साभार: जागरण समाचार
देश को झकझोर देने वाले निर्भया कांड को छह साल पूरे हो चुके हैं। 16 दिसंबर 2012 की सर्द रात एक चलती बस में पांच दरिंदों ने 23 वर्षीय निर्भया के साथ बरबरता पूर्वक सामूहिक दुष्कर्म किया। निर्भया इस दर्द से 13
दिन तक लड़ती रही और अंत में सिंगापुर में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। निर्भया कांड के बाद राजधानी दिल्ली समेत देश भर में महिलाओं की सुरक्षा और निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए धरने-प्रदर्शन हुए। इसके बाद कई नियम-कानून बने। पुलिस के लिए बहुत से दिशा-निर्देश जारी किए गए। बावजूद दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा आज भी सवालों के घेरे में है। जानें, देश को झकझोरने वाले निर्भया कांड के बाद क्या हुए बदलाव...?
निर्भया कांड के बाद महिलाओं संग छेड़छाड़ और दुष्कर्म जैसे मामलों में कानून और सख्त कर दिया गया। बावजूद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2016-17 के आकंड़ों में महिला संबंधी अपराधों में अकेले दिल्ली में 160.4 फीसद का इजाफा रिकॉर्ड किया गया। वहीं पूरे देश में 55.2 फीसद का इजाफा हुआ। विभिन्न मीडिया संस्थानों और एजेंसियों द्वारा निर्भया कांड के बाद वक्त-वक्त पर आम महिलाओं व युवतियों से दिल्ली की सुरक्षा को लेकर बातचीत की गई।
सबकी एक राय है कि दिल्ली में अब भी कुछ नहीं बदला है। दिल्ली अब भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। अब भी दिन ढलने के बाद उन्हें दिल्ली की सड़कों पर अकेले निकलने में डर लगता है। ऑफिस या मार्केट से घर पहुंचने में थोड़ी देरी हो तो घरवालों की चिंता बढ़ जाती है। ज्यादातर ने बताया कि शाम होने के बाद वह अकेले बाहर निकलने की जगह किसी पुरुष मित्र या परिजन को साथ रखती हैं।
दिल्ली के पॉश एरिया में रहने वाली फैशन डिजाइन लीना सहगल के अनुसार निर्भया कांड के बाद दावे तो बड़े-बड़े किए गए, लेकिन सरकार और अधिकारी शायद उन वादों को पूरा करना भूल गए। आलम ये है कि रात ही नहीं दिन के वक्त भी ऑटो या कैब में अकेले सफर करने से पहले लड़कियों को कई बार सोचना पड़ता है। आए दिन उनके साथ ऑटो या कैब में छेड़छाड़ के मामले समाचारों की सुर्खियां बनते हैं। मानों, किसी में कानून का कोई डर ही नहीं है। ऐसे में कानून सख्त करने का भी क्या फायदा।
पश्चिमी दिल्ली के एक पॉश एरिया में रहने वाली डीयू छात्रा मनीषा जैन कहती हैं कि लोगों में कानून का डर क्यों होगा? न तो कानून में त्वरित और आसान सुनवाई है और न ही तुरंत कार्रवाई होती है। मसलन अगर किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ हो तो पुलिस में शिकायत करना और रिपोर्ट दर्ज कराना आज भी एक जटिल प्रक्रिया है। किसी तरह रिपोर्ट दर्ज भी करा लें तो कोई भरोसा नहीं कि उस पर त्वरित कार्रवी होगी। पुलिस उसे तुरंत गिरफ्तार भी कर ले तो पता नहीं वह कितने दिन जेल में रहेगा। हो सकता है उसे 24 घंटे के अंदर ही जमानत मिल जाए और वह फिर खुलेआम घूमने लगे। इसके बाद पीड़िता सालों इंसाफ के लिए कोर्ट के चक्कर काटती रहती है। इस दौरान न तो उसे कोई सुरक्षा मिलती है और न ही किसी का साथ।
नोएडा में रहने वाली और दिल्ली की एक MNC में काम करने वाली निशा कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि पुलिस या कानून ने महिला संबंधी अपराधों में काम करना बंद कर दिया है। पुलिस और कोर्ट अपना काम करती भी है तो प्रक्रिया ही बहुत लंबी और थकाऊ है। सख्त कानून को सख्ती से लागू करने के लिए सिस्टम को दुरुस्त और स्पीडअप करने की जरूरत है। इससे अपराधियों में डर बैठेगा। साथ ही लोगों का भी कानून पर भरोसा बढ़ेगा।
