हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान अफसरों ने आंखें बंद कर रखी थी। पुलिस व प्रशासनिक अफसरों के बीच कोई तालमेल नहीं था। डीसी और एसपी एक दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं थे। राज्य में हालांकि पुलिस फोर्स की कमी थी, लेकिन सेना को बुलाकर हाथ पर हाथ रखकर बैठने के लिए मजबूर कर दिया गया था। यह
पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रकाश सिंह कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में मनोहर सरकार के अफसरों की जमकर खिंचाई की। कुछ अधिकारियों के काम को सराहा भी, लेकिन जिस तरह से प्रदेश हिंसा की आग में झुलसा रहा, उनकी मेहनत पर नकारा अफसरों ने पानी फेर दिया। प्रकाश कमेटी ने सबसे अधिक नसीहत गृह सचिव पीके दास और डीजीपी यशपाल सिंघल को दी। दोनों ही सरकार के उच्च अधिकारी हैं मगर दोनों ने अपनी जिम्मेदारी का ठीक ढंग से निर्वाह नहीं किया। प्रकाश कमेटी ने रिपोर्ट में गृह सचिव और डीजीपी के कामकाज पर तलख टिप्पणियां करते हुए कई जिलों के डीसी-एसपी, डीएसपी-एसडीएम और एसएचओ को कठघरे में खड़ा किया है। कमेटी ने माना कि राज्य में पुलिस फोर्स की भारी कमी है, लेकिन जितनी फोर्स है, उसका ठीक ढंग से इस्तेमाल नहीं किया गया।
119 पुलिस अधिकारी व कर्मचारी फोर्स में रहने लायक नहीं: रोहतक के तत्कालीन एसपी सौरभ सिंह ने प्रकाश कमेटी के सामने लिखित में जानकारी दी कि लोकल पुलिस जातीयता पर पूरी तरह से उतरी हुई थी। कुछ पुलिस अधिकारी खुद ही कानून की धज्जियां उड़ाने में लगे हुए थे। ऐसे 119 पुलिस कर्मियों व अधिकारियों की पहचान खुद उन्होंने की थी। इन पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों ने कानून को ठोकर मार दी थी। उनका व्यवहार पुलिस फोर्स में रहने लायक कतई नहीं था।
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साभार: जागरण समाचार
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