एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
स्टोरी 1: लगभग अंधेरा हो चला था। फिर भी 29 वर्षीय रसीला वाधेर घने जंगल में धैर्यपूर्वक शिकार नज़र रखकर इंतजार कर रही थीं। अब उनकी बंदूक के निशाने पर शिकार की गर्दन थी। हल्की बयार के कारण पेड़ की पत्तियां हिल रही थीं, जिसके कारण उन्हें देखने में बाधा आने से वह चिढ़ रही थी। एक पत्ती ने उनके गाल को
छू लिया और वहां खुजली होने लगी पर उन्होंने हाथ नहीं हिलाया कि कहीं शिकार सतर्क हो जाए। जब हवा थोड़ी मंद पड़ी तो उन्हेंं शिकार का अच्छा नज़ारा मिलने लगा और उन्होंने निशाना साधा, ट्रिगर दबाया और शिकार- जो शानदार शेरनी थी, ढह गई। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। उन्होंने एक मिनट इंतजार किया यह पक्का करने के लिए कि शिकार पूरी तरह निश्चल हुआ या नहीं। वे अपनी वाकी-टाकी निकालती हैं, जो अब तक मौन था। अपनी टीम को संदेश देती हैं, जो जल्दी ही वहां पहुंच जाती है और सावधानीपूर्वक उस सुंदर शेरनी को जाल में लेपट लेती है तथा जल्दी से जंगल की रानी को वेटरीनरी क्लिनिक ले जाती है ताकि अपने ही परिवार के सदस्य के साथ हुए संघर्ष में शेरनी को जो प्राणघातक घाव हुए हैं उनका इलाज किया जा सके।
जब उसने वाहन को पार्क किया तो रसीला तेजी से उतरकर आईं और शेरनी को प्यार से सहलाया, बेहोश करने वाले तीर को निकाला, जो उन्होंने शेरनी पर चलाया था। यदि वे ऐसा नहीं करतीं तो शेरनी कभी भी अपने घातक घावों के कारण मर जाती। यह काम आसान नहीं है। हजारों एकड़ में फैले अभयारण्य पर इस तरह निगाह रखना कि तत्काल पता चल जाए कि कौन-सा प्राणी घायल है, बीमार है या उसे किसी प्रकार की मदद की जरूरत है। उसे सतत जागरूक सतर्क रहना पड़ता है। रसीला उन 46 प्रशिक्षित फारेस्ट गार्ड की सदस्य हैं, जिनमें इस साल 43 अतिरिक्ति महिला सदस्य शामिल होंगी तथा यह दल और मजबूत हो जाएगा। यह टीम घायल जानवरों को गिर फॉरेस्ट के अस्पताल वाले इलाके में लाती है। यह खतरे में पड़ी एशियाई शेरों की अंतिम शरणगाह है। जब इस जंगल को अभयारण्य घोषित किया तो बताते हैं कि वहां सिर्फ 12 शेर शेष थे। आज इन महिला फॉरेस्ट गार्ड के संरक्षण प्रयासों की बदौलत, शेर परिवार की संख्या 520 तक पहुंच गई है। ये महिलाएं अज्ञात क्षेत्र में खतरनाक मुठभेड़ होने का जोखिम उठाती हैं, जो इनसे कड़े शारीरिक श्रम की मांग करता है। लॉयन क्वीन्स कहलाने वाली महिलाओं की यह टीम तेंदुए, हिरण, लकड़बग्गे, बंदर और हजारों मगरमच्छ सहित सौ से ज्यादा प्रजातियों की देखभाल करती है। इस जंगल में महिलाओं को तैनात करने वाला गुजरात पहला राज्य है, जो दिन में कम से कम दो ऐसे घायल जानवरों को बचाती है। दो बच्चों की मां रसीला को तब बहुत खुशी होती हैं, जब वे किसी मादा को बच्चे देते और उनकी देखभाल करते देखती हैं। प्राणियों का प्रत्येक परिवार जब बढ़ता है तो यह टीम उसका जश्न मनाती है। आखिर यही तो उनका मकसद है कि वन्य प्राणियों का संरक्षण करना और लगातार उनकी संख्या बढ़ाने के लिए प्रयास करते रहना।