महिला पुलिसकर्मियों की कमी: दिल्ली समेत देश के ज्यादातर राज्यों में महिला पुलिसकर्मियों की बेहद कमी है। निर्भया कांड के बाद गठित वर्मा कमीशन ने महिला संबंधी अपराधों की जांच के लिए महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया था। इसके बाद दिल्ली में 33 फीसद महिला पुलिसकर्मियों की भर्ती करने का दावा किया गया। मार्च 2015 में इसे मंजूरी मिली और महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़कर 4582 पहुंच गई, जो साल 2011 में 3572 थी। बावजूद दिल्ली पुलिस में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या महज नौ फीसद ही पहुंची है। बाकी राज्यों में हालात और खराब है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट (BPRD) की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि 20 फीसद महिला पुलिसकर्मियों का प्रतिनिधित्व होने पर पुलिस व्यवस्था थोड़ी बेहतर हो सकती है।
निर्भया कांड के बाद दिल्ली की स्थिति:
- 2012 में दुष्कर्म के 706 मामले दर्ज किए गए। 2014 में इनमें तीन गुना इजाफा हुआ और आंकड़ा 2166 पहुंच गया। 2015 में भी दुष्कर्म के 2199 मामले दर्ज हुए। साल दर साल दुष्कर्म के मामलों में इजाफा हो रहा है।
- महिला संबंधी अन्य अपराधों में भी 50 फीसद से ज्यादा का इजाफा रिकॉर्ड किया गया है। 2012 में ऐसे 208 मामले दर्ज हुए थे, जो 2015 में बढ़कर 1492 हो गए।
- निर्भया कांड के बाद दिल्ली पुलिस ने महिला अधिकारियों की तैनाती कर कुल 161 हेल्प डेस्क बनाए गए। हालांकि इन पर भी सही से काम न करने के आरोप लगते रहे हैं।
- महिला हेल्प डेस्क में तैनात पुलिसकर्मियों को पीड़िता से बात करने व मदद करने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता है।
- निर्भया कांड के बाद पुलिस और सार्वजनिक परिवहन के वाहनों में जीपीएस लगाने और उन पर नजर रखने की बात अगस्त 2014 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कही गई थी। हालांकि ये अब तक पूरा नहीं हुआ।
- निर्भया कांड के बाद महिला हेल्पलाइन में पेशेवर काउंसलर्स की भर्ती के लिए 6.2 करोड़ का बजट आरक्षित किया गया था। इसमें अब तक खास प्रगति नहीं हुई।
- महिलाओं और बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए 23.5 करोड़ रुपये के फंड से अलग बिल्डिंग बनाई जानी थी।
- महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर इमरजेंसी रिस्पॉस प्रोजेक्ट के लिए 322 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था।
- देश के 114 शहरों व अपराध बाहुल्य जिलों में विशेष इंतजाम किए जाने थे, लेकिन ये प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका।
- दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम- 100
- महिला हेल्प लाइन- 1091
- अश्लीलता के खिलाफ हेल्पलाइन- 1096
- अन्य समस्याओं के लिए- 181
निर्भया की मां ने कहा कुछ नहीं बदला: जुलाई 2018 में एक मीडिया संस्थान को दिए गए साक्षात्कार में निर्भया की मां ने कहा था कि अब भी कुछ नहीं बदला। कम से कम लड़कियों के लिए तो कुछ भी नहीं बदला। आज भी प्रतिदिन कहीं न कहीं हर घंटे ऐसी घटनाएं हो रही हैं। दिल्ली समेत देश के अन्य शहरों में भी लड़कियां अब भी सुरक्षित नहीं हैं। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हमारी न्याय व्यवस्था है। चाहे जितने भी कानून बन जाएं, अगर न्याय व्यवस्था में देरी होती है तो उसका कोई फायदा नहीं होगा। निर्भया के मामले को ही लें, यह मामला 2014 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और अब भी कानूनी प्रक्रिया में लटका है। न्याय में देरी कानून का डर खत्म कर देती है।
निर्भया की मां के अनुसार 'मेरी बेटी के साथ इतना घिनौना अपराध हुआ। मेरी बच्ची मर गई। पूर देश जानता है कि उस रात मेरी बच्ची के साथ क्या हुआ था। जांच पूरी हो चुकी है। पूरा केस शीशे की तरह साफ है। फिर भी आरोपियों को सजा देने में इतने साल लग गए और अभी पता नहीं कितने और साल लगेंगे।'