हरियाणा में जाटों सहित 6 जातियों को दिए गए आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को हरियाणा सरकार से पूछा कि आखिर किन आंकड़ों के आधार पर इन जातियों को आरक्षण का लाभ दिया गया। अगली सुनवाई 7 अक्तूबर को रखते हुए हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को इस बारे में जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं। तब तक हाईकोर्ट की तरफ से इन जातियों के आरक्षण पर लगाई गई रोक जारी रहेगी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस मामले में याची ने उन आंकड़ों को हरियाणा सरकार से तलब करने की अपील की थी जिन्हें आधार बनाते हुए हरियाणा सरकार ने तीसरी श्रेणी को आरक्षण का लाभ दिया।
याची का तर्क: सुनवाई शुरू होते ही याची के वकील मुकेश कुमार वर्मा ने कहा कि जाटों को हरियाणा में आरक्षण का लाभ देने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा एक्ट लाया गया और इसके बाद पिछड़ा वर्ग कमीशन गठित किया गया। उन्होंने कहा कि आरक्षण का लाभ देने के लिए संविधान में आर्टिकल 16 के सब क्लॉज 4 में प्रावधान है। इसके तहत राज्य सरकार को अधिकार है कि उनकी राय में जो वर्ग पिछड़ा है उसे आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। याची ने कहा कि यहां राय शब्द के लिए भी व्याख्या मौजूद है जिसके तहत आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद ही आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। याची ने कहा कि हरियाणा सरकार के पास केसी गुप्ता अयोग की रिपोर्ट के इलावा ऐसे कोई आंकड़ें मौजूद नहीं है, जिनको आरक्षण देने का आधार बनाया जा सके। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए एमडीयू से सर्वे कराया गया था, जिसको पहले ही चुनौती दी जा चुकी है।
सरकार का जवाब: इस पर सरकार की ओर से एडवोकेट जगदीप धनखड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की सूची में जाटों को आरक्षण देने का मामला था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की सूची के मामले में अपना फैसला सुनाया था। राज्य की सूची के मामले में नहीं। उन्होंने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने केसी गुप्ता आयोग की सिफारिशों को खारिज नहीं किया था बल्कि नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास (एनसीबीसी) की रिपोर्ट को मंजूरी दी थी जिसमें केसी गुप्ता आयोग की सिफारिशों को न मानने का फैसला लिया गया था। इसलिएं यह नहीं कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने केसी गुप्ता आयोग की सिफारिशों को खारिज किया था।
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साभार: जागरण समाचार
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