राजस्थान में श्रीगंगानगर के रहीम बख्श 1950-1960 के दौर में रामसिंहपुर क्षेत्र में कस्टम इंस्पेक्टर रहे। अब उनके पोते मंजूर खान इसी क्षेत्र के सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक बनकर आए हैं और मकसद यह है कि दादा ने इस इलाके का नमक खाया है, उसका हक अदा करना है। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने सरकारी स्कूल की
हालत सुधारने से की है। इस स्कूल में बच्चों ने कक्षाओं में कभी फर्नीचर देखा तक नहीं था। अब छह महीने में प्रधानाध्यापक खान आधे बच्चों के लिए फर्नीचर की व्यवस्था करवा चुके हैं। साफ पानी के लिए जल्द फिल्टर लगने वाले हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।प्रधानाध्यापक मंजूर खान बताते हैं, उनके दादा रहीम बख्श राजा-महाराजाओं के समय में कस्टम इंस्पेक्टर थे और ज्यादातर नौकरी उनकी रामसिंहपुर इलाके में ही रही। पिता निजामुद्दीन भी पहले कस्टम, फिर राजस्व विभाग में थे। उनकी नौकरी भी रामसिंहपुर हनुमानगढ़ में रही। पिता से वे रामसिंहपुर इलाके के स्कूलों अन्य हालात के बारे में सुनते थे तो उन्हें बहुत दुख होता था। वे 1987 में शिक्षा विभाग में आए। पदोन्नत होकर प्रधानाध्यापक बने। पहले उनकी पोस्टिंग शहर के पास दुलापुर केरी में थी। जून 2016 में सरकार ने उनका तबादला घर से दूर रामसिंहपुर के 50 जीबी में किया तो बहुत खुशी हुई। उन्होंने तय किया कि वे तबादला निरस्त करवाने के बजाय वहां जाकर स्कूल की हालत सुधारेंगे और दादा के खाए नमक का हक अदा करेंगे। प्रधानाध्यापक ने बताया कि स्कूल में उन्होंने ज्वाइन किया तो 125 बच्चे थे और ज्यादातर बच्चे दरियों पर बैठते थे। किसी के लिए भी फर्नीचर नहीं था। स्टाफ के लिए फर्नीचर था, लेकिन वह भी टूटा-फूटा। इस पर वे स्टाफ को साथ ले गांव में घर-घर गए और बच्चों के लिए सहयोग मांगा। इन 6 महीने में वे 40 हजार रुपए इकट्ठा करके 50 बच्चों के लिए फर्नीचर जुटा चुके हैं और बाकी बच्चों के लिए अगले दो महीने में व्यवस्था हो जाएगी।
स्टाफ के साथ गांव में घर-घर जुटा रहे राशि: प्रधानाध्यापक खान ने बताया कि ज्वाइनिंग के बाद उन्होंने पढ़ाई में कमजोर बच्चों को चिन्हित किया। फिर शाम को सभी की अतिरिक्त क्लासें लगानी शुरू कर दी। बच्चों के मन में गणित अंग्रेजी के प्रति डर था। अब वे इसी डर को निकाल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने गांव में ही रहना शुरू किया। उनकी जिद है कि इस बार स्कूल का परीक्षा परिणाम 100 प्रतिशत करना है। इसी तरह स्कूल में परेशानी यह थी कि बच्चे सीधे टंकी से पानी पीते थे। अब उन्होंने एक संस्था को पत्र लिखकर सहयोग मांगा है। जल्दी ही स्कूल में फिल्टर लग जाएगा। इसके बाद बच्चे साफ पानी पी सकेंगे।
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साभार: भास्कर समाचार
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