Sunday, December 18, 2016

सफलता का मंत्र: खुद के प्रति कठोर दूसरों के लिए दयालुता

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
दूसरों के प्रति दयालुता: भारतमें जन्मी डॉली अल्फ्रेड मिरांडा को काम करने का पहला अनुभव मुंबई के ताज होटल में मिला, जहां उन्होंने सीखा कि स्टाफ का ख्याल रखने और उन्हें खुश रखने से बिज़नेस बहुत तेजी से फलता-फूलता है। इसलिए अल्फ्रेड मिरांडा से विवाद के बाद, जब उनके पति ने संयुक्त अरब अमीरात में
आयात-निर्यात फर्म खोलने का निर्णय लिया तो मिरांडा ने एक पार्लर खोलने का सुझाव दिया। एक भारतीय और एक फिलीपीनी हेयर ड्रेसर के साथ पेडिक्यूर और मैनीक्यूर सुविधाओं वाला पार्लर अल-मंसूर खोला गया। उसने अपने पहले जॉब में सीखे आइडियाज़ आजमाते हुए स्टाफ के लिए 'अधिक बिल, अधिक पैसा' का मॉडल अपनाया। यह बहुत अच्छा चला, क्योंकि स्टाफ बहुत मेहनत करता। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस युगल ने ऊंची गुणवत्ता और कम लाभ के साथ दरें किफायती रखीं। कर्मचारियों को वेतन देने के अलावा वे उनके रहने, खाने, आने-जाने, रसोई गैस और लॉन्ड्री का भी खर्च उठाते। वे साल में एक बार उन्हें घूमने की छुट्‌टी देकर उसका भी खर्च उठाते। बीस साल में यह पार्लर इतना बड़ा हो गया कि भारत, पाकिस्तान, फिलीपीन्स और मोरक्को जैसे देशों के 70 कर्मचारी वहां हेयर ड्रेसर ब्यूटीशियन के रूप में काम करते हैं और मैनीक्यूर पेडिक्यूर करते हैं, लेकिन शायद यह दुनिया के उन कुछ पार्लर में से हैं, जिसमें अलग से सेल्स तथा मार्केटिंग विभाग है। 
खुद के प्रति कठोर: वे ऐसे खेल के लिए कॉन्ट्रेक्टर वर्कर थे, जिसे इस देश में आमतौर पर बहुत धनी वर्ग खेलता है- गोल्फ। वे ऐसी कॉन्ट्रेक्चुअल एजेंसी में काम करते थे, जिसकी सेवाएं टिनप्लेट कंपनी ऑफ इंडिया ने ली थी। जमशेदपुर के बिरसानगर जोन 7 स्थित गोल्फ कोर्स हमेशा पिंटू रजक में जुनून जगाता। वे यह भी अच्छी तरह जानते थे कि उनमें 1996 के केविन कोस्टनर की तरह बाल-प्रतिभा नहीं है। फिर भी उनकी तमन्ना थी कि वे भी किसी दिन पेशेवर गोल्फर के बतौर नाम कमाएं। वे प्राय: क्लब के सदस्यों को धनी लोगों का यह खेल खेलते देखते और उन्होंने गोल्फरों की मदद करने वाला कैडी बनने का निश्चय किया ताकि जरा नज़दीक से गोल्फ जानने का मौका मिले। दस साल पहले जब रजक अभी बेरोजगार ही थे, 22 की उम्र में उन्होंने विभिन्न कॉर्पोरेट टूर्नामेंट में गोल्फरों के लिए उनका किट ले जाने का काम शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने सीखा कि खेल खेला कैसे जाता है। उनके भीतर की लौ आग में तब्दील हो गई और अब वे पेशेवर खिलाड़ियों के साथ खेलना चाहते थे। केडी के रूप में भी रजक बहुत सतर्कता बारीकी से अपना करते थे। टूर्नामेंट के दौरान वे शायद ही काम से गायब रहते और मैच के दौरान अपने सीमित ज्ञान के बल पर उपयोगी टिप्स देते, जिसकी हर खिलाड़ी सराहना करता और जल्द ही वे कई खिलाड़ियों के प्रिय कैडी हो गए, क्योंकि उन्हें उनकी दी टिप्स बहुत काम की लगतीं। कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने रंग दिखाया जब 5 दिसंबर को इस कैडी ने इस साल के टाटा ओपन टूर्नामेंट में क्वालिफाइंग राउंड पार कर जगह पक्की कर ली। 
उनके समर्पण को देखते हुए क्लब ने एलीट टूर्नामेंट के लिए 'क्लब स्पॉट प्रिविलेज' का इस्तेमाल कर रजक की सिफारिश की थी। इस प्रिविलेज के तहत क्वालिफाइंग राउंड में गुणवत्तापूर्ण खेल दिखाने के आधार पर किसी शौकिया खिलाड़ी को भी मौका मिल जाता है। उन्होंने क्लब के एक सदस्य से गोल्फ किट खरीदी और अब सब तैयारी हो गई थी, लेकिन एक अड़चन बाकी थी। चूंकि उनका वेतन बहुत ही कम था, वे 1 हजार रुपए की रजिस्ट्रेशन फीस नहीं दे सकते थे। हालांकि, क्लब ने इसे चुकाने का निर्णय लिया। अब दो साल की बच्ची के पिता पिंटू रजक जमशेदपुर के गोलमुरी क्लब में इस गुरुवार से गोल्फ खेलते नज़र रहे हैं। क्लब के कई सदस्य उन्हें साथी गोल्फर के रूप में देखकर खुश हैं। वे सिर्फ टूर्नामेंट में पेशेवर खिलाड़ियों के साथ खेल रहे हैं बल्कि अपने खेल में भी बहुत सुधार ला रहे हैं ताकि वे सच्चे अर्थों में पेशेवर गोल्फर बन सकें। 
फंडा यह है कि सफलताके कई रास्तों में से एक राह खुद के प्रति कठोर और दूसरों के लिए दयालु होना भी है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.