केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ कर दिया है कि ‘वन रैंक वन पेंशन’
(ओआरओपी) के तहत हर साल पेंशन समीक्षा करने की पूर्व फौजियों की मांग
व्यवहारिक नहीं है। उन्होंने कहा है कि कम उम्र में रिटायर होने वाले
फौजियों का ध्यान रखने का फर्ज सरकार निभाने को तैयार है। लेकिन सालाना
समीक्षा शुरू करने से अन्य
वर्गो में भी ऐसी मांग उठनी शुरू हो जाएगी। उधर,
सरकार के रवैये को देखते हुए पूर्व फौजियों के संगठन नए सिरे से अपनी
रणनीति तय करने में जुट गए हैं। पूर्व फौजियों से जारी बातचीत के पूरी तरह
से अटक जाने के बाद केंद्र सरकार की ओर से पहली बार इतनी साफगोई से अपनी
स्थिति रखी गई है। वित्त मंत्री ने सोमवार को पहली बार यह भी माना कि पेंशन
समीक्षा की अवधि को ले कर दोनों पक्षों के बीच मतभेद ही बातचीत अटकने का
सबसे अहम कारण है। उन्होंने कहा कि सालाना समीक्षा दुनिया में कहीं नहीं
होती। साथ ही देश की वित्तीय स्थिति इस बात की इजाजत नहीं देती कि पेंशन की
सालाना समीक्षा की जाए। वन रैंक वन पेंशन को ले कर पूछे जाने पर उन्होंने
कहा, ‘हम उन सैनिकों के हितों का पूरा खयाल रखेंगे जो 35 या 38 की उम्र
में रिटायर होते हैं। समाज को उनकी हर हाल में हिफाजत करनी चाहिए। इसलिए
विशेष फामरूले पर उन्हें ऊंची पेंशन देने को तो समझा जा सकता है। लेकिन हर
साल इसकी समीक्षा नहीं की जा सकती।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से
लाल किले से दिए भाषण में इसे सैद्धांतिक रूप से मंजूर करने की बात पर
जेटली ने कहा, ‘हम सिद्धांत को स्वीकार करते हैं, हम सिद्धांत को लागू करने
को तैयार हैं। लेकिन हमें ऐसा उदाहरण तैयार नहीं करना जहां समाज के दूसरे
तबके भी ऐसी ही मांग करने लग जाएं।’ उन्होंने कहा कि ओआरओपी को ले कर सरकार
का अपना फार्मूला है और पूर्व फौजियों का अपना। लेकिन उनकी तार्किक मांगों
को ही माना जा सकता है। वित्त मंत्री के तौर पर अपनी भूमिका के बारे में
उन्होंने कहा कि राजस्व संबंधी समझदारी को ले कर वे बहुत सतर्क रहे हैं।
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साभार: जागरण
समाचार
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