Thursday, January 5, 2017

जीवन प्रबंधन: बेहतर कल के लिए एक साथ आगे आना होगा

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
हरिसाल महाराष्ट्र के मेलघाट बाघ अभयारण्य के भीतर बसा छोटा-सा गांव है, जिसकी आबादी 1600 से ज्यादा नहीं है और सबसे नजदीकी शहर है अमरावती, दूरी करीब 120 किलोमीटर, लेकिन वहां पहुंचने में तीन घंटे लग
जाते हैं, क्योंकि ज्यादातर हिस्सा बहुत संकरा है।  मेलघाट के हाईवे पर आपको हरिसाल का मील का पत्थर तक नज़र नहीं आएगा। यह गांव अचानक ही सामने जाता है- कुछ मकान और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का नीले रंग का साइन बोर्ड। फिर रंग उड़ चुका हरे रंग का बोर्ड 'हरिसाल' दिखाई देता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। साफ पानी एक समस्या है। गांव में बांस की चीजें बनाई जाती हैं और उनमें से जो सर्वोत्तम होती हैं, उन्हें 25 हजार रुपए सालाना की कीमत मिल जाती है। कोकरु और भील आदिवासी जातियां पीढ़ियों से खेती पर निर्भर हैं और अपनी जिंदगी में आविष्कार तथा मशीनों के बारे में उन्हें ज्यादा कुछ पता नहीं चलता। खेती से भी बहुत कम आमदनी होती है, क्योंकि वे खेती के परम्परागत तरीके अपनाते हैं और टेक्नोलॉजी तो बहुत दूर की बात है, उन्हें किसी प्रकार के खेती के यंत्रों आधुनिक औजारों तक का पता नहीं है। चौदह घंटे बिजली गायब रहती है और सौर ऊर्जा का उनका परिचय उन लालटेनों तक सीमित है, जो वन विभाग ने उन्हें दी हैं। आज हरिसाल गांव सबसे स्मार्ट गांव के रूप में डिजिटल इंडिया के नक्शे पर गया है। मोबाइल कनेक्टिविटी, वाई-फाई जोन, डिजिटल सेंटर, कैशलेस मार्केट, हैल्थ कार्ड और टेलीमेडिसीन हरिसाल को बदलने के एजेंडे पर है। यह उस कार्यक्रम का हिस्सा है, जो इसे मुख्यधारा में लाने के लिए चलाया जा रहा है। 
यह उन 350 गांवों में से है, जिन्हें राज्य सरकार और सॉफ्टवेयर की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने गोद लिया है। ये इंटरनेट कनेक्टिविटी हासिल करने की दहलीज पर है। माइक्रोसॉफ्ट ने इसके लिए उपकरण दिए हैं। इससे गांव वालों के लिए इंटरनेट की दुनिया खुल जाएगी। माइक्रोसॉफ्ट शैक्षिक, चिकित्सकीय और इंटरनेट इकाइयों की स्थापना के मूलभूत ढांचे का खर्च भी उठा रही है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का यह दृढ़ विश्वास है कि आदिवासी गांवों में कुपोषण पिछड़ेपन की समस्या को खत्म करने का एक ही तरीका है कि उन्हें मुख्यधारा में लाया जाए। जोर दिया जा रहा है कि शिक्षा, चिकित्सा सेवाएं और रोजगार जैसी सुविधाओं के मामलों में उनकी प्रगति पर निगरानी रखी जाए। 
एकमात्र आश्रमशाला में महिलाओं बच्चों के लिए 20 कम्प्यूटरों की मदद से वर्चुअल क्लासेस शुरू हो चुकी हैं। ऑप्टिक फाइबर कनेक्शन मध्यप्रदेश के नेपानगर से लिया गया है, जो 70 किलोमीटर दूर है। बिजली की अतिरिक्त लाइनें भी वहीं से ली गई हैं। अब यह गांव बांस की अपनी चीजें सीधे विश्व बाजार में बेचेगा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार को आकर्षित करने के लिए बांस से चटाई, बास्केट, बाउल जैसी चीजें पीढ़ियों से बनाने वाले दस्तकारों को अब फिर प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि उनकी बनाई चीजों में वैश्विक बाजार में टिकने लायक नफासत सके। कौशल विकास विभाग द्वारा प्रशिक्षित 230 लोगों को जल्द ही ऑनलाइन बिक्री से जोड़ दिया जाएगा। 
गांव में हर व्यक्ति में गर्व और जिम्मेदारी की भावना दिखाई देती है। उन्हें लगता है कि जो आधारभूत ढांचा खड़ा किया गया है, उसकी रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी है। स्पष्ट है कि सिर्फ व्यक्तियों को रूपांतरित किया जा सकता है बल्कि सुदूरवर्ती पूरे गांव को भी पूरी तरह बदला जा सकता है। बस बदलाव की इच्छा होनी चाहिए, स्पर्द्धा की बजाय सहयोग की भावना हो और वहां कोई ऐसा परोपकारी व्यक्ति हो, जो संपूर्ण मानवजाति की बेहतरी के लिए योगदान देने के लिए तैयार हो। 

फंडा यह है कि मानवप्रजाति में हर चीज को रूपांतरित करने की क्षमता है। बस बेहतर कल के लिए एकजुट होने की जरूरत है। 
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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