हैं। जहां चूक मिली वहां गोलों के साथ ही सही शब्द भी। वर्तनी में चूक इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं। रोजाना टीवी-रेडियो की खबरों से अपडेट रहकर क्लास में बच्चों से जीके पर भी चर्चा करना नहीं भूलते। यही नहीं वे विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से फर्राटे से वॉट्सएप और इंटरनेट भी चलाते हैं। वे चुटकियों में मोबाइल से फाइल एक से दूसरे को सेंड कर देते हैं। अपनों से खूब चैटिंग भी करते हैं। अपने स्टाफ से वॉट्सएप के जरिए ही कई सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। एचएम दीपिका कहती हैं-ऐसे टीचर जरूर सोसायटी के लिए बड़ी देन हैं। जैसाराम गजब के खिलाड़ी भी हैं। राजस्थान ब्लाइंड चेस चैंपियनशिप में जूनियर और सीनियर चैंपियन हैं। 
स्टेट लेवल के ब्लाइंड क्रिकेट टूर्नामेंट में अपने बल्ले से खूब रन बरसाए हैं। फील्डिंग करते हुए उनकी आंख पर गहरी चोट भी लग चुकी है। स्कूल में चार सौ से ज्यादा बच्चे हैं। जैसाराम वक्त के साथ इतने माहिर हो चुके हैं कि छठी से दसवीं कक्षा तक के अधिकांश बच्चों को पैरों की आहट से ही पहचान जाते हैं। वे सामने से नमस्ते का संबोधन आते ही बच्चे का नाम प्यार से पुकार लेते हैं। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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