महाराष्ट्र सरकार ने मदरसों में स्कूली शिक्षा
अनिवार्य करने के लिए एक बड़ी चाल चली है। जिन मदरसों में गणित, विज्ञान और
अंग्रेजी पाठ्यक्रम नहीं हैं, उन्हें स्कूल मानने से इनकार कर दिया गया
है। सरकार का साफ संदेश है कि यदि सरकारी अनुदान चाहते हैं तो मदरसों को
अपने पाठ्यक्रम में औपचारिक स्कूली विषयों को भी शामिल करना होगा। सरकार
के इस फैसले से नया राजनीतिक बखेड़ा शुरू हो गया है, लेकिन शिक्षामंत्री
विनोद तावड़े का कहना है कि ऐसा नहीं करने से शिक्षा के अधिकार कानून के
तहत मदरसो में पढ़ने वाले बच्चों को छात्र नहीं माना जा सकता। महाराष्ट्र
में 1900 मदरसे हैं, जिसमें एक लाख 80 हजार से अधिक बच्चे धार्मिक शिक्षा
ग्रहण करते हैं। राज्य के अल्पसंख्यक विकास राज्यमंत्री दिलीप कांबले ने
बृहस्पतिवार को कहा कि मदरसों में सिर्फ मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं और उनका
पाठ्यक्रम भी स्कूल से अलग होता है। ऐसे में मदरसों को स्कूल की श्रेणी में
नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि सन 2003 में तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी
गठबंधन सरकार ने भी मदरसा आधुनिकीकरण योजना शुरू की थी। तब उस सरकार ने भी
मदरसों को स्कूल नहीं माना था। मौजूदा सरकार ने भी इस योजना को जारी रखने
का निर्णय लिया है। बता दें कि महाराष्ट्र में यूपी, एमपी और पश्चिम बंगाल
की तरह मदरसा बोर्ड नहीं है। इसलिए अब तक राज्य की किसी भी सरकार ने मदरसों
को स्कूल नहीं माना है। वहीं, शिक्षामंत्री विनोद तावड़े ने कहा है कि
मदरसों की धार्मिक शिक्षा में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। मदरसों की
धार्मिक शिक्षा के साथ ही छात्र स्कूली शिक्षा भी ग्रहण करें, इसलिए यह
निर्णय लिया गया है। तावड़े ने कहा कि इससे मदरसों के छात्रों के शिक्षा का
दायरा बढ़ेगा। इसके लिए सरकार के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि चार जुलाई से राज्य में सर्वेक्षण किया जाएगा, जिसमें यह
पता किया जाएगा कि कितने बच्चे स्कूली शिक्षा ग्रहण नहीं करते।
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साभार: अमर उजाला समाचार
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