Tuesday, January 10, 2017

Touching and Inspiring: कुछ भी नामुमकिन नहीं, कहावत नहीं हकीकत

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
मैं क्षणभर के लिए चौंक गया, क्योंकि वह आवाज मुझे चुनौती दे रही थी और मैं आवाज के मालिक को देख नहीं पा रहा था। मैंने तेजी से आंखें स्टेडियम में चारों तरफ दौड़ाई। वैसे तो मैं आवाज के सहारे व्यक्ति को खोजने में
माहिर हूं, लेकिन इस बार मेरा हुनर काम नहीं दे रहा था। मैंने सोचा मैं इसलिए खोज नहीं पा रहा हूं, क्योंकि स्टेडियम में 20 हजार लोग मौजूद हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। फिर अवााज गूंजी, 'सर, मैं अनिल चंद्रवंशी छत्तीसगढ़ के पुडी गांव से कॉमर्स में 11वीं पढ़ रहा हूं। मेरी शारीरिक दशा को देखते हुए क्या आप मुझे कॅरिअर खोजने में मेरी मदद करेंगे?' मैं अब भी उसे देख नहीं सका। वहां मौजूद एक व्यक्ति ने मेरी मदद की। उसने उंगली से इशारा करते हुए कहा, 'वो वहां।' उसने फिर कहा, 'मैं यहां हूं सर।' आखिरकार मैंने उस युवक को देख ही लिया, जिसकी ऊंचाई मेरी कमर से ऊपर नहीं थी। मुझे पूछे गए प्रश्न के लिए खुद को तैयार करने के लिए एक मिनट लगा। इसलिए मैंने उसे मंच पर बुलाया और कुछ ही सेकंड में वह मेरे पास था। वह किसी सामान्य बच्चे की तुलना में अधिक तेजी से वहां पहुंचा था। 
मैं उसकी आंखों में आंखें डालकर बात करने के लिए जमीन पर बैठ गया। तब तक मैं ऑस्ट्रेलिया में 1982 में जन्मे बिना हाथ-पैरों के व्यक्ति निक व्युजिसिक की फिल्म चलाने लगा। व्युजिसिक ने अपनी अन्य खूबियों की बदौलत जिंदगी की अपनी चुनौतियों को मात दी। वे एक सवाल लगातार खुद से पूछा करते थे- आज मैं अपने भय से लड़ने और जीवन के उद्‌देश्य को गले लगाने के लिए क्या करने वाला हूं? आज वे बेस्ट सेलिंग राइटर, प्रेरक वक्ता धर्म प्रचारक हैं। वे दुनिया भर में लोगों को अपना उदाहरण अनुभव बताकर सामर्थ्य देते हैं कि कैसे वे एक आम आदमी की तरह अपना रोजमर्रा का वजूद बनाए रखते हैं। 20 हजार दर्शकों के साथ हम वह फिल्म देखते रहे और मैं धीरे-धीरे उस अंग्रेजी फिल्म का हिंदी अनुवाद करता रहा ताकि वहां मौजूद हर व्यक्ति उसे समझ सके। 
उस किशोर की आंखों से आंसू बहने लगे, उसने मुझे गले लगा लिया और वादा किया कि वह भी जिंदगी में ऐसा कुछ करेगा कि लोग चौंक जाएंगे। उसे कबीरधाम के कलेक्टर धनंजय देवांगन ने बुलाकर वादा किया कि उसका कॅरिअर बनाने में वे हरसंभव मदद करेंगे। इस वाकये ने मेरे मन पर बहुत असर किया और शनिवार को मुंबई पहुंचने तक बार-बार याद आता रहा, जहां मेरी मुलाकात व्युजिसिक के भारतीय संस्करण से हुई, फर्क यही था कि यह महिला थीं। तीन वर्ष की उम्र में ऑप्टिक नर्व को नुकसान होने से वह दृष्टि खो बैठी, लेकिन नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड की मदद से उसने 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की। उसका सपना डॉक्टर बनने का था, लेकिन दृष्टिहीन व्यक्ति कम से कम भारत में तो यह सपना नहीं देख सकता। 2010 में चिकित्सा शिक्षा एवं शोध निदेशालय ने कॉमन एट्रेन्स टेस्ट में बैठने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। उसने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और फैसला उसके पक्ष में आया। चूंकि किसी को भी व्यावहारिक परीक्षा से छूट नहीं दी जा सकती, इसलिए उसे मेडिकल सीट देने से इनकार कर दिया गया। वह फिर अदालत पहुंची और एनाटॉमी के एक स्पेसीमेन से उसने हाईकोर्ट को बताया कि दृष्टि होते हुए भी वह कैसे प्रैक्टिकल कर सकती है और कैसे मानव शरीर पर काम कर सकती है। कोर्ट ने फिर उसके पक्ष में फैसला दिया। उसने कड़ी मेहनत कर हर कदम पर खुद को सिद्ध किया। अब तेजी से आगे आते हैं 2017 में। डॉ. कृतिका देश की पहली दृष्टिहीन डॉक्टर बनी हैं, जिन्हें सरकारी मान्यता प्राप्त है। 
फंडा यह है कि कुछलोग कहते हैं कि कैसे ईश्वर उनके प्रति दयाहीन रहा है। वे नहीं समझते कि उसी निर्माता ने उन्हें कुछ खूबियां दी हैं। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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