Friday, December 21, 2018

नगर निगम चुनाव: कांग्रेस की गुटबाजी बनी हार का कारण

साभार: जागरण समाचार 
कांग्रेस की गुटबाजी बनी हार का कारणहरियाणा के नगर निगम चुनाव नतीजों ने कांग्रेस का भ्रम तोड़ दिया। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बनाने से उत्साहित कांग्रेसियों को लग रहा था कि हरियाणा में भी पांचों नगर निगमों में उनकी
जीत तय है, लेकिन उनका दांव उलटा पड़ गया। चुनाव की रणनीति बनाने को लेकर कांग्रेस पूरी तरह से गुटबाजी का शिकार रही। इसी वजह से पार्टी उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई है।
कांग्रेस ने सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ा। करनाल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की उम्मीदवार रेणुबाला गुप्ता के खिलाफ कांग्रेस ने आशा वधवा को अपना समर्थन दिया। बाकी जगह भी कांग्रेस नेताओं ने अपनी पसंद के उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन उनकी रणनीति उन्हीं पर उलटी पड़ गई। दरअसल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. अशोक तंवर चाहते थे कि पार्टी सिंबल पर नगर निगम के चुनाव लड़े जाएं। इसके लिए वह कांग्रेस हाईकमान को राजी भी कर चुके थे, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कु. सैलजा और कुलदीप बिश्नोई समेत कई नेता पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ने के हक में नहीं थे। हुड्डा चूंकि पारवफुल नेता माने जाते हैं, लिहाजा हाईकमान में तंवर की नहीं चली और पार्टी ने सिबंल पर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला ले लिया।
हुड्डा के गढ़ रोहतक में कांग्रेस की सबसे बुरी पराजय हुई है। अशोक तंवर के पास खोने के लिए कुछ नहीं था। यदि पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ती तो हुड्डा के पास कहने के लिए था कि उन्होंने विरोध किया था मगर तंवर ही चाहते थे कि पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ा जाए। इसलिए ठीकरा तंवर के सिर फोड़ा जा सकता था। अब तंवर कांग्रेस हाईकमान में नुकसान का सारा ठीकरा हुड्डा के सिर फोड़ रहे हैं। उनकी दलील है कि यदि हुड्डा विरोध नहीं करते तो नगर निगम के चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़े जाते और कांग्रेस की इनमें जीत होती। कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई, रेणुका बिश्नोई व सावित्री जिंदल ने भी हिसार में अपना उम्मीदवार उतारा, जो भाजपा के हाथों पराजित हो गया। पानीपत में कांग्रेस नेता वीरेंद्र शाह को मात खानी पड़ी। यमुनानगर में कु. सैलजा समर्थित उम्मीदवार पराजित हुआ है। ऐसे में यदि पार्टी की गुटबाजी इसी तरह से हावी रही तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।