Monday, September 5, 2016

सरकारी स्कूलों में पांच रुपए के सालाना बजट में कैसे मिले मैडल

सरकार उम्मीद करती है कि स्कूलों के बच्चे खेलों में मेडल जीतकर लाएं। हाल में हुए ओलंपिक खेलों में दयनीय प्रदर्शन के बाद यह मुद्दा गर्माया हुआ है कि आखिर खिलाड़ियों के प्रदर्शन में सुधार कैसे किया? यदि व्यवस्था को टटोल कर देखें तो इस सवाल का जवाब शिक्षा विभाग के आंकड़े ही बयां कर देते हैं। यह सुनकर भी हैरानी होती
है कि सरकार प्रति बच्चे पर सालाना पांच रुपये खेल बजट के रूप में खर्च करती है। फिर पांच रुपये की एवज में सरकार बच्चे से गोल्ड मेडल की उम्मीद करे तो यह संभव नहीं है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। मसला गंभीर है, लेकिन शिक्षक संगठनों की निजी मांगों के तले दब जाता है। मौलिक शिक्षा निदेशालय की तरफ से पहली से आठवीं तक के बच्चों के लिए खेल निधि निर्धारित होती है। उस निधि में पांच रुपये प्रति बच्चे के हिसाब से यह बजट मिलता है। यानी किसी स्कूल में 500 बच्चे हैं तो खेलों के लिए 2500 रुपये सालाना ही बजट मिलेगा। इस राशि को दस बच्चों पर खर्च करें या पचास बच्चों पर, यह स्कूल मुखिया को ही तय करना होता है। ऐसे में स्कूल मुखियाओं की भी यही कोशिश रहती है कि गिने चुने बच्चों को प्रतियोगिताओं में भेजा जाए ताकि बजट समायोजित हो सके। इससे प्रतिभावान विद्यार्थी पीछे रह जाते हैं।
खेल प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए सरकार बहुत सारे कदम उठाने जा रही है। इस दिशा में बहुत सारे सुधार किए जा रहे हैं। सरकार गंभीर है और थोड़े ही दिन बाद शिक्षा विभाग में भी यह बदलाव नजर आएगा। - डॉ. यज्ञदत्त वर्मा, डीईओ।
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साभारजागरण समाचार 
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