Monday, September 7, 2015

बच्चों को शिक्षा दें लर्निंग, अर्निंग और रिटर्निंग की

अंतरराष्ट्रीयख्याति प्राप्त अध्यात्म गुरु महात्रया रा चंडीगढ़ में थे। वे यहां ज्यूडीशियल एकेडमी में स्पीच देने आए थे। इस मौके पर उन्होंने भास्कर से बात करते हुए युवाओं, खासकर नई पीढ़ी के लिए कई टिप्स दिए। उन्होंने कहा कि देश को आगे ले जाने की जिम्मेदारी युवाओं पर है। इसलिए उन्हें गरीबी, हादसे और कमियां
गिनाने के बजाय डेवलपमेंट की तस्वीर दिखानी होगी। ताकि वे उसी दिशा में सोचें। महात्रयाके शब्दों में नई पीढ़ी की कल्पना पढ़िये...
जो अभी 30 से 40 की उम्र के हैं, उनसे देश बदलने की उम्मीद करना गलत होगा। क्योंकि इन्हें हमारे एजुकेशन सिस्टम ने अलग सोच के साथ तैयार किया है। इसमें कंपीटीशन है। नाकामयाब होने का दुख है। पैसा कमाने की इच्छा है। हमें नई पीढ़ी पर फोकस करना होगा। छोटे-छोटे बच्चों को लर्निंग, अर्निंग और रिटर्निंग की शिक्षा देनी होगी। यानी वे खूब सीखें, खूब कमाएं और फिर उस कमाई को समाज में लगाएं। ये काम एजुकेशन से नहीं होगा। बल्कि पूरे माहौल को पॉजिटिव बनाना होगा। ऐसे माहौल का बहुत असर पड़ता है। अध्यात्म की दुनिया में रहकर मैं यही माहौल देने की कोशिश कर रहा हूं। एजुकेशन सिस्टम की वजह से कमजोर हुए लोगों को मजबूत बनाना मेरा मकसद है। कई बार सुना है कि नंबर कम आने की वजह से बच्चे मौत को गले लगा लेते हैं। मैं हर बच्चे को बताना चाहता हूं कि मौत को गले लगाने की बजाय जिंदगी को दूसरा मौका दीजिए। जिंदगी में विकल्प होते हैं, मौत में नहीं। एक अनुभव बताता हूं। कड़वा है, लेकिन सुनिए। हम लोग मिडिल क्लास फैमिली से थे। मेरा सपना सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना था। 1984 के समय की बात है। तब कंप्यूटर नए-नए ही बाजार में आए थे। मैं बहुत प्रभावित हुआ था और कंप्यूटर से जुड़ी जॉब्स करने लगा। 11 साल तक करता रहा। इसमें पांच साल एक मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी और बाकी 6 साल बिजनेस की दुनिया में। 1994 में मेरी दोस्त ने सुसाइड कर लिया। शायद आर्थिक तंगी से। वो खुशमिजाज थी। समझ नहीं आया कि आखिर वो इतना टूट कैसे गई? तभी से लगने लगा कि क्या हमारे स्कूल, कॉलेज ऐसी शिक्षा नहीं दे सकते कि बच्चों को जिंदगी जीना सिखा सकें? मैं युवाओं से जुड़ने के लिए उन्हें उन्हीं की भाषा में अध्यात्म सिखाता हूं। उनके साथ गाने गाता हूं। गानों को महसूस करता हूं। अक्सर अध्यात्म से जुड़े लोगों को लोग संजीदा मानते हैं। वे उन्हें शिक्षक, गुरु और यहां तक कि भगवान का दर्जा देने लगते हैं। मुझे लगता है, ये सही नहीं है। मैं मॉडर्न जिंदगी जीता हूं। कई बार एयरपोर्ट पर चेकिंग में मेरे बैग से जींस पेंट निकलती है, तो कस्टम वाले पूछते हैं-ये आपके बैग में क्यों? मैं उनसे ही पूछ लेता हूं-भाई, अध्यात्म वाले जींस नहीं पहन सकते? 
साभार: भास्कर समाचार 
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