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एक काबुल वासी भारत घूमने आया। उसे न तो यहां की भाषा आती थी और न ही वह यहां की संस्कृति से परिचित था। वह एक दुकान के अंदर गया और एक मिठाई की ओर संकेत किया। हलवाई ने समझा कि वह मिठाई का नाम पूछ रहा है। सो वह बोला, 'खाजा'। चूंकि 'खाजा' का मतलब 'खा लो' भी होता है और संयोग से काबुली यही मतलब जानता था। अत: वह दोनों हाथों में खाजा भरकर खाने लगा। जब हलवाई ने पैसे मांगे तो उसे कुछ समझ नहीं आया। वह वहां से आगे बढ़ गया।
तब हलवाई की शिकायत पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। सिपाहियों ने काबुली का सिर मूंड दिया। फिर उसे गधे पर बैठाकर ढोल-नगाड़े बजाते हुए जुलूस निकालकर शहर से बाहर छोड़ दिया। ताकि सब जान लें कि कानून तोडऩे वाले को कैसे दंडित किया जाता है। किंतु काबुली ने अज्ञानतावश इस दंड को कौतुक समझा। गधे की सवारी, ढोल-ढमाका और जुलूस में उसे बहुत मजा आया और सड़कों पर उसे देखने के लिए उमड़ी भीड़ को उसने अपना सम्मान समझा। काबुल लौटने पर जब लोगों ने उससे पूछा, 'हिंदुस्तान कैसा लगा?' तो वह बोला, 'बहुत प्यारा मुल्क है। वहां हर चीज मुफ्त मिलती है। जो मिठाई अच्छी लगे, बस उसकी ओर इशारा कर दो। फिर ढोल-ढमाकों के साथ सिपाही आएंगे, वे तुम्हारी हजामत बनाएंगे, गधे पर सवारी कराते हुए तुम्हारा जुलूस निकालेंगे। इतनी मेहमाननवाजी मैंने कहीं नहीं देखी।' समझदार लोग काबुली की मूर्खता पर हंस दिए। अनजान स्थान, अजनबी लोग और अलग भाषा जहां हो, वहां बहुत समझदारी से काम लेना चाहिए। या तो स्वयं वहां की पर्याप्त जानकारी लेकर जाएं अथवा किसी योग्य मार्गदर्शक की सहायता लें, अन्यथा उपहास या अपमान का पात्र बनते देर नहीं लगती।
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साभार: भास्कर समाचार
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