मैनेजमेंट फंडा (एन. रघुरामन)
1950 में सदाशिव पेठ पुणे के चिंतामण कुलकर्णी के यहां बेटे का जन्म हुआ। इस खुशी में एक छोटी चिंता थी। पंडित ने कहा था कि जन्म-पत्री के अनुसार बेटा कभी लौटकर जन्म स्थान पर नहीं आएगा और देश के पूर्वी
इलाके में आयरन से जुड़ा कारोबार करेगा। चिंतामण को चिंता तो हुई लेकिन, इसे परिवार से छिपाकर रखा। 1970 में युवा दीपक कुलकर्णी को साराभाई केमिकल्स में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव का जॉब मिला। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे अच्छी हिंदी बोल लेते थे, इसलिए जबलपुर में पोस्टिंग हुई। वादा था कि जल्द ही पुणे ट्रांसफर हो जाएगा लेकिन, ट्रांसफर कटनी कर दिया गया। जबलपुर से 45 किलोमीटर दूर यह स्थान पुणे जोन में आता था, इसलिए उन्हें पुणे तबादले की उम्मीद थी। किंतु क्षेत्रों का बंटवारा फिर किया गया और कटनी पूर्वी जोन में गया और पुणे ट्रांसफर की संभावनाएं खत्म हो गईं। दीपक ने नौकरी छोड़कर पुणे जाने का फैसला किया। कई महीनों बाद एलम्बिक फार्मास्यूटिकल्स में जॉब मिल गया लेकिन, उन्हें टाइफाइड हो गया और वे यह नौकरी जॉइन नहीं कर सके।
तब इंजीनियरिंग फर्म किर्लोस्कर क्यूमिन्स, जो आज क्यूमिन्स इंटरनेशनल है, एक बीएससी ग्रेजुएट की तलाश में थी, जो छत्तीसगढ़ के बस्तर की उनकी फैक्ट्री संभाल सके। यहां भी कहा गया कि उन्हें पुणे ट्रांसफर कर दिया जाएगा लेकिन, हर बार नया संकट आता और दीपक को एक्सटेंशन दे दिया जाता। इस बीच उन्होंने अंरुधती से विवाह किया। वे शनिवार पेठ की पक्की पुणेकर महिला थीं। उनके परिवार से भी दीपक के परिवार ने कहा था कि वे जल्द ही पुणे लौट आएंगे। दीपक को यकीन होने लगा था कि कंपनी ट्रांसफर का वादा निभा नहीं रही है और अब नौकरी छोड़नी पड़ेगी लेकिन, कंपनी ने उन्हें प्रमोशन के साथ रायपुर ट्रांसफर करने की पेशकश की। यह प्रस्ताव छोड़ना मुश्किल हो गया। परिवार वहां सेटल हो गया। पहली संतान का जन्म हुआ। किंतु अचानक एक और संकट आया और उनसे तीन महीने के लिए कोरबा जाने का अनुरोध किया गया। बेमन से दीपक वहां गए लेकिन, सोच लिया कि संकट दूर होते ही नौकरी छोड़ देंगे। वे पूरी तैयारी कर चुके थे तो कंपनी ने उन्हें मध्यप्रदेश और असम के लिए क्यूमिंस इंजीनियरिंग की डीलरशिप देने का प्रस्ताव किया। इसका बेस कोरबा था। वे जानते थे कि परिवार में किसी ने कभी बिजनेस नहीं किया है। परिवार की सलाह भी इसके उलट थी, लेकिन उन्होंने कदम बढ़ाया और चार साल में वे सफल हो गए।
सोशल वर्क इस दंपति का पैशन था। मुंबई के डॉ. सामंत के अनुरोध पर अरुंधती ने दिमागी रूप से कमजोर बच्चों के लिए एक सेमिनार आयोजित किया। भोपाल, ग्वालियर और दिल्ली के अलावा उस क्षेत्र में इन बच्चों के लिए कहीं और सुविधा नहीं थी। इसमें 85 पैरेंट्स उपस्थित हुए। इतने लोगों के आने से वे चौंक गए। उन्होंने अपने खाली फ्लैट को इन बच्चों के स्कूल में बदल दिया। कोरबा की दो लड़कियों ने मदद की। इन लड़कियों ने सिकंदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मेंटली चेलेंज्ड से कोर्स किया था। बाद में अरुंधती ने भी भोपाल से ऐसा ही कोर्स कर लिया। इस काम के लिए उन्हें कई राज्य सरकारों और फिर राष्ट्रपति से भी सराहना मिली। दंपति ने मेंटली चेलेंज्ड बच्चों के काम में खुद को समर्पित कर दिया। बेटे की शादी उसके राउरकेला में सेटल होने और बेटी की पुणे के वकील परिवार में विवाह के दौरान कुलकर्णी ने कभी भी पारिवारिक पंडित को गलत साबित करने की कोशिश नहीं की, जिसने कहा था कि बेटा कभी लौटकर अपने शहर नहीं आएगा और आयरन से जुड़ा काम करेगा।
फंडा यह है कि कभी-कभी किस्मत को बदलना मुश्किल होता है लेकिन, कोई चाहे तो इसमें सहभागी होकर इसे खुशनुमा बना सकता है।
सोशल वर्क इस दंपति का पैशन था। मुंबई के डॉ. सामंत के अनुरोध पर अरुंधती ने दिमागी रूप से कमजोर बच्चों के लिए एक सेमिनार आयोजित किया। भोपाल, ग्वालियर और दिल्ली के अलावा उस क्षेत्र में इन बच्चों के लिए कहीं और सुविधा नहीं थी। इसमें 85 पैरेंट्स उपस्थित हुए। इतने लोगों के आने से वे चौंक गए। उन्होंने अपने खाली फ्लैट को इन बच्चों के स्कूल में बदल दिया। कोरबा की दो लड़कियों ने मदद की। इन लड़कियों ने सिकंदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मेंटली चेलेंज्ड से कोर्स किया था। बाद में अरुंधती ने भी भोपाल से ऐसा ही कोर्स कर लिया। इस काम के लिए उन्हें कई राज्य सरकारों और फिर राष्ट्रपति से भी सराहना मिली। दंपति ने मेंटली चेलेंज्ड बच्चों के काम में खुद को समर्पित कर दिया। बेटे की शादी उसके राउरकेला में सेटल होने और बेटी की पुणे के वकील परिवार में विवाह के दौरान कुलकर्णी ने कभी भी पारिवारिक पंडित को गलत साबित करने की कोशिश नहीं की, जिसने कहा था कि बेटा कभी लौटकर अपने शहर नहीं आएगा और आयरन से जुड़ा काम करेगा।
फंडा यह है कि कभी-कभी किस्मत को बदलना मुश्किल होता है लेकिन, कोई चाहे तो इसमें सहभागी होकर इसे खुशनुमा बना सकता है।
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साभार: भास्कर समाचार
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