Saturday, December 3, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: हर पल आपको देता है जिंदगी का छोटा सबक

मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
लेसन 1: 2 दिसंबर को सुबह 10 बजे नई दिल्ली का टी3 एयरपोर्ट रेलवे स्टेशन जैसा नज़र रहा था, क्योंकि सुबह से कोई भी विमान उड़ान नहीं भर सका था। सेल्फ प्रिंटेड बोर्डिंग पास लेकर मैं लाउंज में पहुंचा। आमतौर
पर यात्रा करने वाले लोग यहां होते हैं। लोग खड़े थे और टीवी देख रहे थे, जिस पर फ्लाइट डिले की जानकारी रही थी। बैठने की जरा भी जगह नहीं थी। एक मां दो बच्चों के साथ बेचैनी से इंतजार कर रही थी कि कोई यात्री सीट खाली कर देगा। अचानक एक विदेशी यात्री ने गर्लफ्रेंड के साथ 'किस' से आगे बढ़कर कुछ ऐसा किया जो उनके देश में आम है, लेकिन हमारे यहां नहीं। दोनों बच्चे शर्म से लाल हो गए, हालांकि अन्य लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। दोनों बच्चों ने एक-दूसरे की ओर असहमति से देखा और फिर मां की प्रतिक्रिया के लिए उनकी ओर देखा। मां ने करीब-करीब बलपूर्वक ही छोटे बच्चे का चेहरा अपनी साड़ी के पल्लू से ढंक दिया और वहां से जाने के लिए तैयार हो गईं। मां के वे करीब पांच मिनट मुश्किल से बीते। बच्चे बार-बार कपल को देख रहे थे। सवाल भी कर रहे थे। परेशान मां बहुत अच्छी थी और सख्त भी। उसके जवाब ने वहां मौजूद सभी लोगों को प्रभावित किया। उसने कहा, जीवनमें कुछ ऐसी बातें होती हैं जो आपको सही समय पर ही जानने की जरूरत होती है। धीरे-धीरे मां भीड़ में गायब हो गई। जवाब पर कम से कम तीन लोगों की प्रतिक्रिया थी- वॉव। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। 
लेसन 2: अलसुबह की फ्लाइट से जा रहे मेरे मित्र की मदद से मैं एक सीट हासिल करने में सफल रहा। अचानक भोपाल के सिंगर और गिटारिस्ट अतुल सेठी ने मुझे पहचान लिया। वे उद्योगपति आनंद महिंद्रा के यहां एक इवेंट के लिए मुंबई जा रहे थे। मैं अतुल के साथ करीब 15 मिनट तक खड़े-खड़े बातें करता रहा। मैंने देखा कि मेरे पास की सीट वाला शख्स बेचैन हो रहा था। वह बार-बार अपनी फ्लाइट के बारे में पूछकर हमें भी डिस्टर्ब कर रहा था। वह स्मोकिंग करना चाहता था, लेकिन अपनी सीट भी नहीं छोड़ना चाहता था, क्योंकि जानता था कि लौटने पर सीट मिलना मुश्किल है। मैं और अतुल बात कर रहे थे कि कोई भी अपनी सीट किसी को नहीं देना चाहता है, यहां तक कि अदल-बदलकर कुछ समय के लिए जैसा हमारी मुंबई की लोकल ट्रेन में होता है। अचानक पास बैठा व्यक्ति अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और अतुल से एक डील की कि जब वो स्मोकिंग करके और वॉश रूम होकर लौटेगा तो उसे सीट वापस दे देगा। इसमें कुल 15 मिनट का समय लगेगा। उसके जाने के बाद अतुल ने कहा। कुछलोग हैं, जो अपने कान हमेशा खुले रखते हैं। 
लेसन 3: दो घंटे बाद बोर्डिंग की घोषणा हुई। फ्लाइट 9 डब्ल्यू 316 के कैप्टन ने घोषणा की, हमारा नंबर उड़ान की कतार में 39वां है। अभी इसे रनवे पर आने में एक घंटे से अधिक समय लगेगा। कुछ यात्रियों ने विरोध किया और सीट नंबर 10बी और 10 के दो लोगों ने टिकट कैंसल करा लिए। वे क्रू मेंबर्स को बताकर एयरक्राफ्ट से बाहर गए। दो मिनट बाद सुरक्षाकर्मी ने सिक्योंरिटी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सभी यात्रियों से कहा कि वे अपने हैंड बैग देख लें। एक नाराज यात्री ने जैसे उस पर जैसे हल्ला बोल दिया और कहा कि आपको उन लोगों को चेक करना चाहिए जो उतरकर गए हैं, उन्हें नहीं जो यहां बैठे हैं। सिक्यूरिटी ने इसे नजरअंदाज करते हुए काम जारी रखा। आखिर में जाने से पहले कहा- सर इस 15 मिनट की मशक्कत से ज्यादा महत्वपूर्ण जिंदगी है। एक अन्य यात्री ने व्यंग्यात्मक लहजे में धीरे से कहा, जब आपको स्थिति नहीं पता हो तो बोलना ही क्यों चाहिए? 
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साभार: भास्कर समाचार 
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