Thursday, September 4, 2014

शिक्षक दिवस: जानिए गुरु के सामने शिष्य को क्या करना चाहिए, क्या नहीं

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हमारे देश में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण का जन्म हुआ था। ये भारत के पहले उपराष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति थे। ये प्रख्यात शिक्षाविद थे। शिक्षा के क्षेत्र में इनके अमूल्य योगदान को देखते हुए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई। हमारे देश में शिक्षक यानी गुरु का पद बहुत ही महत्वपूर्ण है। कबीरदास ने गुरु का महत्व
बताते हुए लिखा है कि: 
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताए।।
 
कबीर द्वारा रचित उक्त पंक्तियों में गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है तथा गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ बताया गया है। हमारे देश में गुरु का स्थान प्रारंभ से श्रेष्ठ है। धार्मिक ग्रंथों में गुरु की महिमा का वर्णन कई बार पढऩे में आता है। भविष्यपुराण के ब्राह्मपर्व में भी गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है। उसके अनुसार गुरु के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़े रहें, गुरु की आज्ञा हो तो बैठे परंतु आसन पर नहीं। वाहन पर हों तो गुरु का अभिवादन न करें, वाहन से उतर कर प्रणाम करें। शरीर त्याग पर्यंत जो गुरु की सेवा करता है, वह श्रेष्ठ ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ दर्शाने के पीछे तर्क है कि ज्ञान सिर्फ गुरु के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। यह ईश्वरीय ज्ञान है जो गुरु के माध्यम से पृथ्वी पर उतरा है।  
गुुरु के सामने यह काम नहीं करना चाहिए: 
  1. शिष्य को गुरु के आसन एवं शैय्या का प्रयोग स्वयं कभी नही करना चाहिए।
  2. गुरु के सामने दीवार या अन्य किसी सहारे से टिक कर न बैठें, उनके सामने पांव फैला कर ना बैठें।
  3. गुरु के सामने अश्लील शब्दों का प्रयोग नही करें।
  4. गुरु के समान आसन पर न बैठें, जिस स्थान पर गुरु विराजमान हो आप उससे नीचे की स्थिति में बैठें।
  5. जब भी गुरु से मिलने जाएं तो खाली हाथ न जाएं, कुछ न कुछ उपहार अवश्य साथ ले जाएं। 
इसलिए जीवन में गुरु का होना क्यों जरूरी है: भारतीय सनातन संस्कृति में गुरु को सर्वोपरि माना है। वास्तव में शिक्षक दिवस का दिन गुरु के रूप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का। माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है, जिससे व्यक्ति अपने सद्कर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है। यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। गुरु ने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करता है। जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है। सार यह है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है। जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है। ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है इसलिए जीवन में गुरु का होना जरुरी है।  
साभार: भास्कर समाचार
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