एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: मैंने पूरे बतख परिवार के पीतल के स्टेच्यू तो किसी पब्लिक गार्डन में सिर्फ अमेरिका के बोस्टन में ही देखे हैं। यह स्टेच्यू रॉबर्ट मैकक्लूस्की की यादों पर हैं, जिन्होंने 1941 में आठ पिक्चर बुक्स लिखी थीं, शीर्षक
था- 'मेक वे फॉर डकलिंग्स'। इसके लिए अगले साल उन्हें पुरस्कृत किया गया। दिल को छू लेने वाली ये कहानी मेलड्रर्स (जंगली बतख) के बोस्टन की व्यस्त गलियों में भटकने की है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। तेज रफ्तार कारों और बाइकों से बचते-बचाते बतख अपने बच्चों को शहर के लोगों के फेंके गए दाने खाना सिखाती है। अगर आप आज वहां जाएं तो इस किताब को बोस्टन म्यूजियम ऑफ आर्ट में देख सकते हैं।
स्टोरी 2: इसवीकेंड पर मैं क्रिसमस थीम की चार दिन की एक निजी कुकिंग वर्कशॉप में शामिल हुआ। मकसद संजीव कपूर और हरपाल सिंह सोखी जैसे शेफ दोस्तों से मुकाबला करना कतई नहीं था, लेकिन मैं भागीदरों को देखना चाहता था। इनकी उम्र ढाई से आठ साल के बीच थी और इन्होंने बेक्ड इडिबल क्रिसमस ट्री ऑरनामेंट्स और कई तरह की कुकी बनाना सीखी। मैं इस वर्कशॉप में शामिल नहीं होता, अगर इसका लक्ष्य इन्हें मास्टर शेफ बनाना होता लेकिन, उद्देश्य तो हैल्दी फूड का माहौल बनाना था। उदाहरण बतौर पर अधिकतर बच्चे हरी सब्जियों से दूर भागते हैं पर इस वर्कशॉप के मेन्यू में पालक की चिप्स थीं। जब ये बनकर आईं तो बच्चों ने इसका हर बाइट खत्म किया।
वर्कशॉप में बच्चों ने बुनियादी काम किया। आयोजकों ने उन्हें कुकिंग, हीटिंग और बेकिंग में मदद की। क्लासेस के लिए बच्चों के लिए बनाए गए टूल्स, चाकू, स्मेशर आदि मंगवाए गए थे। फायदा यह हुआ कि माता-पिता इस बात को लेकर खुश थे कि बच्चे अच्छा कुछ सीख रहे हैं। साथ ही उनकी खान-पान की आदतें भी अच्छी हो रही हैं। यह बात साबित भी हुई। एक पेरेंट चार साल के एक्स स्टूडेंट (!) के साथ आए थे और उन्होंने बताया कि उसे पहले चुकंदर देखने से ही नफरत थी, लेकिन अब चुकंदर का सूप खुद बनाना शुरू कर दिया है। वे इसे अपने पेरेंट्स को भी पीने के लिए देती है। शायद इसलिए कि इसे वे खुद बनाती है। एक और तीन साल की बच्ची ने बीती गर्मियों में ही कोर्स पूरा किया है। अब वह अपने लिए एक ऊंची चेयर ले आई है, जिस पर बैठकर अपनी मां को परिवार के लिए खाना बनाते देखती है। रोज वह आखिरी रोटी बनाती है और परिवार में सभी को उस रोटी में अपना हिस्सा लेना होता है। यह डाइनिंग टेबल पर मौजूद सभी लोगों के लिए जरूरी है।
टेबल पर डिनर इस बच्ची की बनाई रोटी से ही शुरू होता है। जब सभी कह देते हैं कि कल की तुलना में आज रोटी का स्वाद और शेप दोनों सुधरा है, तभी भोजन शुरू होता है। सबसे अच्छी बात यह है कि पूरा परिवार एक साथ भोजन का आनंद लेता है और मां क' बच्चों को जबरदस्ती खिलाने की परेशानी भी नहीं उठानी होती। कुछ पुराने छात्र, जो बच्चे ही हैं, हाल ही में 'ट्रायो टोट्स जूनियर शेफ हैल्दी फूड फेस्ट फोर कीड' में शामिल हुए थे। यह 3 से 14 साल की उम्र के बच्चों के लिए ऐसी कुकिंग इवेंट थी, जिसमें आग का इस्तेमाल नहीं था। यहां बच्चों ने देश के 29 राज्यों की अलग-अलग रेसिपी सीखी। एक्स स्टूडेंट यहां नए बच्चों का जोश बढ़ाने आए थे। जब मैं लौट रहा था तो मुझे अफसोस हुआ कि अपनी बेटी के लिए चाइल्ड सेफ नाइफ और चॉपिंग बोर्ड क्यों नहीं खरीदा। मुझे डकलिंग की कहानी याद गई, जिसमें उन्हें अपने लिए खुद दाना चुनने और इसे खाने की अनुमति थी।
फंडा यह है कि अगर आप किसी क्षेत्र में बच्चों की दिलचस्पी के स्तर को ऊंचा उठाने में करना चाहते हैं तो उन्हें बचपन से ही सिखाइए।
टेबल पर डिनर इस बच्ची की बनाई रोटी से ही शुरू होता है। जब सभी कह देते हैं कि कल की तुलना में आज रोटी का स्वाद और शेप दोनों सुधरा है, तभी भोजन शुरू होता है। सबसे अच्छी बात यह है कि पूरा परिवार एक साथ भोजन का आनंद लेता है और मां क' बच्चों को जबरदस्ती खिलाने की परेशानी भी नहीं उठानी होती। कुछ पुराने छात्र, जो बच्चे ही हैं, हाल ही में 'ट्रायो टोट्स जूनियर शेफ हैल्दी फूड फेस्ट फोर कीड' में शामिल हुए थे। यह 3 से 14 साल की उम्र के बच्चों के लिए ऐसी कुकिंग इवेंट थी, जिसमें आग का इस्तेमाल नहीं था। यहां बच्चों ने देश के 29 राज्यों की अलग-अलग रेसिपी सीखी। एक्स स्टूडेंट यहां नए बच्चों का जोश बढ़ाने आए थे। जब मैं लौट रहा था तो मुझे अफसोस हुआ कि अपनी बेटी के लिए चाइल्ड सेफ नाइफ और चॉपिंग बोर्ड क्यों नहीं खरीदा। मुझे डकलिंग की कहानी याद गई, जिसमें उन्हें अपने लिए खुद दाना चुनने और इसे खाने की अनुमति थी।
फंडा यह है कि अगर आप किसी क्षेत्र में बच्चों की दिलचस्पी के स्तर को ऊंचा उठाने में करना चाहते हैं तो उन्हें बचपन से ही सिखाइए।
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साभार: भास्कर समाचार
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