Saturday, December 17, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: सामाजिक कार्य व्यर्थ नहीं जाते, ये बदलाव लाते हैं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
स्टोरी 1: जब कहीं 110 छात्र जमा हों तो निश्चित ही बहुत शोर-शराबा होगा, मस्ती होगी, लेकिन जब मुंबई के दादर स्थित केएमडी कॉलेज के 110 छात्र एक खास मकसद से एक जगह जमा हुए तो लोग रो पड़े। पनवेल
ताल्लुका के उमरोली का कोई भी ग्रामीण यह नहीं चाहता था कि वे लौटकर जाएं लेकिन, उन्हें तो जाना ही था, क्योंकि वे एक खास उद्‌देश्य से यहां आए थे और वह पूरा हो गया था, लेकिन गांव वालों के लिए कॉलेज के इन युवाओं का उनसे दूर जाना दुखद अहसास था। कॉलेज छात्रों और ग्रामीणों के बीच गहरे संबंध जो बन गए थे। 
यह मजबूत संबंध सिर्फ सात दिन में बना था। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। युवाओं ने कुछ देना सीखा था। हां, इन युवाओं ने 168 घंटों में गांव की पूरी शक्ल ही बदल दी थी। ये लोग एनएसएस (नेशनल सर्विसेस स्कीम) की टीम के तौर पर यहां आए थे। इन्होंने पानी की बर्बादी रोकने के लिए नदी की धारा पर दो बांध बनाए थे। मिट्‌टी और रेत से भरी बोरियों से ये बांध बनाए गए थे। पानी की धारा को इनसे अच्छे से रोककर सील कर दिया गया था। इससे आसपास के इलाके में जमीन में पानी का स्तर भी बढ़ेगा। पशुओं और फसलों के लिए पर्याप्त पानी देने में यह मददगार साबित होगा। इसी ग्रुप के कुछ छात्रों ने स्वच्छ भारत अभियान चलाकर सड़कों को साफ किया था और स्कूल और पंचायत की दीवार पर कलाकृतियां बना दी थीं। छात्रों का समर्पण देखकर गांव के कई लोग भी उनके इस अभियान में शामिल हो गए और प्रोजेक्ट पूरे करने में मदद की। छात्रों के लिए यह अच्छी जिंदगी जीने का प्रैक्टिकल भी तो था। 

स्टोरी 2: आरती फानडे कक्षा 8 की छात्रा हैं और स्कूल जाते हुए या माता-पिता के साथ बाजार जाते हुए सड़क पर काफी चौकस रहती है। जब भी उसे सड़क पर कोई बेकार चीज पड़ी दिखती है तो उसे लगता है कि इसे वह क्या रूप दे सकती है। उसका रचनात्मक दिमाग तेजी से कई कल्पनाएं करने लगता। फिर वह तय करती कि उसे स्क्रैप उठाना है या नहीं। यह चम्मच हो सकता है, या टूटा हुआ मग या फिर टूटे हुए इलेक्ट्रिक वायर या ऐसी ही कोई और चीज। आरती कुछ देर के लिए ठहर जाती। फिर एक बार विचार करती कि वह उस बेकार चीज का क्या करेगी। आरती सरकारी स्कूल के उन छात्रों में शामिल है, जिन्हें इयररिंग्स, नेकलेस, ब्रेसलेट और कुछ अन्य चीजें वेस्ट से बनाना सिखाया जा रहा है। फिक्की और स्थानीय गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) 'सलाम बॉम्बे' के सहयोग से कोलाबा के सरकारी स्कूल के 25 छात्र 17 दिसंबर को पहली बार अपने बनाए प्रोडक्ट की प्रदर्शनी-सेल लगाने जा रहे हैं। ये सारे प्रोडक्ट 14 साल से कम उम्र के बच्चों ने बनाए हैं। स्कूल और एनजीओ द्वारा अतिरिक्त सामान पर खर्च की गई राशि काटने के बाद इस सेल से होने वाली कमाई बच्चों को दी जाएगी। 
स्कूल के प्रिंसिपल अम्बरसिंह मगर का पूरा भरोसा है कि जो भी बच्चे वोकेशनल ट्रेनिंग में शामिल हो रहे हैं वे अपनी पढ़ाई पर बराबर ध्यान देने में सक्षम हैं, क्योंकि इन सभी के पास निकट भविष्य के लिए एक लक्ष्य है। उनका कहना है कि अधिकतर बच्चे कच्ची बस्ती में रहते हैं और आमतौर पर अपना समय टेलीविजन देखने में बिताते हैं। टेलीविजन पर भी पूरी तरह पेरेंट्स की मर्जी चलती है। मतलब ये बच्चे वे कार्यक्रम देखते हैं जो बच्चों के लिए ठीक नहीं होते। ट्रेनिंग के जरिये इनका दिमाग अधिक प्रोडक्टिव कामों में लगेगा और वे अपना समय बर्बाद नहीं करेंगे। 
फंडा यह है कि बच्चेजब ऐसे काम करते हैं तो उनका ध्यान जीवन स्तर सुधारने पर जाता है। वे सामाजिक रूप से जागरूक इंसान बनते हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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