कुछ साल पहले तक सुबह आंख खुलते ही हम हाथ में गिलास लेकर भीख मांगने निकल
जाते थे। बट नाउ आइ रीड इन सिक्सथ क्लास। आइ वांट टू बी एन ऑफिसर।’ ‘माइ
नेम इज मुकेश, आइ रीड इन इलेवंथ क्लास। आइ वांट टू सर्व माई नेशन।’ ‘आइ एम
नंदू। आइ रीड इन थर्ड क्लास। आइ लाइक रीडिंग वैरी मच।’ आत्मविश्वास से भरी
अंग्रेजी में यह बातचीत उन छोटे-बड़े 15 बच्चों की है जो छह वर्ष पहले तक
गलियों में भीख मांगते थे। सूरज
निकलते ही गिलास या कटोरा हाथ में लेकर
निकल पड़ते थे भीख मांगने। मगर 10वीं पास विकलांग सुरेश शर्मा ने इनमें
शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि अब इनका जीवन बदल गया है। विकलांग आश्रम चला
रहे सुरेश बताते हैं कि पट्टी अफगान की झुग्गी बस्ती में रहने वाले इन
बच्चों के माता-पिता से उन्हें पढ़ाने को कहा तो सभी ने हाथ खड़े कर दिए।
मगर जब उन्होंने पढ़ाई की सारी व्यवस्था खुद करने का भरोसा दिलाया तो वे
मान गए। इसके बाद श्री बालाजी अस्पताल के डॉ. नवीन बंसल की मदद से बच्चों
को सरोजिनी नायडू पब्लिक स्कूल में दाखिला दिला दिया गया। नंदू, आनंद,
आजाद, गौरव, प्रीति, गोपाल, निर्मला, दामिनी, बिंदिया, रीतू, नीतू, मुकेश,
सुरेंद्र, माफी और लीला नामक यह बच्चे केजी से 11वीं क्लास में पढ़ते हैं।
सुबह सभी नहा-धो कर साफ-सुथरी ड्रेस में स्कूल जाते हैं। दोपहर बाद चार बजे
आश्रम में इनके लिए ट्यूशन पढ़ने की व्यवस्था है। सभी बच्चे पढ़ाई में
अच्छे हैं। मन लगाकर पढ़ रहे हैं और भविष्य के लिए कई सुनहरे सपने संजोए
हैं। छठी कक्षा की नीतू तो नृत्य भी बहुत अच्छा करती है। हाल ही में उसे
स्कूल में पुरस्कार भी मिला है। 11 वीं की मुकेश कहती है, हम सबका जीवन
संवर गया। अब तो लगने लगा है कि हम भी कुछ कर जाएंगे, हमारे भी सपने पूरे
होंगे। सुरेश कहते हैं कि इन बच्चों की तरक्की देखकर बहुत सुकून मिलता है।
इनकी पढ़ाई लिखाई, कॉपी-किताब, वर्दी और ट्यूशन पर करीब 12 हजार रुपये
प्रतिमाह का खर्च आता है जो डॉ. बंसल एवं संस्था जेसीआइ के सहयोग से वहन हो
रहा है। सभी बच्चों को दोपहर का भोजन आश्रम की ओर से दिया
जाता है।
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साभार: जागरण
समाचार
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