Thursday, June 9, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: अच्छे इंसान चुप नहीं रहते जो करना है, कर डालते हैं

एन रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु) 
मंगलवार को एक मित्र के साथ मैं देर शाम पैदल सैर पर निकला था। उन 10 मिनटों में उज्जैन के नाना खेड़ा बस स्टैंड के पास आरटीओ जाने वाले मार्ग पर किसी को इस बात की फिक्र नहीं थी कि रुके और मदद करे उन सैकड़ों छोटी जिंदगियों की, जो जीवन की लड़ाई हारती जा रही हैं। ये जिंदगियां मध्यप्रदेश सरकार के 3500 करोड़ रुपए के अधारभूत संरचना के सौदर्यीकरण प्रोजेक्ट का हिस्सा भी हैं। जबकि हाल ही में उज्जैन में लाखों तीर्थयात्री कुंभ मेले में आए थे। मैं बात कर रहा हूं छोटे-बड़े उन पौधों की जो तेज गर्मी सह नहीं पा रहे हैं। 250 से ज्यादा कारें और सैकड़ों पैदल चलने वाले इन पौधों को नोटिस किए बिना गुजर गए, जबकि रोड डिवाइडर और सड़क के किनारे लगे ये पौधे मुर्झाते और सूखते जा रहे हैं। अगर आप वहां रुकें और उनकी बातें सुनें, उनकी खामोश चीखें सुनें तो पाएंगे कि वे कह रहे हैं- 'प्लीज कुछ दिनों के लिए हमारी मदद कीजिए, एक बार बारिश होने पर हम सभी अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे। ईश्वर की कृपा से हम मजबूत हो जाएंगे। हम सभी आने वाले कई वर्षों तक आपको छाया देंगे, लेकिन आज प्लीज हमें कुछ लीटर पानी दे दो, क्योंकि हम इस गर्मी को और नहीं सह सकते। 
हम इस शहर में यात्री थे और स्थानीय प्रशासन के रवैये पर नाराजगी जता रहे थे कि वह पौधों की देखरेख के प्रति कितना लापरवाह है। मध्यप्रदेश में बारिश इस महीने के अंत तक आने की संभावना है। इस बीच हमने अचानक देखा कि तीन लोग रोड डिवाइडर के हर पौधे को जड़ के आस-पास खोदकर प्लास्टिक की केन से पानी दे रहे हैं। केन ये लोग अपने स्कूटर पर रखकर लाए थे और पौधों पर पानी का स्प्रे कर रहे थे। उन्होंने पाया कि इन पौधों के आसपास गड्‌ढे नहीं किए गए थे और इन्हें समतल जमीन पर ही लगा दिया गया था। दोनों तरफ ढलान भी है इसलिए पानी यहां टिकता नहीं है। ये लोग गड्‌ढे कर रहे थे, ताकि कम से कम दो-तीन दिन तो पानी वहां टिक सके। पता चला कि ये काम पिछले कुछ सालों से कर रहे हैं, ताकि उनका शहर हरा-भरा बन सके। रात के भोजन के बाद दो-तीन घंटे ये लोग पौधों को अलग-अलग स्थानों पर नियमित रूप से पानी देते हैं। विशेष रूप से भीषण गर्मी के दिनों में। यह अपने शहर को इन लोगों का योगदान है। ये अच्छा काम प्लास्टिक मोल्डिंग मशीन फैक्ट्री के मालिक अखिलेश जैन, एलएलबी के छात्र अजय बिथोरे और थिएटर कलाकार कंप्यूटर एप्लिकेशंस में पोस्टग्रेजुएशन कर रहे अंकित जोशी मिलकर कर रहे हैं। एक व्यक्ति पौधों में पानी दे रहा था, जबकि दो अपने स्कूटर पर घर से केन में पानी भरकर ला रहे थे। इनका मानना है कि अगर स्थानीय प्रशासन असफल रहता है तो पौधों को पानी देना उनकी भी जिम्मेदारी है। जिम्मेदारी की यह भावना ही लोकतंत्र का मूल है। 
मुझे अचानक रामायण की याद आई। भगवान राम को जटायु से पता चला था कि किसने सीता का अपहरण किया है। जटायु ने रावण से संघर्ष किया था और लहूलुहान हो गए थे। जटायु ने ही यह बताया था कि रावण किस दिशा में गया है। जटायु पवित्र आत्मा थे, यह मानकर चुप नहीं रह गए कि ये राम और रावण के बीच का मामला है। इसी तरह महाभारत में दुर्योधन और दुशासन अकेले ही द्रौपदी के अपमान के लिए जिम्मेदार नहीं थे। इसके लिए भीष्म पितामह,आचार्य द्रोणाचार्य और राजा धृतराष्ट्र जैसे अच्छे लोग भी जिम्मेदार थे, जो वहां मौजूद थे, लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं और दोनों को रोका। ये दो उदाहरण बताते हैं कि व्यक्ति का अच्छा होना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे उचित समय पर योग्य व्यवहार भी करके दिखाना होगा। सिर्फ विचार से नहीं, अच्छाई कर्म में भी व्यक्त होनी चाहिए। 
फंडा यह है कि अगर आप स्वयं को अपने शहर, देश का अच्छा नागरिक कहते हैं तो खामोश मत रहिए। आपको अच्छे कामों के लिए आवाज उठानी होगी। तब आपको यह हक मिलेगा कि खुद को 'अच्छा इंसान' होने का तमगा दे सकें।

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साभार: भास्कर समाचार 
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