स्टोरी 2: अपनी पूरी जिंदगी 50 वर्षीय सूरजपाल गोरेलाल बेलकर ने जंगल की अपनी झोपड़ी में ही बिताई है। राशन खरीदने के लिए भी उन्हें 50 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। बिजली, सड़क, नल से पानी की सप्लाई को तो उन्होंने देखा है और सुना है। मानसून में तो यह इलाका दुनिया के हर हिस्से से पूरी तरह कट जाता है। उन्हें यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि शहर की रोशनी और चमकधमक उसे चौंधिया देती हैं। आप जरूर सोच रहे होंगे कि 50 साल से जब वे अपनी झोपड़ी से नहीं निकले हैं तो शहर की रोशनी और चमक-धमक के बारे में कैसे जानते हैं।
हां, ये 'वन मजदूर' महाराष्ट्र के मेलघाट टाइगर रिजर्व के केंद्रीय इलाके से पहली बार गुरुवार को वहां से बाहर निकले और वह भी वन्य जीव का असाधारण काम करने के लिए दिए जाने वाले एशिया अवॉर्ड को ग्रहण करने के लिए। वे सबसे कठिन माने जाने वाले जंगल के हिस्से में सतत गश्त करते रहते हैं। अपना पूरा जीवन उन्होंने वन्य प्राणियों के संरक्षण को अर्पित कर दिया और उसके लिए हर तरह का कष्ट सहा। अपनी सुविधा-असुविधा नहीं देखी। शहर का सारा आकर्षण छोड़ दिया। क्या आप जानते हैं कि अपने काम को वे इतना क्यों प्रेम करते हैं- उनकी मदद पाने वाले हर जानवर की आंखों से जो सद्भावना उनके लि प्रकट होती है, वही उनकी प्रेरणा है। वन्य प्राणी जानते हैं कि कौन अवैध शिकारी हैं और कौन उनका संरक्षक है।
स्टोरी 2: अपनी पूरी जिंदगी 50 वर्षीय सूरजपाल गोरेलाल बेलकर ने जंगल की अपनी झोपड़ी में ही बिताई है। राशन खरीदने के लिए भी उन्हें 50 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। बिजली, सड़क, नल से पानी की सप्लाई को तो उन्होंने देखा है और सुना है। मानसून में तो यह इलाका दुनिया के हर हिस्से से पूरी तरह कट जाता है। उन्हें यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि शहर की रोशनी और चमकधमक उसे चौंधिया देती हैं। आप जरूर सोच रहे होंगे कि 50 साल से जब वे अपनी झोपड़ी से नहीं निकले हैं तो शहर की रोशनी और चमक-धमक के बारे में कैसे जानते हैं।
हां, ये 'वन मजदूर' महाराष्ट्र के मेलघाट टाइगर रिजर्व के केंद्रीय इलाके से पहली बार गुरुवार को वहां से बाहर निकले और वह भी वन्य जीव का असाधारण काम करने के लिए दिए जाने वाले एशिया अवॉर्ड को ग्रहण करने के लिए। वे सबसे कठिन माने जाने वाले जंगल के हिस्से में सतत गश्त करते रहते हैं। अपना पूरा जीवन उन्होंने वन्य प्राणियों के संरक्षण को अर्पित कर दिया और उसके लिए हर तरह का कष्ट सहा। अपनी सुविधा-असुविधा नहीं देखी। शहर का सारा आकर्षण छोड़ दिया। क्या आप जानते हैं कि अपने काम को वे इतना क्यों प्रेम करते हैं- उनकी मदद पाने वाले हर जानवर की आंखों से जो सद्भावना उनके लि प्रकट होती है, वही उनकी प्रेरणा है। वन्य प्राणी जानते हैं कि कौन अवैध शिकारी हैं और कौन उनका संरक्षक है।
फंडा यह है कि यदिआप चाहते हैं कि आपकी टीम कठोर श्रम करें- तो उनके संरक्षक बनें। तब सदस्यों की आंखों से आपको मिलेगा 'थैंक्यू'। यही आपको कड़ी मेहनत करने को प्रेरित करता रहेगा।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
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