एन. रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
मैं शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात को 1 बजे मुंबई के जुहू में दिवाली मिलन समारोह से लौट रहा था, जिसमें एक कार्ड प्लेइंग सेशन भी था। बॉलीवुड की कुछ जानी-मानी हस्तियां यहां रहती हैं। मुझे दूर से ही नज़र रहा था कि कुछ लड़के पटाखे फोड़ने में लगे हैं। हालांकि उनके पास बम नहीं थे और वे सिर्फ रॉकेट छोड़ने का लुत्फ ले रहे थे, लेकिन ये रॉकेट ऊपर जाकर फटते थे, जिनकी आवाज तेज रोशनी से बहुमंजिला इमारत के
ऊपरी माले में रहने वाले लोगों को परेशानी हो रही थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। और इसी कारण रोड किनारे की इमारत के कुछ लोग अपने कमरों से बाहर आए और जोर-जोर से कुछ कहने लगे। फिर झगड़ा होने लगा अौर दो चौकीदार उन लड़कों को पकड़ने दौड़े। उसी रोड पर स्थित जुहू पुलिस थाने को कुछ मिनटों में खबर लग गई और पुलिस वाहन के आने का उसके साइरन से पता लग रहा था। मैं यह सब तीन-चार मिनटों के वक्त में होते देखा। वे लड़के इसी सोसाइटी के थे, जिन्होंने पुलिस को बताया कि सोसाइटी के लोगों ने जो गाली-गलौज की भाषा इस्तेमाल की वह ठीक नहीं थी। मुझे नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ, लेकिन मैं यह पक्के तौर पर कह सकता हूं कि उस इमारत के लोग लंबे समय तक शांति से सो नहीं पाए होंगे, जो चाहे अपशब्दों का इस्तेमाल कर झगड़े में जीत ही क्यों गए हों।
मैं शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात को 1 बजे मुंबई के जुहू में दिवाली मिलन समारोह से लौट रहा था, जिसमें एक कार्ड प्लेइंग सेशन भी था। बॉलीवुड की कुछ जानी-मानी हस्तियां यहां रहती हैं। मुझे दूर से ही नज़र रहा था कि कुछ लड़के पटाखे फोड़ने में लगे हैं। हालांकि उनके पास बम नहीं थे और वे सिर्फ रॉकेट छोड़ने का लुत्फ ले रहे थे, लेकिन ये रॉकेट ऊपर जाकर फटते थे, जिनकी आवाज तेज रोशनी से बहुमंजिला इमारत के
ऊपरी माले में रहने वाले लोगों को परेशानी हो रही थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। और इसी कारण रोड किनारे की इमारत के कुछ लोग अपने कमरों से बाहर आए और जोर-जोर से कुछ कहने लगे। फिर झगड़ा होने लगा अौर दो चौकीदार उन लड़कों को पकड़ने दौड़े। उसी रोड पर स्थित जुहू पुलिस थाने को कुछ मिनटों में खबर लग गई और पुलिस वाहन के आने का उसके साइरन से पता लग रहा था। मैं यह सब तीन-चार मिनटों के वक्त में होते देखा। वे लड़के इसी सोसाइटी के थे, जिन्होंने पुलिस को बताया कि सोसाइटी के लोगों ने जो गाली-गलौज की भाषा इस्तेमाल की वह ठीक नहीं थी। मुझे नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ, लेकिन मैं यह पक्के तौर पर कह सकता हूं कि उस इमारत के लोग लंबे समय तक शांति से सो नहीं पाए होंगे, जो चाहे अपशब्दों का इस्तेमाल कर झगड़े में जीत ही क्यों गए हों।
इससे मुझे बरसों पहले की एक घटना याद गई, जिसका संबंधी हिंदी फिल्म निर्देशक महेश भट्ट से है। बरसों पहले मुझे मेरे दोस्त के ऑफिस-कम-घर पर काम के सिलसिले में एक रात गुजारनी पड़ी थी, जो इसी इमारत में था जहां महेश भट्ट रहते थे। इमारत के भीतर के हिस्से में खास तरह का आर्किटेक्चर था, जिसमें कोई बालकनी नहीं थी। इसकी वजह से फ्लैट की दीवार से लगे अलग- अलग रंगों साइज के कपड़े देखे सकते थे, जो ऊपर के सारे फ्लैट में सूखने के लिए लटके होते थे। रात करीब 1:30 बजे बूंदाबांदी शुरू हो गई और तीन महिलाएं जो बारिश की आवाज से जाग गई थीं, अपने हाल के छोर पर पहुंचकर खिड़कियों के सरकने वाले दरवाजे खोलकर वहां सूख रहे कपड़े निकालने लगीं। रात के उस समय एक-दूसरे को देखकर शायद उन्होंने धीमी आवाज में बतियाना शुरू कर दिया। शुरुआती शब्दों, 'अचानक बारिश शुरू हो गई' से प्रारंभ बातचीत भारतीय राजनीति, क्रिकेट और अन्य सांसारिक मामलों पर आधे घंटे तक चलती रही और आवाज इतनी ऊंची थी कि रात के उस पहर के लिए उसे उचित नहीं कहा जा सकता। मुझे परेशानी हो रही थी, लेकिन कुछ कह नहीं सका। मैं मन ही मन मना रहा था कि उनके पतिदेव आकर उन्हें रोकें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। संभव है पतिदेव रात के इस वक्त कोई झंझट मोल नहीं लेना चाहते थे, क्योंकि अगला दिन काम का दिन था। इसके पहले कि मेरा दोस्त उठे और खिड़की तक पहुंचकर उन महिलाओं को कुछ कहे, महेश भट्ट ने अपने हॉल का स्लाइडिंग डोर खोला और अपनी खास शैली में अपने दांए हाथ की सारी उंगलियां कनपटी के नीचे रखकर उन्हें बड़ी कोमलता से कहने लगे, 'मोहतरमा, अगर आपकी बात इतनी जरूरी नहीं हो तो आज की रात के लिए क्या आप इसे मुल्तवी कर सकती हैं? मैं चार दिन से सोया नहीं हूं।' दो सेकंड में उन सब ने एक-दूसरों को इशारे किए, जिसका मतलब था 'कल बात करेंगे' और वे चली गईं। सारे स्लाइडिंग डोर फिर बंद हो गए और रात का सन्नाटा फिर छा गया। भट्ट साहब सो गए और हमारा काम चालू रहा।
इस फंडे के लिए मैं जावेद अख्तर की पंक्ति का सहारा लेता हूं। उन्होंने कहा है, 'आपकी बात किसी के दिल में उतर सकती है या आपको दिल से उतार सकती है।' आइए अपने आस-पास के लोगों को अपने सारे व्यवहार में अच्छे शब्दों का इस्तेमाल सिखाएं, चूंकि शांति इसी से आती है।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार
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