दिल्ली सरकार के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के ईएनटी विभाग के प्रमुख डॉ. अनूप राज का कहना है कि वयस्कों में 100 डेसिबल से अधिक आवाज कान के पर्दे पर असर डालती है। आतिशबाजी के दौरान लगातार तेज आवाज होती है। ऐसे में कान के अंदर की कमजोर हड्डियों के गलने तक का खतरा रहता है। कान के अंदर की नसों के फटने का भी डर बना रहता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। दिवाली के दिन आतिशबाजी की तेज आवाज कहीं आपके नवजात के दिमाग पर असर न डाल दे। तेज आवाज से नवजात के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आतिशबाजी की आवाज न सिर्फ दिमाग को विकसित होने से रोकती है, बल्कि आतिशबाजी के दौरान निकले केमिकल्स एलर्जी का भी कारण बनते हैं। दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल के ईएनटी विभाग के डॉ. सौरभ ने बताया कि अत्यधिक तेज आवाज बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डालती है। आतिशबाजी की वजह से वातावरण में फैले केमिकल्स और धुएं की वजह से ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इससे हृदय गति घटती-बढ़ती रहती है और पल्स रेट में भी उतार-चढ़ाव होता रहता है। ऐसे में नवजात के दिमाग पर असर पड़ने का खतरा रहता है। लिहाजा नवजात को जितना संभव हो, आतिशबाजी की तेज आवाज से बचाना चाहिए। नवजात को धुएं की वजह से एलर्जी का भी खतरा रहता है। सर गंगाराम अस्पताल के ईएनटी विभाग के कंसलटेंट डॉ. आलोक अग्रवाल ने बताया कि 50 डेसिबल से अधिक आवाज नवजात के कान पर असर डालती है। तेज आवाज की वजह से नवजात के सुनने की क्षमता कमजोर होने का खतरा रहता है। बच्चों में चिड़चिड़ापन और भूख न लगने की प्रवृति भी विकसित हो सकती है।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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