Friday, July 11, 2014

प्रेरणा: उन्नति का मूलमंत्र प्रेम और भाईचारा



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एक राजा का मंत्री अत्यंत बुद्धिमान था। जब भी राजा के समक्ष कोई समस्या आती तो वह मंत्री से विचार-विमर्श करता और मंत्री समाधान सुझा देता। एक दिन दोनों काम के बोझ से मुक्त होकर हल्की-फुल्की बातें कर रहे थे। अचानक राजा ने मंत्री से प्रश्न किया, क्रमंत्रीजी! जरा बताइए कि कुत्तों के झुंड क्यों नहीं दिखते जबकि भेड़ों के झुंड खूब देखने को मिलते हैं। हालांकि कुत्ते भेड़ों से अधिक बच्चे पैदा करते हैं।' मंत्री बोला, क्रमहाराज! आपको कल आपके प्रश्न का उत्तर मिलेगा।' फिर वह राजा को लेकर महल के पूर्वी हिस्से में पहुंचा। वहां उसने एक कोठरी में बीस कुत्ते बंद करवा दिए और उनके बीच रोटियों से भरी एक टोकरी रख दी। फिर मंत्री ने दूसरी कोठरी में बीस भेड़ें बंद करवा दीं और उनके बीच चारे की एक टोकरी रख दी। ऐसा करने के बाद दोनों लौट आए। अगली सुबह दोनों वहां पहुंचे। राजा ने देखा कि सभी कुत्ते मरे पड़े हैं और उनके बीच रखी रोटी की टोकरी भरी की भरी रखी है।
कुत्ते रोटी के लिए आपस में लड़कर मारे गए। दूसरी कोठरी में सभी भेड़ें एक-दूसरे पर अपना मुंह रखकर सो रही थीं और चारे की टोकरी खाली थी। तब मंत्री ने कहा, क्रराजन! कुत्तों में एकता और भाईचारा नहीं है, इसलिए मिल-बांटकर रोटी खाने के स्थान पर वे लड़कर मर गए। इसीलिए उनके वंश में वृद्धि होने के बावजूद कमी आ जाती है। परस्पर द्वेष उन्हें झुंड में नहीं रहने देता, जबकि भेड़ों में एकता और स्नेह के कारण उनका वंश समृद्ध दिखाई देता है और वे समूह में रहती हैं। इसलिए उन्होंने प्रेम से मिल-जुलकर चारा खाया।' राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। परस्पर स्नेह और सहयोग से उन्नति होती है, जबकि ईर्ष्या-द्वेष और असहयोग से अवनति। इसलिए जहां भी रहें, प्रेम और भाईचारे से रहें।


साभार: भास्कर समाचार
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